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Rohtak News: बैंक में गिरवी रखी संपत्ति के 18 साल बाद मांगे दस्तावेज
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माई सिटी रिपोर्टर
रोहतक। वैश्य संस्थान के नजदीक नया पड़ाव निवासी व रिटायर बैंककर्मी अनिल ने आयोग में याचिका दायर कर गिरवी रखी संपत्ति के मूल दस्तावेज मांगे। आयोग ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि शिकायतकर्ता ने लोन पूरा होने के बाद आवेदन करने का कोई दस्तावेज जमा नहीं कराया।
आयोग के रिकाॅर्ड के मुताबिक, नया पड़ाव निवासी अनिल ने 2019 में आयोग में याचिका दायर की थी कि 1978 में हिसार स्थित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में रिकाॅर्ड कीपर के तौर पर नौकरी लगे थे। 1985 में उन्होंने बैंक से 35 हजार रुपये का लोन लिया था। इसके लिए अपनी संपत्ति गिरवी रखी थी।
उन्होंने 2001 में लोन की राशि जमा करा दी। 2017 में वह सेवानिवृत्त हो गए। बैंक से कई बार संपत्ति के मूल दस्तावेज देने के लिए कहा लेकिन बैंक की तरफ से टालमटोल की जाती रही। आयोग से मांग की है कि उन्हें न केवल संपत्ति के मूल दस्तावेज दिलवाए जाएं बल्कि मानसिक उत्पीड़न करने पर 50 हजार व कानूनी खर्च के तौर पर 11 हजार रुपये दिलवाए जाएं।
आयोग ने बैंक को नोटिस दिया तो बैंक ने कहा कि मामला बहुत पुराना है और रिकाॅर्ड नहीं मिल रहा है। आयोग अर्जी खारिज करके बैंक को 22 हजार रुपये कानूनी खर्च का दिलवाएं। आयोग ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कहा है कि लोन की किस्त 2001 में पूरी हो चुकी है।
इसके 18 साल बाद आयोग में याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता ऐसा कोई दस्तावेज नहीं दे सका कि जिससे साबित हो कि उन्होंने संपत्ति के मूल दस्तावेज लेने के लिए आवेदन किया। बैंक के साथ लोन लेते समय जमा करवाए गए संपत्ति के मूल दस्तावेजों की कॉपी भी नहीं दी गई है।
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रोहतक। वैश्य संस्थान के नजदीक नया पड़ाव निवासी व रिटायर बैंककर्मी अनिल ने आयोग में याचिका दायर कर गिरवी रखी संपत्ति के मूल दस्तावेज मांगे। आयोग ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि शिकायतकर्ता ने लोन पूरा होने के बाद आवेदन करने का कोई दस्तावेज जमा नहीं कराया।
आयोग के रिकाॅर्ड के मुताबिक, नया पड़ाव निवासी अनिल ने 2019 में आयोग में याचिका दायर की थी कि 1978 में हिसार स्थित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में रिकाॅर्ड कीपर के तौर पर नौकरी लगे थे। 1985 में उन्होंने बैंक से 35 हजार रुपये का लोन लिया था। इसके लिए अपनी संपत्ति गिरवी रखी थी।
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उन्होंने 2001 में लोन की राशि जमा करा दी। 2017 में वह सेवानिवृत्त हो गए। बैंक से कई बार संपत्ति के मूल दस्तावेज देने के लिए कहा लेकिन बैंक की तरफ से टालमटोल की जाती रही। आयोग से मांग की है कि उन्हें न केवल संपत्ति के मूल दस्तावेज दिलवाए जाएं बल्कि मानसिक उत्पीड़न करने पर 50 हजार व कानूनी खर्च के तौर पर 11 हजार रुपये दिलवाए जाएं।
आयोग ने बैंक को नोटिस दिया तो बैंक ने कहा कि मामला बहुत पुराना है और रिकाॅर्ड नहीं मिल रहा है। आयोग अर्जी खारिज करके बैंक को 22 हजार रुपये कानूनी खर्च का दिलवाएं। आयोग ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कहा है कि लोन की किस्त 2001 में पूरी हो चुकी है।
इसके 18 साल बाद आयोग में याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता ऐसा कोई दस्तावेज नहीं दे सका कि जिससे साबित हो कि उन्होंने संपत्ति के मूल दस्तावेज लेने के लिए आवेदन किया। बैंक के साथ लोन लेते समय जमा करवाए गए संपत्ति के मूल दस्तावेजों की कॉपी भी नहीं दी गई है।