Raid 2 Review: अजय देवगन के दमदार अभिनय से दमकी एक और फ्रेंचाइजी, राजकुमार गुप्ता ने जुटाई ‘ईमानदारों’ की फौज

अजय देवगन को हिंदी सिनेमा में अरसे तक मिस्टर भरोसेमंद का खिताब मिला रहा। और, वह इसलिए कि वह अपनी फिल्मों के सारे कील-कांटे खुद ही दुरुस्त करते रहते हैं। कहानी से लेकर कलाकारों के चयन और फिर उनके निर्माता के रूप में किसे जिम्मेदारी मिलेगी, ये सब अजय की फिल्म में वह ही तय इसलिए भी करते हैं कि उनके प्रशंसकों को एक दमदार फिल्म देखने को मिले। चीखने-चिल्लाने की बजाय वह अपनी देह को अपने अभिनय का औजार बनाते हैं। आंखें उनकी धीर गंभीर रहती है। आम आदमी सी पैंट शर्ट और चप्पल या सैंडल वाली पोशाक भी हो तो फिर तो वह कुछ न कुछ असरदार करके ही मानते हैं। फिल्म ‘रेड 2’ उन्हीं अमेय पटनायक के छापों की एक और कहानी है जिनके कारनामे पिछली बार दर्शकों ने साल 2018 में आई फिल्म ‘रेड’ मे देखे थे। अमेय का अर्थ जानते हैं ना? सीमा रहित, अज्ञेय..! अजय देवगन की ये एक और सफल फ्रेंचाइजी बनती दिख रही है। ‘सिंघम’ सीरीज अपनी राह पर टिकी ही है। ‘दृश्यम 3’ की चर्चा भी जोरों पर है। ‘धमाल’ सीरीज की अगली फिल्म शुरू हो चुकी है। ‘दे दे प्यार दे’ और ‘सन ऑफ सरदार’ की सीक्वल की शूटिंग भी बताते हैं कि पूरी हो चुकी है।

हिंदी सिनेमा के फ्रेंचाइजी मास्टर अजय देवगन की नई फिल्म ‘रेड 2’ देखने की खास उम्मीद दर्शकों ने आखिरी वक्त तक नहीं दिखाई और इस फिल्म से कोई उम्मीद न होने का फायदा ही इस फिल्म को मिल रहा है। अजय देवगन की फिल्म ‘शैतान’ से उनके प्रशंसकों और हॉरर फिल्मों के शौकीनों को काफी उम्मीदें थीं। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सकी। दर्शकों को भी फिल्म पूरी तरह लुभा नहीं सकी। अपनी हाइप पर इस फिल्म के खरा न उतरने का नतीजा ये हुआ कि ‘शैतान’ के बाद रिलीज हुई अजय देवगन की फिल्में ‘मैदान’, ‘औरों में कहां दम था’, ‘सिंघम अगेन’, ‘नाम’ और ‘आजाद’ कतार से फ्लॉप रहीं। आधा दर्जन फ्लॉप फिल्में देने के बाद अजय देवगन ने फिल्म ‘रेड 2’ से सिक्सर मारा है और इसका पूरा क्रेडिट उनके अभिनय, राज कुमार गुप्ता के निर्देशन, आर पी यादव की स्टंट कोरियोग्राफी और फिल्म की उस पटकथा को जाता है, जिसे रितेश शाह से लिखवाने के बाद राज कुमार गुप्ता ने जयदीप यादव और करण व्यास की मदद से खुद बेहतर किया है। फिल्म के संवाद चुटीले हैं। कौरवों और पांडवों का जिक्र आने पर अमेय पटनायक का ये कहना कि मैं तो पूरी महाभारत हूं, इसके संवादों पर की गई मेहनत की बानगी है।
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लेखन की कसौटी पर खरी उतरी फिल्म ‘रेड 2’ चूंकि उस जमाने की है जब मोबाइल फोन वगैरह हुआ नहीं करते थे और ईमानदार अफसरों के खेमका की तरह तबादले भी खूब हुआ करते थे, तो प्रधानमंत्री के पद पर बैठने वाले और फर की गोल टोपी लगाने वाले नेता की भी ये फिल्म याद दिलाती चलती है। अपने ही घर से तड़ीपार होने वाले नेताओं की भी देश में लंबी फेहरिस्त रही है। ऐसा ही एक नेता यहां भी है। जिन्होंने पिछली फिल्म ‘रेड’ देखी है, उन्हें पता है कि अमेय पटनायक को काला धन छिपाकर रखने वालों को सरे बाजार नंगा करने में मजा आता है। इस बार बारी उस बेटे की है जिसने अपनी मां को भगवान से ऊंचा दर्जा दे रखा है। अपना सब कुछ लुटाकर गरीबों का पेट भरने का स्वांग रचा रखा है और जिसने नौकरी दिलाने के नाम पर बेटियों की अस्मत लूटने का लंकाकांड बना रखा है। करतूतें काली हैं। अफसर ईमानदार है। कहते हैं कि जब सीधी अंगुली से घी न निकले तो उसे टेढ़ा कर लेना चाहिए। अमेय पटनायक भी वही करता है। कभी खुद पर रिश्वत लेने के आरोप लगवाता है। कभी अपने खास सिपहसालार को तश्तरी में सजाकर पेश तो करता है लेकिन वह गले का कांटा बन जाएगा, इसका अंदाजा भी सामने वाले को नहीं होता।

