Kritika Kamra: ‘सैयारा’ ने दिखाई रोमांटिक फिल्मों की ताकत’, कृतिका ने बताया निभाना चाहती हैं कैसा किरदार
Kritika Kamra On Her Journey: कृतिका कामरा ओटीटी की दुनिया का एक जाना-पहचाना नाम हैं। वो हाल ही में ‘सारे जहां से अच्छा’ में भी नजर आई थीं। अब कृतिका ने अपने करियर को लेकर बात की। साथ ही उन्होंने ‘सैयारा’ को लेकर भी कुछ कहा।

विस्तार
अभिनेत्री कृतिका कामरा हाल ही में सीरीज ‘सारे जहां से अच्छा’ में फातिमा के रोल में नजर आईं हैं। उनके इस किरदार और शो को ऑडियंस से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। साथ ही कृतिका के काम की भी तारीफ की गई है।

कृतिका टीवी से लेकर फिल्मों और अब ओटीटी तक, हर प्लेटफॉर्म पर काम कर रही हैं। एक्टिंग के साथ-साथ उन्होंने चंदेरी में सिनाबार नाम से फैशन इनिशिएटिव भी शुरू किया है, जो कारीगारों को मदद और पहचान दिलाने की कोशिश है। हाल ही में अमर उजाला से बातचीत में कृतिका ने अपने नए शो, एक्टिंग सफर और आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में बात की।
सीरीज को लेकर दर्शकों की ढेरों प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। उनमें से सबसे ज्यादा किस बात ने आपको छुआ?
मुझे सबसे अच्छा यह लगा कि ऑडियंस ने शो की सोच और इरादे को समझा। यह कोई स्टीरियोटाइप या बनावटी कहानी नहीं थी, बल्कि भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को ईमानदारी और बैलेंस के साथ दिखाने की कोशिश थी। यह देखकर सुकून मिला कि लोग इस नजरिए को पहचान भी रहे हैं और सराह भी रहे हैं।

पत्रकार फातिमा को निभाते वक्त आपके लिए मुश्किल हिस्सा क्या था?
किरदार में उतरना मेरे लिए मुश्किल नहीं था, क्योंकि मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जिनकी सोच फातिमा जैसी है। भारत में कई पत्रकार हैं जो अलोकप्रिय होने के बावजूद सच बोलने से पीछे नहीं हटते। उन्हें देखकर भरोसा हुआ कि हर देश में ऐसे जिम्मेदार लोग होते हैं। हां, असली चुनौती थी उस दौर का अंदाज पकड़ना। इसके लिए मैंने 70 के दशक के कई इंटरव्यू देखे, उनकी बोलने की रफ्तार और लहजा समझा, ताकि डायलॉग्स उस समय जैसे लगें।
‘कितनी मोहब्बत है’ से लेकर ‘सारे जहां से अच्छा’ तक आपकी जर्नी और इंडस्ट्री का बदलाव कैसा रहा?
मैं हमेशा से यही कोशिश करती आई हूं कि खुद को न दोहराऊं। इंडस्ट्री अक्सर आपको एक ही तरह के रोल में बांध देती है, लेकिन मैंने अलग-अलग किरदार चुनने का रिस्क लिया। कभी-कभी डर भी लगा कि लोग इसे पसंद करेंगे या नहीं, लेकिन अब तक रिस्क अच्छा साबित हुआ है। सबसे अच्छी बात यह है कि आज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नई कहानियों और एक्सपेरिमेंट्स की गुंजाइश बहुत है। कलाकार को अपनी रेंज एक्सप्लोर करने का मौका मिलता है।
अनुषा रिजवी के साथ महिला-केंद्रित कहानी पर काम करने का अनुभव कैसा रहा?
शानदार। ‘पीपली लाइव’ देखकर मैं पहले ही उनकी फैन हो गई थी। जब उनकी स्क्रिप्ट पढ़ी तो लगा कि यह जरूर कुछ खास होगा और सच में उम्मीदों से भी बढ़कर था। सेट पर माहौल बहुत परिवार जैसा था। सहज, हंसी-मजाक से भरा और सबसे जरूरी, स्क्रिप्ट के प्रति ईमानदार। खास बात यह थी कि यहां महिलाएं सिर्फ कैमरे के सामने ही नहीं, बल्कि डायरेक्शन, प्रोडक्शन और हर डिपार्टमेंट में थीं। जब इतनी मजबूत महिलाएं साथ आती हैं तो एक अलग ही ऊर्जा पैदा होती है, जो प्रेरणा देती है और अनुभव को और खास बना देती है।

