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हिमाचल प्रदेश: वजूद खो रहे परंपरागत घराट, कुल्लू में तीन साल में 451 का मिटा अस्तित्व; अब 500 भी नहीं बचे

गौरीशंकर, कुल्लू। Published by: अंकेश डोगरा Updated Thu, 23 Oct 2025 04:00 AM IST
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सार

Traditional Gharat in Himachal: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बीते तीन साल में ही 451 घराट अपना वजूद खो गए। लिहाजा, अब जिला में करीब 500 घराट ही बचे हैं, जिनमें चालू हालत में महज 200 के करीब ही बच पाए हैं। पढ़ें पूरी खबर...

number of traditional gharats is decreasing in Kullu district of Himachal Pradesh
कुल्लू जिले के गड़सा घाटी में लगे घराट के अंदर का दृश्य। - फोटो : अमर उजाला नेटवर्क
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पहाड़ की पथरीली ढलानों में कभी घर्रर-घर्रर की गूंजती आवाज... जीवन की लय हुआ करती थी। इन घराटों की दहलीज पर लोकगीत पनपते थे और प्रेम के किस्से जन्म लेते थे। लेकिन समय के साथ ये घराट मिटते गए और इनके साथ एक भावनात्मक अध्याय थी थम गया। कुल्लू जिले में बीते तीन साल में ही 451 घराट अपना वजूद खो गए। यह आंकड़ा अपने आप में बहुत बड़ा है। हालांकि, करीब ढाई दशक पहले जिला में 2,500 से अधिक परंपरागत घराट हुआ करते थे।

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जैसे ही जिले में बागवानी और नकदी फसलों की ओर लोगों का रुझान बढ़ता गया, तब से घराट का वजूद खतरे में पड़ना शुरू हो गया था। इससे परंपरागत कृषि करने वाले किसानों की संख्या में भी काफी गिरावट आई और घराट में पिसाई के लिए अनाज न मिलने से ये घराट वीरान पड़ने लगे, रही सही कसर आपदा ने पूरी कर दी। लिहाजा, अब जिला में करीब 500 घराट ही बचे हैं, जिनमें चालू हालत में महज 200 के करीब ही बच पाए हैं। ये घराट उन क्षेत्र के नालों में हैं, जहां अभी भी गेंहूं, मक्की, जौ, कादरा, सलियारा, काउणी, चीणी आदि परंपरागत अनाज की खेती हो रही है और इन नालों में काफी लंबे अरसे से कोई बाढ़ नहीं आई।



बीते तीन वर्षों में बाढ़ के कारण तबाह हुए घराटों की बात करें तो वर्ष 2023 की बाढ़ ने सैंज की पिन पार्वती, पार्वती, ब्यास, सहित अन्य नालों में आई बाढ़ ने 415 घराट तबाह किए थे। जबकि वर्ष 2024 में भी जिलाभर के नदी-नालों में आई बाढ़ से 28 घराट नष्ट हुए थे। इस बार आई आपदा में 8 घराट का वजूद खत्म हो गया।
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प्रोजेक्ट और विद्युतीकरण
जानकारों का मानना है कि जब से विद्युत प्रोजेक्ट लगने शुरू हुए, उससे कई नाले सूख गए और घराट बंद होने शुरू हुए। जबकि बिजली से चलने वाली चक्की के कारण भी इस पर काफी असर देखने को मिला। साहित्यकार डाॅ. सूरत ठाकुर का कहना है कि घराट के कम होने का सबसे बड़ा कारण विद्युतीकरण रहा है और कुछ वर्षों से आ रही बाढ़ ने भी काफी संख्या में घराट का अस्तित्व मिटा दिया है। एक जमाने में लोग सर्दियां आने से पहले इन घराटों से अनाज पिसाकर ले जाते थे और बर्फ गिरने पर आराम से बैठकर खाते थे। अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है।

तीन साल में 451 घराट बाढ़ की भेंट चढ़े हैं। इसमें सबसे ज्यादा वर्ष 2023 की आपदा में नष्ट हुए थे। राजस्व विभाग ने इसकी वर्ष के हिसाब से रिपोर्ट तैयार की है।- गणेश ठाकुर, जिला राजस्व अधिकारी
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