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Kurukshetra News: शिल्प मेले में पर्यटकों को लुभा रही पांच से छह माह में तैयार होने वाली पश्मीना शॉल
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कुरुक्षेत्र। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कश्मीरी पश्मीना शॉल की खरीदारी करते पर्यटक। संवाद
- फोटो : credit
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कुरुक्षेत्र। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में लगे शिल्प मेले में जहां शिल्पकार अपनी-अपनी कारीगरी लेकर पहुंचे हैं। वहीं कश्मीरी पश्मीना शॉल भी अपनी धमक बनाए हुए हैं। पांच से छह माह में तैयार होने वाली यह शॉल पर्यटकों को खूब लुभा रही है। इसके साथ ही कश्मीरी सूट का भी अपना आकर्षण बना हुआ है।
कश्मीर से आए शिल्पकार अख्तर बताते हैं कि यहां उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका स्टॉल नंबर 303 व 771 पर मिला है। कई साल में लाखों रुपये के शॉल व कश्मीरी सूट वे गीता महोत्सव के दौरान पर्यटकों को बेच चुके हैं। इस गीता महोत्सव में आने वाले पर्यटक बहुत अधिक पसंद करते हैं।
उन्होंने कहा कि उच्च गुणवत्ता की पश्मीना शाॅल को बनाने में काफी समय लग जाता है। इस शाॅल की कीमत लाखों रुपये में होती है। इस शाॅल को वैरायटी के हिसाब से पांच या छह माह में भी तैयार किया जा सकता है। उन्होंने स्टॉल पर कश्मीरी शाॅल, लोई, कंबल, सूट, फैरन आदि उत्पादों को कुरुक्षेत्र और आस-पास के पर्यटकों के लिए रखा है। इस महोत्सव में सालों से पर्यटकों की कश्मीरी शाॅल की पेशकश को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। यहां महोत्सव में आने के लिए हमेशा उत्साहित रहते हैं। उन्होंने बताया कि पुस्तों से उनका परिवार कश्मीरी शाॅल बनाने का काम कर रहा है। इस महोत्सव में पश्मीना की कश्मीरी शाॅल जिसकी कीमत एक हजार रुपये से लेकर 25 हजार रुपये तक है, लेकर आए हैं।
डोगरा, सिख और मुगल काल में भी शॉल की जाती थी पसंद
अख्तर बताते हैं कि उच्च गुणवत्ता की कश्मीरी शाॅल बनाने में सालों का समय लग जाता है। इस शॉल को डोगरा, सिख और मुगल काल में भी पसंद किया गया है। उस समय पश्मीना का बड़ा शाॅल प्रयोग किया जाता था और राजा महाराजा इस शाल को बड़े ही शौक के साथ पहनते थे। इस शिल्पकला को बढ़ावा देेने के लिए सरकार की तरफ से भी मदद मिलती है।
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कश्मीर से आए शिल्पकार अख्तर बताते हैं कि यहां उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका स्टॉल नंबर 303 व 771 पर मिला है। कई साल में लाखों रुपये के शॉल व कश्मीरी सूट वे गीता महोत्सव के दौरान पर्यटकों को बेच चुके हैं। इस गीता महोत्सव में आने वाले पर्यटक बहुत अधिक पसंद करते हैं।
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उन्होंने कहा कि उच्च गुणवत्ता की पश्मीना शाॅल को बनाने में काफी समय लग जाता है। इस शाॅल की कीमत लाखों रुपये में होती है। इस शाॅल को वैरायटी के हिसाब से पांच या छह माह में भी तैयार किया जा सकता है। उन्होंने स्टॉल पर कश्मीरी शाॅल, लोई, कंबल, सूट, फैरन आदि उत्पादों को कुरुक्षेत्र और आस-पास के पर्यटकों के लिए रखा है। इस महोत्सव में सालों से पर्यटकों की कश्मीरी शाॅल की पेशकश को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। यहां महोत्सव में आने के लिए हमेशा उत्साहित रहते हैं। उन्होंने बताया कि पुस्तों से उनका परिवार कश्मीरी शाॅल बनाने का काम कर रहा है। इस महोत्सव में पश्मीना की कश्मीरी शाॅल जिसकी कीमत एक हजार रुपये से लेकर 25 हजार रुपये तक है, लेकर आए हैं।
डोगरा, सिख और मुगल काल में भी शॉल की जाती थी पसंद
अख्तर बताते हैं कि उच्च गुणवत्ता की कश्मीरी शाॅल बनाने में सालों का समय लग जाता है। इस शॉल को डोगरा, सिख और मुगल काल में भी पसंद किया गया है। उस समय पश्मीना का बड़ा शाॅल प्रयोग किया जाता था और राजा महाराजा इस शाल को बड़े ही शौक के साथ पहनते थे। इस शिल्पकला को बढ़ावा देेने के लिए सरकार की तरफ से भी मदद मिलती है।

मतदान केन्द्र क्र. 197 में पदस्थ बी.एल.ओ. रावेन्द्र प्रताप सिंह निलंबित।- फोटो : credit