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सीईटी के कारण परिवहन व्यवस्था पर संकट: हाईकोर्ट पहुंचा मामला, आवेदकों को मुफ्त यात्रा सुविधा देने पर आपत्ति
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: निवेदिता वर्मा
Updated Wed, 23 Jul 2025 09:36 AM IST
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सार
हरियाणा में 26 और 27 जुलाई को सीईटी की परीक्षा है। इसके परीक्षार्थियों के लिए सरकार ने मुफ्त बस यात्रा की सुविधा दी है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर संकट मंडराने का मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गया है।

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
हरियाणा में 26 और 27 जुलाई को होने वाली संयुक्त पात्रता परीक्षा (सीईटी) के कारण प्रदेश में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर संकट मंडराने का मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गया है।
हाईकोर्ट में इसको लेकर जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें हरियाणा सरकार की ओर से अभ्यर्थियों को दी जा रही मुफ्त बस यात्रा की सुविधा पर गंभीर आपत्ति जताई गई है।
याचिका में कहा गया है कि सरकार के इस फैसले से हरियाणा रोडवेज की अधिकतर बसें परीक्षा ड्यूटी में लग जाएंगी जिससे दैनिक यात्रियों, कार्यालय जाने वालों, मरीजों, बुजुर्गों और श्रमिक वर्ग को भारी असुविधा का सामना करना पड़ सकता है। याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि राज्य सरकार ने इस योजना की घोषणा तो कर दी, लेकिन आम जनता के लिए कोई वैकल्पिक या आकस्मिक परिवहन की व्यवस्था नहीं की गई। इससे उनके संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय से निर्देश देने का अनुरोध किया है कि राज्य सरकार सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को न्यूनतम आवश्यक स्तर पर बनाए रखने के लिए समुचित कदम उठाए तथा आम जनता के हितों की रक्षा के लिए एक समर्पित संचार एवं आकस्मिक तंत्र स्थापित करे।

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हाईकोर्ट में इसको लेकर जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें हरियाणा सरकार की ओर से अभ्यर्थियों को दी जा रही मुफ्त बस यात्रा की सुविधा पर गंभीर आपत्ति जताई गई है।
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याचिका में कहा गया है कि सरकार के इस फैसले से हरियाणा रोडवेज की अधिकतर बसें परीक्षा ड्यूटी में लग जाएंगी जिससे दैनिक यात्रियों, कार्यालय जाने वालों, मरीजों, बुजुर्गों और श्रमिक वर्ग को भारी असुविधा का सामना करना पड़ सकता है। याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि राज्य सरकार ने इस योजना की घोषणा तो कर दी, लेकिन आम जनता के लिए कोई वैकल्पिक या आकस्मिक परिवहन की व्यवस्था नहीं की गई। इससे उनके संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय से निर्देश देने का अनुरोध किया है कि राज्य सरकार सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को न्यूनतम आवश्यक स्तर पर बनाए रखने के लिए समुचित कदम उठाए तथा आम जनता के हितों की रक्षा के लिए एक समर्पित संचार एवं आकस्मिक तंत्र स्थापित करे।