'अगस्त्य की कास्टिंग पर चिंतित था शहीद अरुण का परिवार', 'इक्कीस' की रिलीज टलने पर दिनेश विजन ने कही ये बात
Dinesh Vijan Exclusive Interview: फिल्म 'इक्कीस' की रिलीज से पहले फिल्म की टीम ने मीडिया के साथ एक अनौपचारिक मीट एंड ग्रीट किया। इस दौरान निर्देशक श्रीराम राघवन, लीड अभिनेता अगस्त्य नंदा और सिमर भाटिया के साथ निर्माता दिनेश विजन भी मौजूद रहे। उन्होंने कई दिलचस्प बातें साझा कीं।
विस्तार
फिल्म 'इक्कीस' 25 दिसंबर को रिलीज होने वाली थी। मगर, इसमें बदलाव हुआ है। अब यह फिल्म 01 जनवरी 2026 को दस्तक देगी। निर्माता दिनेश विजन ने हालिया बातचीत के दौरान फिल्म 'इक्कीस' को लेकर अपनी सोच, रिलीज डेट बदलने के फैसले और बदलते सिनेमा के दौर पर खुलकर अपनी बात रखी।
रिलीज डेट बदलने का फैसला
हमें लगा कि ऐसा फैसला लेना जरूरी है जो सबके लिए ठीक हो। यह एक ऐसी फिल्म है जिसे जगह चाहिए और हम खुशकिस्मत हैं कि हमें साल की शुरुआत में सोलो रिलीज मिली। इससे वाकई बहुत मदद मिलती है। हमने यह पहले भी काम करते देखा है। स्त्री, पुष्पा और उससे पहले हिंदी मीडियम ने भी अपनी रिलीज बदली थी। मकसद यही होता है कि भीड़ न हो और ऑडियंस को एक बहुत अच्छी फिल्म देखने के लिए समय और मानसिक स्पेस मिले। बिजनेस के नजरिए से भी यह सही लगता है। जब फिल्में एक दूसरे से नहीं टकरातीं, तो उन्हें सांस लेने की जगह मिलती है। सोलो रिलीज से फिल्म को सही रन मिलता है और आखिरकार इसका फायदा सभी को होता है।
मैडॉक की अब तक की सबसे निजी फिल्म
मुझे सच में लगता है कि यह मैडॉक की अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्म है। मुझे पता है कि यह बहुत बड़ा बयान है, लेकिन यह इसलिए है, क्योंकि यह फिल्म हमारे लिए बहुत ज्यादा निजी रही है। इसमें कुछ भी आसान नहीं था। इसमें समय लगा, इसमें अपनी चुनौतियां थीं और इसने हम सब से बहुत कुछ मांगा। लेकिन अब यह पूरी तरह तैयार लगती है कि इसे दुनिया के सामने रखा जाए। हम उत्साहित हैं, सच में बहुत उत्साहित हैं कि ऑडियंस इसे देखें। इस वक्त हमारे लिए सबसे ज्यादा मायने यही रखता है।
रिलीज से पहले की घबराहट और थिएटर में ऑडियंस की वापसी
लोग वाकई थिएटर में वापस आ रहे हैं। हमने यह पिछले कुछ हफ्तों में साफ देखा है। बड़ी फिल्में आ रही हैं और यह इंडस्ट्री के लिए अच्छा संकेत है। एक निर्माता के तौर पर आप सब कुछ सही कर सकते हैं। आप सबसे अच्छा निर्देशक लेते हैं, सही कास्ट लेते हैं। लेकिन रिलीज से पहले एक ऐसा पल आता है, जब कुछ भी आपके कंट्रोल में नहीं रहता। व्यक्तिगत तौर पर मैं गुरुवार शाम तक बिल्कुल परेशान नहीं होता। गुरुवार रात के बाद मैं किसी से बात नहीं करता। मैं बस अपनी पत्नी के साथ रहता हूं, क्योंकि आप जानते हैं कि अगले दिन नतीजा आने वाला होता है और इस इंडस्ट्री में कोई भी कभी पक्का नहीं कह सकता'।
फॉर्मूला और वैल्यू पर सोच
आजकल बहुत लोग मुझसे कहते हैं कि आपने फॉर्मूला क्रैक कर लिया है, आपके पास सीक्रेट सॉस है। मैं हमेशा कहता हूं कि जिस दिन आपको लगने लगे कि आपके पास फॉर्मूला है, उसी दिन वह खत्म हो जाता है। मेरे लिए एक ही सोच है। हम कभी कभी पैसे खो सकते हैं, लेकिन हमें कभी वैल्यू नहीं खोनी चाहिए। मेरे लिए वैल्यू पैसे से ज्यादा अहम है।
आज के दौर में सिर्फ अच्छी फिल्म बनाना काफी नहीं