फिल्म ‘रेड 2’ के निर्देशक राज कुमार गुप्ता की चाल शतरंज के घोड़े जैसी है। वह दो घर सीधे चलकर आधा घर टेढ़ा चल जाते हैं। अपनी फिल्मों में भी और अपने करियर में भी। एक सुपरहिट फिल्म देने के बाद उनकी कुछ अतरंगी कर डालने की खुजली तभी शांत होती है जब एक फिल्म उनकी फ्लॉप हो जाती है। लौटकर वह फिर से फॉर्मूले पर आते हैं और पुराने फॉर्मूलों को तोड़कर नए सबक गढ़ने में कामयाब हो भी जाते हैं। उन्होंने ‘नो वन किल्ड जेसिका’ के बाद ‘घनचक्कर’ बनाई। ‘रेड’ के बाद ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड’ बनाई। अब ‘रेड 2’ के बाद वह ये परंपरा तोड़ेंगे या नहीं, ये तो उनकी अगली चाल ही बताएगी। फिलहाल फिल्म ‘रेड 2’ में वह सम्मान सहित अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए हैं। सिस्टम से मदद पाकर एक ईमानदार अफसर कैसे निलंबन के दौरान भी अपने शुभचिंतकों को आगे करके अपना काम पूरा करता है, उसे देखने का आनंद अलग ही है। और फिर क्लाइमेक्स में नेता की पलटन की नाक के नीचे से उसका सारा काला धन सरकारी खजाने में पहुंचा कर आयकर विभाग के नीति वाक्य ‘कोष मूलो दंड’ को अक्षरश: लागू कर दिखाने के साथ ही फिल्म दर्शकों की तालियां लूट ले जाती है।


फिल्म ‘रेड 2’ में रितेश देशमुख ने हिंदी सिनेमा में खलनायकों की विकसित हो रही नई पौध में थोड़ा और खाद-पानी डाला है। वह ‘एनिमल’ के बॉबी देओल जैसे ही अय्याश, ड्रामेबाज और अपनी ही हुकूमत की आन में खोए रहने वाले खलनायक के तौर पर सामने आते हैं। काम उनका दमदार है और उनका किरदार ही इस फिल्म में नायक के चरित्र को मजबूती देता है। सहायक कलाकारों में यशपाल शर्मा, अमित सियाल, श्रुति पांडे और बृजेंद्र काला का बेहद होशियारी से इस्तेमाल किया गया है। अमित सियाल का पल पल रंग बदलता किरदार फिल्म ‘रेड 2’ को एक अलग आयाम देने में मदद करता है। यशपाल शर्मा का रोल रिवर्सल भी फिल्म का टेंट पोल ऊंचा तान देता है। ‘गंगाजल’ के दिनों से अजय देवगन और यशपाल शर्मा का साथ रहा है, दिखे जरूर दोनों किसी एक फिल्म में बरसों बाद हैं। ब्रजेंद्र काला ने भी अपना किरदार बखूबी निभाया है। ईमानदार अफसर की प्रशंसक और विभाग की चौकन्नी कर्मचारी बनीं श्रुति पांडे इस फिल्म की चौंकाने वाली खोज हैं। उनका जोश और अपने काम के प्रति जुनून फिल्म देखने के बाद भी याद रह जाता है। और, फिल्म में अदाकारी के सोने पर सुहागा का काम किया है रितेश के दादाभाई वाले किरदार की मां बनी सुप्रिया पाठक ने। अमेय पटनायक के बॉस बने रजत कपूर का काम भी नोटिस करने लायक है। दोनों ने कहानी के धारों को किनारों के बीच समेटे रखने में अच्छा सहयोग दिया है। अमित त्रिवेदी का बैकग्राउंड म्यूजिक भी फिल्म की गति को कमाल का सहारा देता चलता है। सुधीर चौधरी की सिनेमैटोग्राफी और संदीप फ्रांसिस का संपादन अव्वल नंबर है। करीब सवा दो घंटे की ये फिल्म इस सप्ताहांत की परफेक्ट फैमिली वॉच फिल्म है।