The Amateur Review: जासूसी फिल्मों के शौकीनों को हॉलीवुड का मस्त तोहफा, ऑस्कर विनर रामी मलेक की बढ़िया अदाकारी

रॉबर्ट लिटेल के लिखे साल 1981 में प्रकाशित उपन्यास ‘द एमेच्योर’ पर उसी साल एक फिल्म कनाडा में बन चुकी है। उसी कहानी पर ये एक और फिल्म बनाने का पहले पहल एलान साल 2006 में हुआ और अब 2025 में जाकर ट्वेंटिएथ सेंचुरी स्टूडियोज की ये फिल्म सिनेमाघरों में है। रॉबर्ट लिटेल के बारे में जो जानते हैं, वे न्यूजवीक में उनकी पत्रकारिता की पृष्ठभूमि के साथ साथ सीआईए और केजीबी की आपसी रंजिशों के दौर के उनकी कहानियों के कैनवस को भी पहचानते हैं। उनके उपन्यासों में मानवीय त्रासदियों को पेशेगत परेशानियों में बुनने में उनकी महारत दिखती है। टेलीविजन का बड़ा नाम रहे और अपनी सिर्फ दूसरी फिल्म बना रहे निर्देशक जेम्स हावेस ने हालांकि फिल्म की अंतर्धारा को मानवीय पहलुओं से ही शुरू किया लेकिन क्लाइमेक्स तक आते आते फिल्म एक आम जासूसी फिल्म में बदलकर रह जाती है।

सन्नाटा जब काटने को दौड़े
फिल्म ‘द एमेच्योर’ उन इंसानी एहसासों की भी कहानी है, जिनके केंद्र में सन्नाटा है। किसी को खो देने का सबसे तकलीफदेह एहसास क्या होता है? सोचकर देखिए? कोई जो दिन भर आपका सिर खाता रहता है? वक्त बेवक्त कुछ न कुछ डिमांड करता रहता हो? आपके साथ घूमने जाने की जिद करता हो? या कुछ और? जिसकी आवाज आपको रोजमर्रा की बस आम सी बात लगती हो! लेकिन, वही आवाज सुनने के लिए आपका मन इधर उधर भागता फिरता है, जब वह शख्स पास नहीं होता। यूं लगता है कि बस अभी लैपटॉप के बगल में कोई गर्म चाय का एक प्याला रखकर आपके चेहरे पर मुस्कान बिखेर देगा। या फिर आपके सोने से पहले बिस्तर की सलवटें ठीक कर देगा, तकिये के लिहाफ को दुरुस्त कर देगा, वगैरह वगैरह। और, फिर एक दिन आपका वही हमराही, हमसाया और हमबदन दुनिया छोड़ देता है। ऐसा ही कुछ होता है सीआईए के डाटा एन्क्रिप्शन विभाग में काम करने वाले चार्ल्स हेलर के साथ। उसकी बीवी लंदन में हथियारबंद हमलावरों के निशाने पर आ जाती है और मारी जाती है।

सीआईए के एक आईटी स्पेशलिस्ट से ऐसे में क्या उम्मीद की जा सकती है? उसका विभाग चाहता है कि वह कुछ दिन घर पर रहे। गम मनाए। अपनी पत्नी को खो देने के दर्द से उबरने की कोशिश करे। लेकिन, ये इंसान इतना काबिल है कि दुनिया के किसी भी सिस्टम को कहीं से भी हैक कर सकता है। वह चुटकियों में पता लगा लेता है कि लंदन के होटल में घुसे हथियारबंद कौन थे? मामला ऊपर तक जाता है। बीच के दो अफसर इन हमलावरों को जानते हैं, पहचानते हैं, लेकिन अपने ही साथी की बीवी की हत्या करने वालों के खिलाफ करते कुछ नहीं है। चार्ल्स इन्हें ब्लैकमेल करता है। सीआईए की ट्रेनिंग अकादमी जाकर लड़ने के पैंतरे सीखता है और एक दिन वहां से गायब हो जाता है। आगे की कहानी किसी भी जासूसी उपन्यास जैसी ही है। चार्ल्स हमलावरों को कैसे खोज निकालता है? कौन-कौन उसकी इस दौरान मदद करता है और कैसे वह अपनी बीवी के हमलावरों को बचने का मौका देते हुए मारता है, यही फिल्म ‘द एमेच्योर’ की कहानी है।

