नगरोटा बगवां (कांगड़ा)। ओबीसी सामाजिक न्याय यात्रा को राजनीतिक मार्च के रूप में प्रचारित करना गलत है। यह यात्रा ओबीसी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से निकाली गई थी, जिसमें समाज के सभी वर्गों ने भागीदारी की। यह बात नगरोटा बगवां में प्रेसवार्ता में भारतीय क्षत्रिय घृत बाहती चाहंग (बीकेजीबीसी) हिमाचल इकाई के मुख्य सलाहकार कर्नल स्वरूप कोहली ने की।
कर्नल कोहली ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत गठित ओबीसी आयोगों की सिफारिशों को लागू करने में दशकों की देरी हुई। 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहला ओबीसी आयोग गठित हुआ था, जिनसे 1955 में सरकार को रिपोर्ट सौंपी गई थी। 1979 में बीपी मंडल की अध्यक्षता में दूसरा ओबीसी आयोग गठित हुआ। इसने अपनी रिपोर्ट 1980 में सरकार को सौंपी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने 10 साल तक कोई कार्रवाई नहीं की।
बीपी मंडल की सिफारिशें 7 अगस्त, 1990 को लागू की गईं, जिसका हिमाचल प्रदेश में पूर्णरूप से कार्यान्वयन अभी भी अपेक्षित है। 93वां संविधान संशोधन 20 जनवरी, 2006 को लागू हुआ था। हिमाचल देश का एकमात्र राज्य है जहां शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण अब तक लागू नहीं हुआ है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ओबीसी सामाजिक न्याय यात्रा किसी जाति-विशेष तक सीमित नहीं है। ओबीसी वर्ग में 48 जातियां और चार क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें अनुसूचित जाति और जनजाति को छोड़कर अन्य सभी जातियां आती हैं। कुछ लोग इस अभियान को जातिवादी रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, जो पूरी तरह भ्रामक है।