Ufff Yeh Siyapaa Review: हंसाती नहीं उबाती है ‘उफ्फ ये सियापा’, सोहम शाह पर भारी पड़े शारिब हाशमी
Ufff Yeh Siyapaa Film Review and Rating in Hindi: सोहम शाह निर्देशक जी. अशोक के साथ मिलकर इस बार एक साइलेंट कॉमेडी सस्पेंस थ्रिलर फिल्म लेकर आए हैं। आइए जानते हैं कैसी है फिल्म।

विस्तार
साल 1987 में कमल हासन की फिल्म आई थी ‘पुष्पक’, यह एक साइलेंट डार्क कॉमेडी फिल्म थी। अब निर्देशक जी अशोक अभिनेता सोहम शाह के साथ मिलकर एक साइलेंड डार्क कॉमेडी फिल्म लाए हैं ‘उफ्फ ये सियापा’। ‘तुम्बाड’ और ‘क्रेजी’ के बाद सोहम शाह ने एक बार फिर एक प्रयोगधर्मी फिल्म की है और एक जोखिम उठाया है। बिना स्पॉइलर के आइए जानते हैं कि कैसी सोहम शाह की नई फिल्म ‘उफ्फ ये सियापा’।

कहानी
फिल्म की शुरुआत ही एक पार्सल को लेकर हुए सियापा यानी कन्फ्यूजन से होती है, जो फिल्म का प्लॉट सेट कर देती है। इस फिल्म की कहानी के केंद्र में हैं केसरी लाल सिंह (सोहम शाह), जो बिजली विभाग के कर्मचारी हैं। लेकिन कंजूसी में अव्वल नंबर हैं। केसरी की पड़ोसन हैं कामिनी (नोरा फतेही)। केसरी की पत्नी हैं पुष्पा (नुसरत भरूचा), जो पति केसरी से नाराज होकर अपने मायके चली जाती है। केसरी उसे मनाने का काफी प्रयास भी करता है। लेकिन वो कुछ ज्यादा कर पाए, उससे पहले ही वो एक मुसीबत में पड़ जाता है।
इसके बाद शुरू होती है कॉमेडी ऑफ एरर्स। बिना संवाद के कहानी आगे बढ़ती रहती है और बीच-बीच में ऐसे सीन आते जाते हैं, जो आपको हंसाते हैं। इसी बीच कहानी में एंट्री होती है इंस्पेक्टर हंसमुख (ओमकार कपूर) और गूंगरा (शारिब हाशमी) की। एआर रहमान के बैकग्राउंड संगीत और कंपोजीशन से संवाद के बिना ही फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है और एक के बाद एक घटनाएं घटती जाती हैं और सियापा बढ़ता जाता है। सस्पेंस, थ्रिलर और मर्डर के साथ कहानी में कॉमेडी पैदा किए जाने की कोशिश की जाती है।

एक्टिंग
एक्टिंग की बात करें तो फिल्म में पांच कलाकारों को भरपूर स्क्रीन टाइम मिला है। उनमें सोहम शाह ने बिजली विभाग के एक सीधे साधे केसरी लाल सिंह के रूप में अच्छा काम किया है। ‘तुम्बाड’ और ‘क्रेजी’ में सोहम अपनी रेंज दिखा चुके हैं। यहां उन्हें बस एक साधारण इंसान दिखना था, जो सरकारी कर्मचारी है और जिसका पेट निकला हुआ है। हां, बस यहां सोहम को अपनी आवाज और डायलॉग से नहीं बल्कि हाव-भाव से लोगों को कहानी से जोड़े रखना था और हंसाना था। इसमें काफी हद तक वो सफल रहे। नुसरत भरूचा ने अपने करियर में अलग-अलग तरह के किरदार निभाए हैं। यहां एक बार फिर नुसरत ने रिस्क उठाया है। उन्होंने कहीं-कहीं पर ओवर एक्टिंग की है, तो कहीं-कहीं पर हंसाया भी है।फिल्म में सबसे अच्छा इस्तेमाल नोरा फतेही का किया गया है।
नोरा ने काम वो ही किया है जो हर फिल्म में करती हैं, ग्लैमर का तड़का लगाया है। लेकिन यहां अच्छाई ये है कि नोरा को कोई डायलॉग नहीं बोलना था। सिर्फ अपना ग्लैमर दिखाना था, जिससे कहानी में केसरी लाल सिंह को और पर्दे पर दर्शकों को फिल्म से जोड़े रखना था। उन्होंने इस काम को बखूबी निभाया है। लेकिन अगर किसी न सबसे ज्यादा प्रभावित किया और हंसाया है, तो वो हैं ‘द फैमिली मैन’ फेम शारिब हाशमी। शारिब जितनी देर स्क्रीन पर आते हैं अपने हाव-भाव से वो आपको हंसाते जरूर हैं और साइलेंट कॉमेडी फिल्म को साकार बनाते हैं। वहीं इंस्पेक्टर के किरदार में ओमकार कपूर ने बेहतर काम किया है। फिल्म में ‘पंचायत’ के बिनोद यानी अशोक पाठक भी हैं। हालांकि, वो सिर्फ कुछ देर के लिए ही हैं। बाकी कास्ट ने भी ठीक-ठाक ही काम किया है।

