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IFFI: ‘इफ्फी’ में लाइव दिखाई जाएगी मूक फिल्म ‘कालिया मर्दन’, दादा साहेब फाल्के के पोते ने जाहिर की खुशी

एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला Published by: सुवेश शुक्ला Updated Wed, 20 Nov 2024 08:45 AM IST
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सार

IFFI:  गोवा में आयोजित होने वाले ‘55वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव’ में दादा साहब फाल्के की मूक फिल्म ‘कालिया मर्दन’ को लाइव आर्केस्ट्रा के साथ दिखाया जाएगा। आइए जानते हैं उनके पोते ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी।
 

Dadasaheb Phalke silent film Kaliya Mardan screened with live orchestra at IFFI
'कालिया मर्दन' इफ्फी में होगी प्रदर्शित - फोटो : एक्स @FilmHistoryPic
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विस्तार
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भारत का 55वां अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव इस बार शानदार होने वाला है। यह गोवा में हर साल आयोजित होता है। इस बार ‘इफ्फी’ में दादा साहब फाल्के की मूक फिल्म ‘कालिया मर्दन’ इस साल ‘इफ्फी’ में लाइव ऑर्केस्ट्रा के साथ दिखाई जाएगी। दादा साहेब फाल्के के पोते चंद्रशेखर पुसालकर ने इस पर अपनी खुशी जाहिर की है। 
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दादा साहेब के पोते ने जताई खुशी
दादा साहेब फाल्के के पोते चंद्रशेखर पुसालकर ने इस सम्मान के लिए अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, "मुझे खुशी है कि इस फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाया जा रहा है। मैं सरकार का शुक्रगुजार हूं। यह दादा साहब की सबसे यादगार फिल्मों में से एक है और यह सबसे लंबे समय तक चली, जो पांच साल तक चली। फिल्म का मुख्य आकर्षण उनकी पांच वर्षीय बेटी मंदाकिनी का सुंदर अभिनय और फाल्के द्वारा की गई कुछ बेहतरीन ट्रिक फोटोग्राफी थी।" 
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‘कालिया मर्दन’ का हुआ रिस्टोरेशन
वर्ष 1919 ‘कालिया मर्दन’ को ‘नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया’ द्वारा संरक्षित 35 मिमी डुप्लीकेट नेगेटिव का उपयोग करके 4K में रिस्टोर किया गया है। मूल नाइट्रेट तत्व अब मौजूद नहीं हैं। रिस्टोर की प्रक्रिया में ऐतिहासिक प्रामाणिकता को बनाए रखते हुए डिजिटल रूप से साफ और बचे हुए फुटेज को स्थिर करने के लिए सावधानीपूर्वक प्रयास शामिल थे। यह रिस्टोरेशन ‘कालिया मर्दन’ को राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन के तहत 4K रिस्टोरेशन से गुजरने वाली पहली मूक भारतीय फिल्मों में से एक बनाता है, जो शुरुआती भारतीय सिनेमा को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण बेंचमार्क स्थापित करती है।

पौराणिक कथा से प्रेरित थी फिल्म ‘कालिया मर्दन’
दादा साहब फाल्के द्वारा निर्देशित कालिया मर्दन (1919) का भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदान है। भारतीय सिनेमा के पिता के रूप में जाने जाने वाले दादा साहेब फाल्के ने भारतीय पौराणिक कथाओं से प्रेरित होकर यह मूक फिल्म बनाई, जिसमें उनकी कहानी कहने की प्रतिभा और तकनीकी का प्रदर्शन किया गया। फिल्म में भगवान कृष्ण के बचपन के रोमांच की कहानी को दर्शाया गया है, जहां वह यमुना नदी में कालिया नाग को वश में करते हैं, यह कहानी पूरे भारत में प्रिय है।
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