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Amar Ujala Samwad: कैसे बनेगा स्वस्थ भारत? उजाला सिग्नस प्रमुख बोले- जमीनी बदलाव अहम; अगम खरे ने भी बताए उपाय

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गुरुग्राम / नई दिल्ली। Published by: रिया दुबे Updated Wed, 17 Dec 2025 12:21 PM IST
सार

अमर उजाला संवाद हरियाणा: उजाला सिग्नस के सीईओ नितिन नाग और एब्सोल्यूट के फाउंडर अगम खरे ने बताया 'स्वस्थ भारत' का मंत्र। पढ़ें, क्यों जरूरी है नेटिव फूड, बायो-पेस्टिसाइड्स और छोटे शहरों में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार।

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संवाद - फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
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अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच पर 'स्वस्थ भारत' की परिकल्पना पर गंभीर विमर्श हुआ। चर्चा में शामिल विशेषज्ञों ने माना कि देश को सेहतमंद बनाने के लिए एक तरफ जहां हमें अपने खानपान में 'देसी' और 'प्राकृतिक' तरीकों को अपनाना होगा, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य सेवाओं को मेट्रो शहरों से निकालकर छोटे कस्बों तक ले जाना होगा। बायोसाइंस विशेषज्ञ अगम खरे ने जहां भोजन में 'माइक्रोबायोम' और 'नेटिव फूड' के संतुलन पर जोर दिया, वहीं नितिन नाग ने हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को टीयर-2 और टीयर-3 शहरों तक पहुंचाने को स्वर्णिम भारत की पहली शर्त बताया।

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विकास मेट्रो फोक्सड है- नाग

नाग ने कहा कि उन्होंने कहा कि अगर हम देखें तो विकास अधिकतर मेट्रो शहरों में हुआ है। विकास मेट्रो फोकस्ड है। ज्यादातर सुविधाएं मेट्रो में स्टेबल है। इस कारण से टीयर 2 और टीयर 3 शहरों में नुकसान हुआ है। हेल्थ इंफ्रा यानी स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा शहरों से गांवों तक नहीं पहुंच पाया है। इंफ्रा का कॉस्ट भी बढ़ता ही जा रहा है। इससे लोगों को दिक्कत होती है। मेट्रो शहरों में दिक्कत उतना दिखता नहीं है। यहां लोग अफोर्ड कर सकते हैं। पर मेट्रो शहरों से बाहर जाने पर समस्याएं ज्यादा दिखती है। 

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हेल्थकेयर को डिजिटल बनाने पर नितिन ने कहा कि इस क्षेत्र में नई तकनीकों से सुविधाओं को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे कन्टीन्यूटी ऑफ केयर को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसे सुधारने के लिए हम प्राइमरी केयर सेंटर खोल रहे हैं।

टैलेंट सप्लाई गैप पर दिया जोर 


 

उन्होंने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े मानव संसाधन को सही जगह पर बनाए रखना थोड़ा मुश्किल है। हालांकि अब सोच बदल रही है। फिलहाल मेट्रो से लेकर छोटे शहरों तक का सफर तय करना जरूरी है। दिल्ली में एक जगह से दूसरी जगह पहुंचना और गुड़गांव में एक जगह से दूसरी जगह पहुंचना काफी बेहतर है। इस वजह से लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है।




नाग ने कहा कि हमारे हॉस्पिटल नेटवर्क में 5000 लोग काम कर रहे हैं इनमें से 85 प्रतिशत वहीं से हैं। हम लोकल आंत्रप्रन्योरशिप को प्रमोट कर कर रहे हैं। पर टैलेंट सप्लाई गैप अभी भी है। छोटे शहरों में कमी के हिसाब से यह गैप दूर नहीं हुआ है।

नाग ने कहा कि इसका समाधान जल्दी मिलना मुश्किल है। आज के समय में पश्चिम में एक धारणा है मैनेज्ड केयर की। इसमें बीमा और इलाज एक ही कंपनी करती है। जब दोनों एक साथ होते हैं तो मेंटेनिंग हेल्थ की सुविधा मिलती है। इसमें प्रीवेंटिव हेल्थकेयर पर फोकस होता है। ऐसा होने से मैनेजमेंट ऑफ हेल्थ पर फोकस होगा। इससे खर्चे कम होंगे पर यह अधिक समय लेगा।

मेट्रो के विकास के साथ छोटे शहरों को भी जोड़ना होगा 

उन्होंने आगे कहा कि इस देश में विकास मेट्रो फोक्स्ड हुआ है। इसी वजह से लोगों को इलाज के लिए घर बेचकर भी शहरों की ओर आना पड़ता है। अगर स्वर्णिम भारत की बात करें तो हमें इस समस्या को हल करना होगा। मेट्रो के विकास के साथ छोटे शहरों को भी जोड़ना होगा। जब ये शहर विकास से जुड़ेंगे तभी हम स्वर्णिम भारत की ओर बढ़ पाएंगे।

