हेमा से शादी की पर ‘बेताब’ का मुहूर्त पहली पत्नी से कराया, पढ़ें धर्मेंद्र से जुड़े पर्सनल और प्रोफेशनल किस्से
Dharmendra Personal: अभिनेता धर्मेंद्र हमारे बीच नहीं रहे। आज सोमवार 24 नवंबर को उनका निधन हो गया। अपने पीछे वे अभिनय और सिनेमा की एक स्मृद्ध विरासत छोड़ गए हैं। अमर उजाला से फिल्म इतिहासकार दिलीप ठाकुर ने ही-मैन की जिंदगी से जुड़े कुछ पर्सनल और कुछ प्रोफेशनल किस्से साझा किए हैं।
विस्तार
पर्सनल लाइफ की बात करें तो धर्मेंद्र अपनी निजी जिंदगी को लेकर भी चर्चा में रहे। बहुत कम उम्र में उन्होंने पहली शादी की थी। उस समय मीडिया इतनी एक्टिव नहीं थी जितनी आज है, पर फिर भी उनकी निजी जिंदगी पर टेस्ट किया जाता था।
मीडिया के दबाव के बावजूद की हेमा मालिनी से शादी
जब उनका नाम हेमा मालिनी से जुड़ा और शादी की बात सामने आई तो मैगजीनों और अखबारों में काफी लिखा गया। धर्मेंद्र के पहले से बच्चे थे, इसलिए उनके लिए स्थिति आसान नहीं थी। मीडिया के दबाव के बावजूद उन्होंने और हेमा मालिनी ने शादी का फैसला लिया। कहा गया कि हेमा मालिनी की मां इस रिश्ते के खिलाफ थीं, लेकिन दोनों ने शादी की और आगे जीवन साथ निभाया।
प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच संतुलन बनाए रखा
दो परिवारों को संभालना आसान नहीं था, लेकिन इसके बावजूद धर्मेंद्र की लोकप्रियता पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा। इंडस्ट्री और दर्शकों दोनों ने उन्हें स्वीकार किया। लोगों ने मान लिया कि उनके दो परिवार हैं... पहले परिवार से दो बेटे सनी और बॉबी देओल और दूसरे परिवार से दो बेटियां ईशा और आहना देओल। आगे चलकर ईशा देओल फिल्मों में आईं और आहना देओल ने डांस के क्षेत्र में काम किया। धर्मेंद्र ने प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच संतुलन बनाए रखा, और विवादों से बचने की कोशिश की।
‘बेताब’ का मुहूर्त अपनी पहली पत्नी के हाथों से करवाया
इंटरव्यू में उन्होंने कभी अपनी पहली पत्नी प्रकाश कौर का विस्तृत जिक्र नहीं किया। 1979 के आसपास एक फोटो है जब उन्होंने होली पर पत्रकारों को पार्टी दी। ऐसे मौकों पर निजी जीवन की चर्चा जरूर होती थी, लेकिन उन्होंने इसे बढ़ावा नहीं दिया। हेमा मालिनी से शादी के बाद भी उन्होंने ‘बेताब’ का मुहूर्त अपनी पहली पत्नी के हाथों से करवाया। इससे पता चलता है कि वह दोनों परिवारों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते थे।
‘शोले’ के समय फैली ये अफवाह
मीडिया से जुड़ी गॉसिप लगातार आती रही। कहा जाता है कि ‘शोले’ के समय ये अफवाह चली कि रमेश सिप्पी ने उन्हें वीरू का रोल इसलिए दिया ताकि हेमा मालिनी के साथ ज्यादा फुटेज मिले। यह कितनी सच थी, इसका पता नहीं चला लेकिन ऐसी बातें गॉसिप मैगजीन में अक्सर सामने आती रहीं।
गुस्से से देखा और खबर बन गई
एक घटना भी याद की जाती है कि बंगाल में आए तूफान के राहत कार्य के लिए मुंबई में एक रैली निकाली गई थी। जब वह रैली खत्म हुई तो धर्मेंद्र ने उन पत्रकारों को देखा जो उनकी निजी जिंदगी पर लगातार लिख रहे थे। उन्होंने बस गुस्से से उनकी तरफ देखा और वही बात अगले दिन खबर बन गई। इससे समझ आता है कि धर्मेंद्र अपनी निजी बातें सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे।
पुरानी यादों को महत्व देते थे धर्मेंद्र
धर्मेंद्र से मेरी आखिरी मुलाकात करीब छह महीने पहले हुई। उस समय ‘शोले’ के 50 साल पूरे होने वाले थे। मैंने उन्हें शूटिंग की कुछ पुरानी तस्वीरें दिखाईं जिनमें मैं भी नजर आता हूं। उन्होंने तस्वीरें देखीं और कहा ...तस्वीरें बोलती हैं। यह एक साधारण लेकिन यादगार मुलाकात थी जिसमें महसूस हुआ कि वे पुरानी यादों को महत्व देते हैं।