किसी भी रोल को चुनते समय आपकी प्राथमिकता क्या होती है?
मैं जल्दबाजी नहीं करती और सही मौके का इंतजार करती हूं। मुझे खुशी है कि मैं इंतजार कर सकती हूं। बस अफसोस इतना है कि महिलाओं के लिए गहरे और मजबूत किरदार कम मिलते हैं। किसी कहानी में आकर्षण तो स्वाभाविक होता है, लेकिन मैं मेकर्स की ईमानदारी भी देखती हूं। आखिर में यह सब मिलकर बनने वाला विजन सबसे महत्वपूर्ण होता है।
‘मटका किंग’ में आपका किरदार चर्चा में है। इस प्रोजेक्ट में आपको क्या खिंचाव महसूस हुआ?
‘बंबई मेरी जान’ में मैंने गैंगस्टर का रोल किया था और वही दोहराना मुझे पसंद नहीं। ‘मटका किंग’ 70 के दशक में मटका जुए की शुरुआत और उसके फैलाव की कहानी है। यह सिर्फ जुए तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें महत्वाकांक्षा, नैतिकता, सफलता और उसकी कीमत की कहानी भी है। अभी मैं अपने रोल के बारे में ज्यादा नहीं बता सकती, लेकिन इतना कह सकती हूं कि यह बहुत अलग और नया अनुभव होगा।

चंदेरी में फैशन इनिशिएटिव सिनाबार शुरू करने की प्रेरणा कहां से मिली?
मैं चंदेरी के बहुत पास पली-बढ़ी हूं, इसलिए वहां की बुनाई और बुनकरों से गहरा जुड़ाव है। लॉकडाउन के समय उनकी हालत देखकर लगा कि कुछ करना चाहिए। तब मैंने अपने सोशल मीडिया से उन्हें प्लेटफॉर्म दिया और यह धीरे-धीरे एक छोटे बिजनेस में बदल गया। आज यह सिर्फ बिजनेस नहीं बल्कि एक कम्युनिटी बन गई है। मेरी कोशिश है कि इसे और बड़ा रूप दूं ताकि बुनकरों को असली पहचान और स्थायी रोजगार मिल सके।
क्या कोई जॉनर है, जिसे आप अभी तक एक्सप्लोर नहीं कर पाईं लेकिन भविष्य में करना चाहेंगी?
हां, बिल्कुल। मेरा करियर प्रेम कहानियों से शुरू हुआ और ऑडियंस का इतना प्यार मिला कि आज भी लोग मुझे उन्हीं रोल्स के लिए याद करते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में रोमांस को जोखिम माना जाने लगा था। अब ‘सैयारा’ की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि अच्छी रोमांटिक कहानियां हमेशा लोगों के दिल में उतरती हैं। मैं चाहती हूं कि मुझे एक ऐसी प्रेम कहानी मिले, जो दिल को छूने वाली हो, जो ऑडियंस को हंसा भी सके और रुला भी सके। सच कहूं तो रोमांस मेरे दिल के सबसे करीब है और मैं चाहती हूं कि फिर से एक ऐसी मोहब्बत की दास्तान करूं जिसे ऑडियंस बरसों तक याद रखें।