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आशीष धौंचक: प्रतिभा के धनी मेजर हर काम में रहते थे आगे, चाचा बोले- वो कहते थे दुश्मनों को मिटाना ही है जिंदगी
अमर उजाला नेटवर्क, पानीपत
Published by: शाहरुख खान
Updated Fri, 15 Sep 2023 10:34 AM IST
सार
रिश्ते में आशीष के चाचा लगने वाले रमेश ने बताया कि उन्हें आशीष के खोने का गम है, लेकिन उनकी शहादत को वह नहीं पूरा गांव सैल्यूट करता है। जो काम गांव का कोई बड़ा नहीं कर पाया, वह आशीष ने एक पल में कर दिया। वे आतंकवादियों से भिड़ने में पीछे नहीं हटे।
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टीडीआई के ए ब्लॉक में मेजर आशीष का नया घर, जिसका फिलहाल निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है।
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
हर इंसान में कोई न कोई खूबी होती है। शहीद मेजर आशीष धौंचक में एक नहीं अनेक खूबियां थीं। या ये कहें कि वे इन सबके धनी थे तो दो राय न होगी। वे गांव में अपनी प्राथमिक शिक्षा के दौरान पढ़ाई के साथ खेलों में अव्वल रहते थे। वे हर किसी से घुल मिलकर रहते थे।
अपने साथियों के अलावा बड़े बुजुर्गों के साथ खेलने लगते थे। वे बेशक सेना में चले गए थे, लेकिन आज भी गांव जाते थे तो हर किसी से मिलने का प्रयास करते थे। ग्रामीण भी उन्हें बिना मिले नहीं जाने देते थे। मेजर आशीष धौंचक की शहादत के बाद शहर ही नहीं बल्कि बिंझौल गांव के भी आंसू नहीं थम पा रहे हैं।
बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग हर कोई मेजर आशीष की शहादत को सैल्यूट कर रहा है। बिंझौल गांव निवासी रमेश ने बताया कि आशीष शुरू से ही बहादुर था। वह पढ़ाई के साथ खेलों में हर समय आगे रहता था। परिवार के सदस्यों के साथ घुल मिलकर रहता था। वह चारों दादा के साथ समय मिलते ही खेलने लगता था।
वह उन्हें भी कहता था कि खेल में उम्र नहीं जोश देखना चाहिए। वह अपनी बातों से उन्हें खेलने के लिए तैयार कर देता था। वह स्कूल की प्राथमिक पढ़ाई पूरी करने के बाद एनएफएल स्थित केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने लगा। एनएफएल नजदीक होने पर छुट्टी के दिन गांव आ जाता था। वह स्कूल समय में भी नाटक के मंचन में सैनिक का रोल लेता था।
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अपने साथियों के अलावा बड़े बुजुर्गों के साथ खेलने लगते थे। वे बेशक सेना में चले गए थे, लेकिन आज भी गांव जाते थे तो हर किसी से मिलने का प्रयास करते थे। ग्रामीण भी उन्हें बिना मिले नहीं जाने देते थे। मेजर आशीष धौंचक की शहादत के बाद शहर ही नहीं बल्कि बिंझौल गांव के भी आंसू नहीं थम पा रहे हैं।
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बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग हर कोई मेजर आशीष की शहादत को सैल्यूट कर रहा है। बिंझौल गांव निवासी रमेश ने बताया कि आशीष शुरू से ही बहादुर था। वह पढ़ाई के साथ खेलों में हर समय आगे रहता था। परिवार के सदस्यों के साथ घुल मिलकर रहता था। वह चारों दादा के साथ समय मिलते ही खेलने लगता था।