धर्मेंद्र की प्रोफेशन जिंदगी, एक्शन हीरो के रूप में याद करते हैं लोग
धर्मेंद्र जी को अक्सर लोग सिर्फ एक एक्शन हीरो के रूप में याद करते हैं, क्योंकि उनकी छवि ही-मैन जैसी बन गई थी। लेकिन अगर ध्यान से देखें तो 1970 के दशक से पहले उन्होंने कई सोशल और इमोशनल फिल्मों में भी बेहतरीन अभिनय किया था। अगर आप ‘देवेंद्र’, ‘गोल्डन की’, ‘एक महल सपनों का’, ‘मुख्यमंत्री की चाकरी’, ‘खामोशी’ जैसी फिल्मों को देखेंगे, तो पाएंगे कि उन्होंने अलग तरह के गंभीर और भावुक किरदार निभाए। इस प्रकार की फिल्मों से उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता को लगातार आगे बढ़ाया।
‘फूल और पत्थर’ आई और कॉन्ट्रोवर्सी हुई
फिर ‘फूल और पत्थर’ आई और इस फिल्म को लेकर काफी कॉन्ट्रोवर्सी भी हुई। उस समय हीरो को कभी बिना शर्ट पोस्टर पर नहीं दिखाया जाता था। लेकिन धर्मेंद्र का पोस्टर सिर्फ पैंट पहने हुए था और ऊपर का हिस्सा खुला था। यह उस दौर में लोगों के लिए कल्चर शॉक जैसा था। इसके बावजूद फिल्म मुंबई और अन्य शहरों में सिल्वर जुबली मनाने लगी और सफल साबित हुई। इसके बाद धर्मेंद्र को एक्शन टाइप के रोल मिलने शुरू हुए।
1970 के दशक में धर्मेंद्र की फिल्मों में दिखे कई रंग
1970 के दशक में एक्शन फिल्मों का दौर तेज हो गया था। इसी समय सलीम-जावेद ने एंग्री यंग मैन की इमेज अमिताभ बच्चन के लिए बनाई। तब धर्मेंद्र ने भी खुद को बदला और ‘यादों की बारात’ जैसी फिल्मों में अपनी एक्शन पहचान मजबूत की। इसी फिल्म के बाद उन्हें एक्शन हीरो का ठप्पा सा लग गया, क्योंकि उस समय एक्शन फिल्मों की मांग सबसे ज्यादा थी। दूसरी तरफ अगर देखें तो 1970 के दशक में धर्मेंद्र की फिल्मों में कई रंग दिखाई देते हैं। कॉमेडी, रोमांस, इमोशन और एक्शन सब मौजूद था। ‘शोले’ को अगर देखें तो उसमें पूरा पैकेज मिलता है। लेकिन उसी साल 1975 में हृषिकेश मुखर्जी की ‘चुपके चुपके’ भी रिलीज हुई, जिसमें धर्मेंद्र ने कॉमेडी की दिशा में काम किया। उस फिल्म में अमिताभ बच्चन भी थे और वहां धर्मेंद्र एक वर्सटाइल एक्टर के रूप में नजर आए।
उन्होंने पुराने प्रोड्यूसरों को कभी नहीं छोड़ा
अगर उनके करियर को देखें तो उन्हें एक ऑल-राउंडर एक्टर कहा जा सकता है। उन्होंने कभी जल्दबाजी नहीं की। उतार-चढ़ाव आए, लेकिन डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार रखा, जिससे उन्हें लगातार काम मिलता रहा। उनकी शुरुआत ‘दिल भी तेरा, हम भी तेरे’ से हुई, जो अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म थी। धर्मेंद्र ने अर्जुन हिंगोरानी के साथ कई वर्षों तक काम किया। जैसे ‘कपट’, ‘कहानी किस्मत की’ और दूसरी फिल्में। उन्होंने पुराने प्रोड्यूसरों को कभी नहीं छोड़ा और नए डायरेक्टर तथा प्रोड्यूसरों के साथ भी लगातार काम किया।
बेटे सनी देओल को लॉन्च किया
आगे चलकर उन्होंने ‘विजेता फिल्म्स’ नाम से प्रोडक्शन हाउस शुरू किया और वहीं से सनी देओल को लॉन्च किया। राहुल रवैल और राजकुमार संतोषी जैसे डायरेक्टरों के साथ ‘बेताब’, ‘घायल’, ‘बरसात’ जैसी फिल्में बनीं। ‘बरसात’ की शुरुआत शेखर कपूर ने डायरेक्ट की थी, जिसमें बॉबी देओल और करिश्मा कपूर थे। फिल्म शुरू होने में देर हुई और कुछ बदलाव करने पड़े। कुछ फिल्मों के ट्रायल देखने के बाद धर्मेंद्र को कई बार लगता था कि री-शूट की जरूरत है। ‘बेटा’ के ट्रायल के वक्त उन्होंने कहा कि फिल्म दिल से बननी चाहिए, सिर्फ तकनीक से नहीं। उस दौर में उनकी यही सोच एक हीरो के तौर पर अलग पहचान देती थी। मीडिया के साथ उनका व्यवहार संतुलित रहा। कई फिल्मों में उन्होंने विक्रम गोखले के साथ काम किया, जैसे घोड़ा-गाड़ी पर आधारित एक गाना भी काफी मशहूर हुआ। धर्मेंद्र के करियर में कई ऐसे पहलू हैं जो उनके प्रोफेशनल रवैये को साफ दिखाते हैं।