डिजिटल रिव्यू-तुमसे ना हो पाएगा : अधूरे ओटीटी की अच्छे आइडिया पर बनी अधकचरी वेबसारीज
ओटीटी – इरॉस नाउ
जियो के सस्ते इंटरनेट डाटा ने मुंबई के कंटेंट कलाकारों में अफरातफरी मचा दी है। ऊपर से हर तीसरी गली में मौजूद किसी न किसी ओटीटी कंपनी का दफ्तर। हिंदी सिनेमा के कलाकार और तकनीशियनों के अच्छे दिन फाइनली आ ही गए। लेकिन, इनके अच्छे दिनों के चक्कर में दर्शकों को समझ नहीं आ रहा, क्या देखें, क्या छोड़े और कहां बेवकूफ बनने से बचें।
इरॉस के ओटीटी के साथ दिक्कत ये है कि स्मार्ट टीवी पर इसे चलना किसी पहाड़ पर चढ़ने से कम नहीं। वापस लौट कर पहले वाले मेन्यू में जा नहीं सकते। किसी शो को देखते देखते सीधे होम पेज पर जाना हो तो वह भी नहीं है। तो आखिरी चारा इस ओटीटी पर सर्फिंग का बचता है मोबाइल पर। मयंक यादव और निलाद्री बनर्जी के एक शानदार कॉन्सेप्ट की इसके लेखक निर्देशक कार्ल ने बैंड बजा दी है।
मुंबई में कहावत है कि जब लगे कि बेंड बज ही गई तो कॉलर उठाकर नाचना मत भूलो। यही कुछ कर रहे हैं इस छोटे छोटे एपीसोड्स वाली वेब सीरीज के सारे कलाकार। इरॉस ने इससे पहले भी एक कॉमेडी सीरीज बनाई थी साइड हीरो। दोनों वेब सीरीज की तुलना करें तो ये समझ आता है कि इरॉस के कर्णधारों को कॉमेडी के चमत्कारों पर यकीन तो है पर इसे कैसे कैश करें, इसका अंदाजा नहीं है।
छोटे शहर से आए एक युवक को सिफारिश से मुंबई में नौकरी मिल चुकी है। लेकिन बड़े शहर की नौकरी अपने साथ बड़े बड़े झंझट भी लेकर आती है। आइडिया के लेवल पर देखा जाए तो कमाल का प्लॉट है लेकिन अधकचरे कलाकार, महिलाओं को लेकर बड़े शहरों के तथाकथित क्रिएटिव बंदों की सोच और ऊपर से खराब निर्देशन। सब कुछ जोड़ घटाकर कहा जाते तो इनसे न हो पाएगा।