फिल्म ‘द एमेच्योर’ को देखने की उत्सुकता रामी मलिक की वजह से जागती है। ‘बोहैमियन रैप्सोडी’ में उनका ऑस्कर पुरस्कार दिलाने वाला अभिनय कौन भूल सकता है। जेम्स बॉन्ड सीरीज की पिछली फिल्म ‘नो टाइम टू डाय’ में वह विलेन बने थे। यहां वह सीआईए की इमारत में सात आठ मंजिल नीचे बेसमेंट में काम करने वाला एक डाटा स्पेशलिस्ट हैं। आईटी वाला कोई साधारण सा बंदा कैसे पागलपन की हद तक जाकर अपने बीवी के कातिलों की तलाश करने वाला बन जाता है, रामी का ये परिवर्तन परदे पर यकीन करने लायक बनता है तो इसमें रामी की अपनी शख्सियत का भी खूब फायदा मिलता है। फिल्म का स्क्रीनप्ले हालांकि क्लाइमेक्स में उनकी हीरोगिरी से न्याय नहीं कर पाता है और यूं लगता है कि इसका क्लोजर कुछ बेहतर हो सकता था। रैशेल ब्रोसनाहन के साथ उनके अंतरंग क्षण बहुत ही रोमांटिक इसलिए लगते हैं क्योंकि रामी कहीं भी फिल्म में टिपिकल हीरोइज्म दिखाने से बचते हैं। उनकी दृढ़ता ही उनका हथियार है और खुद को दुनिया भर की खुफिया जानकारी देते रहने वाले इनक्विलिन से जब उसका हकीकत में आमना सामना होता है तो उसका एक और मानवीय पहलू सामने आता है। अपने अपने गम में आकंठ डूबे दो शख्स अनजानी धरती पर बीत रही अनहोनी वाली रात में सिर्फ इसलिए हमबिस्तर होना चाहते हैं क्योंकि जमाना हो गया दोनों को किसी दूसरे के साथ करीबी महसूस किए। रैशेल और कैट्रियोना दोनों ने फिल्म में रामी का अच्छा साथ दिया है।

‘द एमैच्योर’ की कहानी के कुछ किरदार सफेद और स्याह के बीच के धरातल पर विचरण करते मिलते हैं। अगर आपने एमसीयू की सीरीज ‘पनिशर’ देखी है तो उसके हीरो जोनाथन एडवर्ड बर्नथल भी यहां दिखेंगे। अभी इन दिनों उनकी झलकियां एमसीयू की सीरीज ‘डेयरडेविल बॉर्न अगेन’ में दिख रही हैं। हॉल्ट मैककैलेनी ने सीआईए के उस अफसर का किरदार निभाया है जिसे लगता है कि बॉस कितने भी बदल जाएं, उसकी कुर्सी नहीं हिलने वाली। किरदार छोटे छोटे और भी हैं, जो कदम दर कदम फिल्म में जुड़ते जाते हैं और अपने हिस्से की यात्रा कर हाशिये पर रुकते जाते हैं। फिल्म में मार्टिन रुहे की सिनेमैटोग्राफी गौर करने लायक है। इनडोर और आउटडोर दोनों जगह उनका प्रकाश और छाया संयोजन अच्छा बन पड़ा है। फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक से एक जासूसी फिल्म के नाते थोड़ा और अच्छा होने की उम्मीद बनती है। वॉल्कर बर्टेलमैन ने फिर भी प्रयास किया है। ध्यान रखने वाली बात ये है कि ये फिल्म बिना इंटरवल के ही देखने में ही असली मजा है।