वह उन्हें भी कहता था कि खेल में उम्र नहीं जोश देखना चाहिए। वह अपनी बातों से उन्हें खेलने के लिए तैयार कर देता था। वह स्कूल की प्राथमिक पढ़ाई पूरी करने के बाद एनएफएल स्थित केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने लगा। एनएफएल नजदीक होने पर छुट्टी के दिन गांव आ जाता था। वह स्कूल समय में भी नाटक के मंचन में सैनिक का रोल लेता था।
वह यहां से 12वीं की पढ़ाई पूरी कर बीटेक करने चला गया। इसके साथ एक जून 2013 में लेफ्टिनेंट के पद पर चयनित हो गया। गौरतलब है कि देहरादून में ट्रेनिंग के बाद जम्मू-कश्मीर में उन्हें पहली पोस्टिंग मिली। वे इसके बाद बठिंडा और मेरठ में तैनात रहे। दो साल पहले मेरठ से जम्मू कश्मीर में फिर तबादला हुआ।
डेकोरेटेड अफसर थे मेजर आशीष
मेजर आशीष सेना में डेकोरेटेड अफसर थे। डेकोरेटेड अफसर को नई रिबन, नया मेडल व नया पैच मिलता है। उन्हें 15 अगस्त को ही सेना मेडल से नवाजा गया है। बताया जा रहा है कि उनके अद्वितीय शौर्य के चलते उन्हें इस मेडल से नवाजा गया था।
मेजर आशीष सेना में डेकोरेटेड अफसर थे। डेकोरेटेड अफसर को नई रिबन, नया मेडल व नया पैच मिलता है। उन्हें 15 अगस्त को ही सेना मेडल से नवाजा गया है। बताया जा रहा है कि उनके अद्वितीय शौर्य के चलते उन्हें इस मेडल से नवाजा गया था।
प्रतिभा के धनी थे मेजर आशीष
परिजनों ने बताया कि मेजर आशीष धौंचक शुरू से ही प्रतिभा के धनी रहे हैं। चचेरे भाई विकास के साथ ही उन्होंने एसएसबी की परीक्षा दी थी। वह विकास के छह महीने बाद लेफ्टिनेंट बने, लेकिन अपनी प्रतिभा के बूते विकास से पहले मेजर बन गए।
परिजनों ने बताया कि मेजर आशीष धौंचक शुरू से ही प्रतिभा के धनी रहे हैं। चचेरे भाई विकास के साथ ही उन्होंने एसएसबी की परीक्षा दी थी। वह विकास के छह महीने बाद लेफ्टिनेंट बने, लेकिन अपनी प्रतिभा के बूते विकास से पहले मेजर बन गए।
जो कोई न कर पाया वह बेटे ने कर दिखाया
रिश्ते में आशीष के चाचा लगने वाले रमेश ने बताया कि उन्हें आशीष के खोने का गम है, लेकिन उनकी शहादत को वह नहीं पूरा गांव सैल्यूट करता है। जो काम गांव का कोई बड़ा नहीं कर पाया, वह आशीष ने एक पल में कर दिया। वे आतंकवादियों से भिड़ने में पीछे नहीं हटे। वो हमेशा कहा करता था कि दुश्मनों को मिटाना ही असली जिंदगी है। इसी साल उनको अदम्य साहस के लिए सेवा मेडल से नवाजा गया था।
रिश्ते में आशीष के चाचा लगने वाले रमेश ने बताया कि उन्हें आशीष के खोने का गम है, लेकिन उनकी शहादत को वह नहीं पूरा गांव सैल्यूट करता है। जो काम गांव का कोई बड़ा नहीं कर पाया, वह आशीष ने एक पल में कर दिया। वे आतंकवादियों से भिड़ने में पीछे नहीं हटे। वो हमेशा कहा करता था कि दुश्मनों को मिटाना ही असली जिंदगी है। इसी साल उनको अदम्य साहस के लिए सेवा मेडल से नवाजा गया था।
वह किराए के मकान में रखे सामान की पैकिंग कराकर रखने को कह रहे थे। कहते थे कि 23 अक्तूबर को अपने जन्मदिन पर गृह प्रवेश करना है। वह माता का जागरण भी कराने की तैयारी में था।