खरे ने खाद्य उत्पादन को लेकर तीन अहम समस्याओं का किया जिक्र

बायोसाइंस के क्षेत्र में काम करने वाले अगम खरे जी ने कहा कि तीन समस्याएं हैं। पहली समस्या है कि आज विश्व में हम इतना खाना उत्पादन करते हैं कि दुनिया को समय पर भोजन मिल सकता है। पर वह समय पर पहुंच नहीं पाता है। ऐसा शहरों से दूर गांवों में उत्पादन के कारण होता है। कुछ दक्षिण में उगता है तो कुछ उत्तर में। अगर हमारी सप्लाई चेन मजबूत नहीं होगी तो हमें परेशानी होगी। इसे मजबूत करना बड़ी चुनौती है। सरकार ने इस दिशा में अच्छे कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि खान-पान और पोषण के प्रति लोगों में जागरूकता भी जरूरी है। 

नेटिव फूड खाने पर आपका शरीर अच्छा रेस्पॉन्ड करता है


 

खरे ने आगे कहा कि हर मनुष्य की अपनी खुद की माइक्रोबायोम यानी सूक्ष्मजीवों होती है। इसमें करीब 40 ट्रिलियन जीवाणु होते हैं। ये स्वस्थ रहे तो इंसान भी स्वस्थ रहता है। जब तक आप नेटिव फूड खाते रहते हैं तो आपका शरीर उसे अच्छे से रेस्पॉन्ड करता है। नई चीज खाने पर उसे एडजस्ट करने पर समय लगता है। आपका शरीर क्या चाहता है उसी अनुसार हमें भोजन का चयन करना चाहिए।



खरे ने कहा कि जरूरी नहीं है रील्स पर दिख रहा हर चीज सही हो। इसे तौलना जरूरी है। हमें तय करना होगा कि हमारे शरीर के लिए सबसे उचित खाना क्या है। जीवन में सबसे जरूरी चीज है कि धरती से जुड़ी हुई चीजों को असल रूप में इस्तेमाल करें। इसे अधिक बनावटी बनाएंगे तो परेशानी होगी।

उन्होंने कहा कि प्रोटीन डिफिशिएंशी देश होने के कारण लोगों में प्रोटीन खाने की होड़ है। यह सही नहीं है। ऐसा किसी प्रोफेशनल की परामर्श से ही किया जाना चाहिए। जीवन में जो समय हमें मिला है उसमें ऑथेंटिक होना हमारे लिए जरूरी है। जब तक आप ऐसा करेंगे तो आप पैसे के लिए कॉम्प्रोमाइज नहीं करेंगे।

बायो पेस्टिसाइड्स के इस्तेमाल पर दिया जोर

खरे ने कहा कि हम खेतों में पड़ने वाले केमिकल बेस्ड पेस्टिसाइड्स के बारे में काम कर रहे हैं। उन्हें दूर करने के लिए हमने प्रकृति आधारित समाधान बनाए हैं। इन्हें बायो पेस्टिसाइड्स कहते हैं। जब हमने ऐसा पहली बार किया तो 15 लाख किसानों ने इसमें रुचि दिखाई। जहर तो जहर ही है। इसे किसी भी मात्रा में लेने पर नुकसान होता है। जमीन तो एक जीवित चीज है। इसमें केमिकल डालने से ये मरते जाते हैं। शुरू में इससे उपज बढ़ती है पर फिर घटती है। अब नेचुरल फॉर्मिंग का दौर बढ़ रहा है। इससे मिट्टी की मजबूती बढ़ेगी उसे अधिक पोषक तत्व मिलेगा। इसी से पौधे को मजबूती मिलती है। बदलते जलवायू के साथ यह और जरूरी हो गया है। आने वाले चार-पांच वर्षों में इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा। धीरे-धीरे इस बारे में लोगों की जागरूकता बढ़ रही है। बायो पेस्टिसाइड से केमिकल पेस्टिसाइड को बदला जा सकता है। इस बारे में भविष्य में चर्चा नहीं होगी। एक संतुलन की जरूरत है। हम पोषण से जुड़ा भी काम कर रहे हैं। हम शरीर में रहने वाले जीवाणुओं पर नजर रखते हैं। उनके सेलुलर बायोलॉजी को समझते हुए उत्पाद बनाए हैं। उसमें एक वेराइटी ऑफ प्रोडक्ट हमने डिजाइन किए हैं। इससे दवाओं में बदलाव होगा। हमने एक प्रोटीन बनाया है जो चीनी की तरह टेस्ट करता है।

भविष्य का भारत बनाने के लिए ये जरूरी- खरे

उन्होंने कहा कि स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी और स्वच्छ खाना भविष्य का भारत बनाने की लिए जरूरी है। छोटे-छोटे इलाकों को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए। इसे एक परियोजना की तरह लेकर इस पर काम करना होगा।

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