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Mithun Chakraborty: ‘द बंगाल फाइल्स’ का हिस्सा बनकर गर्व महसूस करते हैं मिथुन, बोले- ‘कला का काम सच दिखाना’

Kiran Jain किरण जैन
Updated Fri, 22 Aug 2025 09:04 AM IST
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सार

Mithun Chakraborty On The Bengal Files: मिथन चक्रवर्ती इन दिनों अपनी आगामी फिल्म ‘द बंगाल फाइल्स’ को लेकर चर्चाओं में बने हुए हैं। अब अभिनेता ने इस फिल्म और अपने कैरेक्टर को लेकर बात की है।

Mithun Chakraborty Feels Proud To Be A Part Of Vivek Agnihotri The Bengal Files Says Showing Truth Is The Art
मिथुन चक्रवर्ती - फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
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फिल्मी दुनिया के 'महागुरु' कहे जाने वाले मिथुन चक्रवर्ती ने अपने लंबे करियर में हर रंग देखा है। कभी वे नाचते-गाते हीरो बने, कभी पर्दे पर खलनायक को चुनौती दी और कभी ऐसे किरदार निभाए जिन्हें देखने के बाद ऑडियंस की आंखें भर आईं। अब विवेक अग्निहोत्री की अगली फिल्म 'द बंगाल फाइल्स' में वो एक बार फिर बिल्कुल अलग अंदाज में नजर आने वाले हैं। फिल्म में उनका किरदार है 'मैडमैन' - एक ऐसा इंसान जिसे समाज पागल समझता है, लेकिन असल में वही सबसे बड़ा सच बोलने वाला है। हाल ही में अमर उजाला से बातचीत के दौरान अभिनेता ने अपनी फिल्म, किरदार की चुनौतियों और आने वाले प्रोजेक्ट्स पर खुलकर बात की। 

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विवेक अग्निहोत्री ने जब आपको 'द बंगाल फाइल्स' ऑफर की तो सबसे पहले आपके मन में क्या आया?
विवेक जब भी मेरे पास आते हैं, तो मुझे पहले से पता होता है कि वे मुझे कभी आसान किरदार नहीं देंगे। वो हमेशा ऐसा रोल लिखते हैं जिसमें आत्मा हो और जो लोगों के दिल पर असर करे। इस बार उन्होंने मुझे एक ऐसा इंसान दिया जिसे लोग पागल कहते हैं, लेकिन असल में वह पागल नहीं है। वह सच बोलने वाला आदमी है। किरदार का नाम है 'मैडमैन'। उसके साथ बहुत अन्याय हुआ है। उसकी जुबान जला दी गई, उसका परिवार खत्म कर दिया गया, वह कचरे से खाना खाता है। लेकिन उसके पास सच बोलने की ताकत अब भी है। यही सच इस फिल्म की असली जान है।

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Mithun Chakraborty Feels Proud To Be A Part Of Vivek Agnihotri The Bengal Files Says Showing Truth Is The Art
मिथुन चक्रवर्ती - फोटो : यूट्यूब ग्रैब

इस किरदार को निभाना कितना मुश्किल रहा?
यह मेरे करियर का सबसे कठिन किरदार था। सोचिए, अगर किसी की जुबान जला दी जाए तो वह बोल तो सकता है, लेकिन हर शब्द निकालने में दर्द होगा। मुझे उसी दर्द को आवाज में उतारना पड़ा। हर डायलॉग टूटी-फूटी आवाज में बोलना और यह दिखाना कि बोलने की कोशिश ही उसकी सबसे बड़ी लड़ाई है। कभी-कभी यह किरदार गुस्से में दिखता है, लेकिन अंदर से वह टूटा हुआ इंसान है। कई बार सीन खत्म होने के बाद भी मैं उस पीड़ा से बाहर नहीं निकल पाता था।

