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Pankaj Tripathi: 'अमेरिका-ब्रिटेन में भी लोग हिंदी कहानियां देख रहे हैं', हिंदी दिवस के मौके पर बोले पंकज

Kiran Jain किरण जैन
Updated Sun, 14 Sep 2025 07:01 AM IST
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सार

Hindi Diwas Special: हिंदी दिवस के मौके पर पकंज त्रिपाठी ने अमर उजाला से खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने हिंदी भाषा को लेकर बात की।

bollywood actor Pankaj tripathi exclusive interview hindi diwas special
पंकज त्रिपाठी - फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
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हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं, यह हमारी जड़ों और हमारी संवेदनाओं से जुड़ी हुई पहचान है। हिंदी दिवस के खास मौके पर अमर उजाला ने उस कलाकार से बातचीत की, जिसने अपने संघर्ष और सच्चे अभिनय से ऑडियंस का दिल जीता। वो हैं पंकज त्रिपाठी। उन्होंने अपने करियर में हिंदी की भूमिका, बचपन की यादें और युवाओं के लिए इसकी अहमियत पर बेहद भावुक और ईमानदार तरीके से बातचीत की। पढ़िए बातचीत के कुछ प्रमुख अंश-
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आपके लिए हिंदी क्या है - सिर्फ भाषा या कुछ और?
इस दौरान पंकज ने कहा, 'मेरे लिए हिंदी सिर्फ भाषा नहीं है। ये मेरी पहचान है। मैं हिंदी सिनेमा का अभिनेता हूं; यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा गर्व है। भले ही मेरी मातृभाषा भोजपुरी रही हो, लेकिन हिंदी से जुड़ना, उसे पढ़ना, समझना, उसका उच्चारण सीखना। ये सब मेरे जीवन का हिस्सा बन गया।
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जब मैं स्क्रीन पर हिंदी बोलता हूं तो कभी-कभी ऐसे शब्द निकल आते हैं जो आजकल कम सुनाई देते हैं। शायद यही मेरी ताकत है। ऑडियंस का जो प्यार मुझे मिलता है, उसमें हिंदी की यही खूबसूरती शामिल है। हिंदी ने मुझे वो आवाज दी जिससे मैं अपने किरदार को दिल से जी पाता हूं।

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पंकज त्रिपाठी - फोटो : सोशल मीडिया
बचपन में ऐसी कौन-सी चीजें थीं जिन्होंने आपको हिंदी से जोड़ दिया? 
बचपन में हम चंदा मामा जैसी कहानियां पढ़ते थे। कहीं कार्टून में महाभारत देख लिया था। आठवीं क्लास में मुझे महाभारत की हिंदी किताब मिली थी, टीका सहित। मैं उसे ऐसे पढ़ता था जैसे कोई खजाना मिल गया हो। फिर राहुल सांकृत्यायन का 'घुमक्कड़ शास्त्र' मिला। उसमें लिखा था कि घुमक्कड़ी जरूरी है। उस किताब ने मेरे सोचने का तरीका बदल दिया। गांव से निकलकर जब कला के क्षेत्र में आया तो महसूस हुआ कि भाषा ही वो पुल है जिसने मुझे यहां तक पहुंचाया। हिंदी ने मुझे सिर्फ शब्द नहीं दिए, बल्कि एक पहचान और आत्मविश्वास भी। इसके लिए मैं दिल से आभारी हूं।

अगर आपके पूरे करियर को किसी कहावत या मुहावरे में समेटना हो, तो कौन-सी होगी?
शायद 'मूंग और मसूर की दाल' कहावत सबसे सही लगे। इसका मतलब है कि जैसे बिना सोचे-समझे किसी राह पर चल पड़ना। मेरे करियर में भी कई फैसले ऐसे ही आए - कभी प्लानिंग के बिना, लेकिन वही रास्ते सही साबित हुए। इस सफर ने मुझे बहुत कुछ सिखाया और दिया और इसके लिए मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि हिंदी की वजह से मुझे यह अनुभव और पहचान मिली।

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पंकज त्रिपाठी - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
आज के युवाओं के लिए हिंदी से जुड़ना कितना जरूरी है? क्या भाषा भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करती है?
हिंदी सिर्फ भाषा नहीं है। ये हमारी भावनाओं का रास्ता है। अगर आप हिंदी इलाकों से हैं और अपनी भाषा में अपनी बात नहीं कह पाए तो आधे मन की बात दिल में ही रह जाती है। आज सबसे बड़ी समस्या संवाद की है। हम अपनी भावनाएं कह नहीं पाते क्योंकि शब्दों का साथ नहीं होता। अगर युवा हिंदी से जुड़े रहेंगे तो वे अपना मन साफ कह पाएंगे, अपने दिल की बात खोलकर रख पाएंगे। यह भाषा हमें जोड़ती है, समझने का रास्ता देती है। यही हमारी ताकत है। यही हमारी पहचान है।

आज की फिल्मों और वेब सीरीज में हिंदी को लेकर आपको क्या बदलाव दिखता है?
इसे किसी श्रेणी में बांधना मुश्किल है, लेकिन हां, यह माध्यम अब बहुत बड़ी ताकत बन चुका है। हिंदी कहानियां आज पूरी दुनिया देख रही हैं। जब मैं अमेरिका या ब्रिटेन जाता हूं तो वहां रहने वाले लोग भी हिंदी कंटेंट देखकर खुश होते मिलते हैं। सिर्फ भारतीय नहीं, पड़ोसी देशों के लोग भी। हिंदी अब सिर्फ भारत की भाषा नहीं रही। ये दुनिया से जुड़ रही है। ये देखकर मन भर आता है। दिल में गर्व और खुशी दोनों उमड़ते हैं।

पंकज त्रिपाठी का वर्कफ्रंट
बता दें आखिरी बार पंकज फिल्म 'मेट्रो इन दिनों' में नजर आए थे। यह एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म है जिसमें पंकज त्रिपाठी के साथ आदित्य रॉय कपूर, सारा अली खान, नीना गुप्ता आदि कलाकार हैं। कहानी शहरी रिश्तों, प्यार-आदतों और आधुनिक जीवन के जटिल पहलुओं को छूती है।
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