आज के समय में, जिस तरह टेक्नोलॉजी और कंटेंट देखने का तरीका बदल गया है, सिर्फ अच्छी फिल्म बनाना काफी नहीं है। आपको एक बेहतरीन फिल्म बनानी होगी। उसे यूनिक होना होगा, साहसी होना होगा और भावनात्मक रूप से लोगों को छूना होगा। मेरी कुछ पसंदीदा फिल्मों ने मुझे कुछ महसूस कराया है और यह फिल्म मुझे वही एहसास देती है। इसमें ऐसे पल हैं जो आपको क्लासिक सिनेमा की याद दिलाते हैं। भावनात्मक असर के लिहाज से सेविंग प्राइवेट रायन या युवा और मासूम रोमांस के लिए द नोटबुक। 21 साल की उम्र में जो पवित्रता होती है, यह फिल्म आपको वही एहसास कराती है और यह भी याद दिलाती है कि आप उस उम्र में क्या कर सकते हैं।
इक्कीस एक अलग तरह की वॉर फिल्म
मुझे एक जैसी फिल्में दोहराना पसंद नहीं है, एक जैसे विषय या एक जैसा म्यूजिक भी नहीं। इक्कीस एक बहुत यूनिक फिल्म है क्योंकि यह सिर्फ युद्ध की बात नहीं करती। यह युद्ध की निरर्थकता की बात करती है। यह बहुत गहराई से बात करती है, एक परिवार के नजरिए से, सतह पर नहीं। मैं अक्सर कहता हूं कि लड़का युद्ध लड़ने चला जाता है लेकिन पिता को उसके साथ जीना पड़ता है। यह माफी की कहानी नहीं है। यह समझ की कहानी है। युद्ध सैनिक लड़ते हैं और सैनिक सबसे सम्मानित लोगों में से होते हैं। वे हमारी तरह सामान्य जिंदगी जी सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं चुना।
श्रीराम राघवन पर भरोसा
श्रीराम राघवन एक मास्टर स्टोरीटेलर हैं। वह शायद शर्मिंदा हो जाएं अगर मैं यह कहूं, लेकिन बहुत कम फिल्ममेकर होते हैं जो कहानी को एक जगह से शुरू करके आपको इतने गहरे भावनात्मक सफर से गुजारें और फिर आपको वापस वहीं ले आएं। सिर्फ इसलिए मत सोचिए कि यह थ्रिलर नहीं है तो यह आपको कहीं नहीं ले जाएगी। सच कहूं तो मुझे लगता है कि यह उनकी सबसे इमोशनल फिल्म है। आज के समय में, जैसे जैसे टेक्नोलॉजी बढ रही है, मुझे लगता है कि हम कम महसूस करने लगे हैं। यह फिल्म आपको फिर से महसूस कराती है।
फिल्म को मिले इमोशनल रिएक्शन
मैंने यह फिल्म प्रीतम को दिखाई थी। वह कॉकटेल पर काम करते हुए मिलने आए थे। फिल्म के आखिर में वह बस ऐसे बैठे थे, बहुत ज्यादा भावुक। ऐसा ही मुकेश खेत्रबल के साथ भी हुआ, जो अरुण खेत्रबल के भाई हैं। हमारे लिए यह वैलिडेशन बहुत मायने रखता था। जब हम पहली बार अरुण के परिवार से मिले थे, उनकी सबसे बड़ी चिंता यही थी कि अगस्त्य क्यों। क्या वह कर पाएगा। और यह शक स्वाभाविक है क्योंकि आप अपने परिवार की सबसे अहम कहानी किसी को सौंप रहे होते हैं। बाद में जब अरुण के भाई ने कहा कि इस फिल्म को देखने के बाद मुझे समझ आया कि पाकिस्तान से लौटने के बाद मेरे पिता चुप क्यों हो गए थे, तो इससे बडा कॉम्प्लिमेंट हमारे लिए कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही अरुण का कोई फुटेज नहीं है, लेकिन अगस्त्य की उनसे एक अजीब सी समानता है। मेरे लिए वही पल इस पूरे सफर को सार्थक बना गया।
मैडॉक और इंडस्ट्री का सफर
अगर पूरी इंडस्ट्री को देखें तो पिछले तीन साल हमारे लिए अविश्वसनीय रहे हैं। स्त्री 2 सबसे बडी हिंदी फिल्म बन गई, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। पहली 'स्त्री' को तो कोई फंड करने को भी तैयार नहीं था, इसलिए मुझे खुद बनानी पड़ी। फिर 'छावा' नंबर दो बन गई। मुझे नहीं लगता कि हम इससे ज्यादा कुछ मांग सकते थे। इस सफलता ने हमें और साहसी बनने की आजादी दी है। ऐसी कहानियां कहने की जो हमारी संस्कृति को भूलने न दें। हमें लोगों को बताना है कि अरुण खेत्रबल कौन थे। हम सब शिवाजी को जानते हैं, लेकिन हमें उनके बेटे छावा को भी जानना चाहिए। हम हमेशा से साहसी रहे हैं, लेकिन अब हम इसे बडे स्तर पर कर रहे हैं। और यह सही समय है। ऑडियंस थिएटर में कुछ बडा, कुछ वर्ल्ड क्लास अनुभव करना चाहते हैं। तकनीकी और भावनात्मक दोनों स्तर पर इक्कीस बिल्कुल वैसी ही फिल्म है। मैं बहुत खुश हूं कि हम आज यहां हैं।