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चुनाव के दौरान ‘राइट टू एजूकेशन एक्ट’ हुआ हल्का

Sirmour Updated Fri, 02 Nov 2012 12:00 PM IST
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नाहन (सिरमौर)। स्कूलों में जारी राइट टू एजूकेशन एक्ट पूरी तरह से फलीभूत नहीं हो पाया है। नियम तथा कार्यप्रणाली में जमीन और आसमान का अंतर है। शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में राइट टू एजूकेशन के तहत कार्य करने में भारी अंतर है। फिलहाल इस कमी का कारण मूलभूत सुविधाओं का अभाव तथा जिला के कई क्षेत्रों में भारी संख्या में शिक्षकों के खाली पड़े पदों को माना जा रहा है।
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वर्ष 2009 में लागू हुआ शिक्षा का अधिकार कानून, शिक्षा तथा विद्यार्थियों के लिए बना है। इसके तहत 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के बच्चों को हर हाल में स्कूलों में जाना अनिवार्य है। सभी स्कूलों में आईटी के तहत शिक्षा के नियम लागू हैं। मगर वस्तु स्थिति कुछ स्कूलों में अलग है, मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।
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कुछ स्थानों पर बालिकाओं के लिए शौचालयों की उत्तम व्यवस्था नहीं है। जिला के आधे से अधिक गरीब ग्रामीण विद्यार्थियों को राइट टू एजूकेशन के बारे पूरी जानकारी हासिल नहीं है। शिक्षा विदों तथा जानकारों का मानना है कि दूर दराज क्षेत्रों में भौगोलिक परिस्थितियां आड़े आ रही हैं। बुद्धिजीवियों का मानना है कि चुनाव तथा अन्य कार्यक्रम के समय राइट टू एजूकेशन प्रक्रिया कर्मचारियों की कमी के चलते प्रभावित होती है।
मूलभूत सुविधाओं के अभाव तथा भौगोलिक परिस्थितियों के कारण अभी इस अधिकार को पूर्ण रुप से स्थापित होने में समय लगेगा। आईटी एजूकेशन के तहत सरकार स्कूली बच्चों को यूनिफार्म, मिड डे मील तथा पुस्तकें मुफ्त वितरण कर रही है। समाज सेवी तथा शिक्षा विद डा. सुरेश जोशी कहते हैं कि यदि शैक्षणिक संस्थानों में कर्मचारियों की संख्या माकूल हो तो राइट टू एजूकेशन प्रक्रिया अधिक कारगर होगी।
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