शूटिंग के दौरान ऐसा कौन सा सीन रहा जिसे आप कभी नहीं भूलेंगे?
एक सीन था जिसमें मैं दर्शन को कहता हूं, 'तीन स्तंभ तो सब जानते हैं, लेकिन चौथा स्तंभ हैं - We the people।' जब मैंने यह कहा तो पूरे सेट पर खामोशी छा गई। सबको लगा जैसे यह फिल्म का सीन नहीं बल्कि असली जिंदगी का सच सामने आ गया हो। उस दिन मुझे लगा कि मैंने इस किरदार को पूरी तरह जी लिया है।

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मिथुन चक्रवर्ती - फोटो : सोशल मीडिया

इस फिल्म की कहानी ने आपको निजी तौर पर कितना छुआ?
यह घटना मेरे जन्म से पहले की है। मैंने किताबों में सिर्फ 'नोआखाली नरसंहार' का नाम सुना था, लेकिन विस्तार से कुछ नहीं पढ़ा। असलियत यह है कि उस समय करीब चालीस हजार हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ, लेकिन इतिहास की किताबों में इसे दबा दिया गया। सवाल यह है कि आखिर क्यों छिपाया गया? क्या इसलिए कि बहुतों की राजनीति पर असर पड़ता? विवेक ने रिसर्च कर इस सच्चाई को सामने लाया है और यही वजह है कि लोग डर रहे हैं। मेरा मानना है कि सच चाहे जितना छिपाओ, एक दिन बाहर आ ही जाता है।

क्या इसी वजह से ममता बनर्जी की सरकार इसका विरोध कर रही है?
हां, यही डर है कि सच्चाई बाहर न आ जाए। लेकिन सच को कितने दिन रोकोगे? 'द कश्मीर फाइल्स' को भी रोकने की कोशिश हुई थी, फिर भी दर्शकों ने अपनाया। यही इस फिल्म के साथ भी होगा।

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विवेक अग्निहोत्री और द बंगाल फाइल्स - फोटो : सोशल मीडिया

लोग कहते हैं विवेक अग्निहोत्री की फिल्में प्रोपेगेंडा होती हैं। आप क्या सोचते हैं?
मुझे यह समझ नहीं आता कि लोग इसे प्रोपेगेंडा क्यों कहते हैं। यह कहानी आज की राजनीति से जुड़ी हुई नहीं है। यह तो आजादी से पहले की बात है। जब सच सामने आता है तो बहुतों को चोट लगती है और लोग नाम दे देते हैं कि यह प्रोपेगेंडा है। मेरे हिसाब से कला का काम सच दिखाना है। अगर कलाकार से यह आजादी छीन ली जाए तो कला खत्म हो जाएगी।

विवेक की प्रेस कॉन्फ्रेंस रोक दी गई थी। इस पर आपकी क्या राय है?
यह सब पहले से तय था। लोगों ने फिल्म देखे बिना ही विरोध शुरू कर दिया। ट्रेलर देखे बिना राय बनाना सही नहीं है। लेकिन मजेदार बात यह हुई कि जितना रोका गया, उतना ही लोगों की जिज्ञासा बढ़ गई। इसी वजह से ट्रेलर कुछ ही दिनों में पंद्रह मिलियन से ज्यादा बार देखा गया। रोकने का उल्टा असर पड़ा।

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मिथुन चक्रवर्ती और अनुपम खेर - फोटो : सोशल मीडिया

ऐसी फिल्मों का हिस्सा बनकर आपको कैसा लगता है?
बहुत गर्व होता है। जब आप अपने देश की असली सच्चाई लोगों तक पहुंचाते हैं तो वह सिर्फ फिल्म नहीं रहती, बल्कि एक जिम्मेदारी बन जाती है। ऐसे किरदार निभाना आसान नहीं होता, लेकिन जब ऑडियंस  कहती है कि 'आप हमारी आवाज हैं' तो लगता है मेहनत सफल हुई।

जब आपने अनुपम खेर को गांधी के रूप में देखा तो आपका अनुभव कैसा था?
अनुपम खेर का काम शानदार था। गांधी जी को पर्दे पर उतारना आसान नहीं है, लेकिन अनुपम ने पूरी ईमानदारी और समर्पण से निभाया। मुझे यकीन है कि ऑडियंस उन्हें देखकर सरप्राइज होगी।

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