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Gujarat: राजकोट में मोरारी बापू की रामकथा में मिला 60 करोड़ का बड़ा दान, धर्मार्थ कार्यों में खर्च होगी धनराशि

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, अहमदाबाद Published by: अनिल वैश्य Updated Mon, 02 Dec 2024 08:33 PM IST
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सार

राजकोट के रेसकोर्स ग्राउंड में आयोजित रामकथा के पहले ही दिन मोरारी बापू ने लोगों से अपील की कि वे बुजुर्गों और प्रकृति के प्रति अपना स्नेह और समर्थन व्यक्त करें। उनके इस आह्वान पर श्रोताओं ने अभूतपूर्व दान दिया। 

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मोरारी बापू। - फोटो : AU
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विस्तार
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राजकोट में प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु मोरारी बापू की रामकथा में बुजुर्गों की सेवा और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने जैसे उद्देश्यों के लिए 60 करोड़ रुपए से अधिक का दान इकट्ठा हुआ। दान की यह राशि सद्भावना ट्रस्ट द्वारा बनाये जाने वाले वृद्धाश्रम और दूसरे धर्मार्थ कार्यों के लिए दी जाएगी।
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राजकोट के रेसकोर्स ग्राउंड में आयोजित रामकथा के पहले ही दिन मोरारी बापू ने लोगों से अपील की कि वे बुजुर्गों और प्रकृति के प्रति अपना स्नेह और समर्थन व्यक्त करें। उनके इस आह्वान पर श्रोताओं ने अभूतपूर्व दान दिया। इतने बडे़ दान से रामकथा के करुणा और मानवता के मूल संदेश को भी बल मिला है।
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जामनगर रोड पर पडधरी इलाके में 300 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले सद्भावना वृद्धाश्रम के लिए दान इकट्ठा करना ही इस कथा का एक मुख्य उद्देश्य था। निराश्रित, विकलांग और असहाय बुजुर्गों

कों अपना घर मिले, इस लक्ष्य के साथ बनाए जा रहे इस वृद्धाश्रम में कुल 1,400 कमरे होंगे जहां बुजुर्गों की पूरे सम्मान के साथ देखभाल की जाएगी। इस परियोजना का दूसरा उद्देश्य बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण करना भी है, जो आध्यात्मिक मूल्यों के साथ पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को जोड़ता है।

यह रामकथा भगवान राम और रामायण की शिक्षाओं से समाज को उन्नत करने की मोरारी बापू की छह दशक की यात्रा में 947वीं कथा थी। सत्य, प्रेम और करुणा के उनके शाश्वत संदेश से दुनिया भर में करोड़ों श्रद्धालु उत्साह से जुड़ते हैं। राजकोट के इस आयोजन से आध्यात्मिकता की समाज में क्रांति लाने की शक्ति का पता चलता है।

23 नवंबर को भव्य पोथी यात्रा के साथ शुरू हुई इस पुण्यकथा में हर दिन लगभग 80,000 से अधिक भक्त, गणमान्य लोग और स्वयंसेवक शामिल हुए। साथ ही बड़ी संख्या मे श्रोताओं और भक्तजनों ने भावपूर्वक भोजनप्रसाद का ग्रहण भी किया। इस आयोजन को सफल बनाने के लिए दर्जनों सामाजिक संगठनों और स्वयंसेवकों ने रात-दिन मेहनत की।


1 दिसंबर को पूरी हुई इस रामकथा ने हजारों लोगों में लोगों को सच्चे अर्थ में दिव्य आध्यात्मिक अनुभूति हुई और इससे धर्म एवं आस्था की समाज को एक सार्थक बदलाव की ओर ले जाने की क्षमता का भी पता चला।
 
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