कैसी है फिल्म
साइलेंट कॉमेडी का नाम सुनते ही जेहन में चार्ली चैपलिन और मिस्टर बीन जैसे किरदार और उनकी कहानियां ही सामने आती हैं। इस फिल्म के पीछे भी सोच कहीं न कहीं वही थी। हालांकि, निर्देशक जी अशोक का कहना है कि उन्होंने कमल हासन की ‘पुष्पक’ और प्रियदर्शन की कॉमेडी फिल्मों से प्रेरणा लेकर इसकी कहानी लिखी है। लेकिन फिल्म के ट्रेलर को देखकर जैसी उम्मीदें बंधी थीं, फिल्म असल में वैसी नहीं है। कई मौकों पर फिल्म आपको निराश करती है और जो काम एक साइलेंट कॉमेडी फिल्म को करना चाहिए वो नहीं होता है। कई जगह पर फिल्म का बैकग्राउंड संगीत फिल्म को मजेदार बनाने की बजाय, चुभता है।
ऐसा लगता है कि अगर बिना संगीत के या सिर्फ कुछ एक जगहों पर चार्ली चैपलिन की फिल्मों की तरह हल्का संगीत होता, तो शायद फिल्म ज्यादा हंसा पाती। फिल्म में बार-बार पूरे सीन दिखाना और अंत में ये दिखाना की ये असल में नहीं बल्कि सोच में हुआ है। बार-बार इस दोहराव से दर्शक ऊबने लगता है। लगभग दो घंटे की इस फिल्म की टाइमिंग भी आपको कई बार अखरती है। कुल मिलाकर साइलेंट कॉमेडी के नाम पर बनी ‘उफ्फ ये सियापा’ अधिकांश मौकों पर हंसाने से चूक जाती है। क्योंकि यहां हंसाने से ज्यादा कहानी को फंसाने पर जोर दिया गया है, जिस वजह से फिल्म दोनों जगह से मात खा जाती है।

क्या हैं कमियां
‘उफ्फ ये सियापा’ की सबसे बड़ी कमी इसकी लंबी अवधि है। साइलेंट कॉमेडी फिल्म को 1 घंटा 20 मिनट या अधिकांश डेढ़ घंटा का होना चाहिए। लेकिन सोहम शाह की ये फिल्म लगभग दो घंटे (116 मिनट) की है। जिससे कई मौकों पर ऐसा लगता है कि फिल्म को खामखा खींचा जा रहा है। एक ही कहानी को बार-बार दोहराया गया है, जिससे दर्शक ऊबने लगते हैं। एक ही जैसे सीन का बार-बार दोहराव फिल्म को उबाऊ बनाता है। कई मौकों पर सोहम शाह और नोरा फतेही के उत्तेजक सीन जबरन ठूंसे हुए लगते हैं। साथ ही एआर रहमान का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर किसी साइलेंट कॉमेडी फिल्म जैसा नहीं लगता है। संगीत कॉमेडी ऑफ एरर्स वाली फील नहीं दे पाता है।
क्यों देखें
अगर आप सोहम शाह के फैन हैं तो ये फिल्म देखिए। साथ ही साइलेंट-कॉमेडी थ्रिलर फिल्म बनाने का जोखिम उठाने के लिए निर्माताओं की तारीफ करनी चाहिए और उनका प्रोत्साहन करना चाहिए। बॉलीवुड में ऐसी फिल्में न के बराबर बनी हैं, इसलिए ऐसा कदम उठाना सराहनीय है। इस कदम की प्रशंसा के लिए फिल्म को एक बार देखा जा सकता है। हालांकि, बेहतर रहता कि अगर इसे ओटीटी पर लाया जाता।