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अरावली बचाने की लड़ाई तेज: सुप्रीम कोर्ट से फैसले पर पुनर्विचार की मांग; सचिन पायलट ने BJP सरकार पर उठाए सवाल

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली/जयपुर Published by: शिवम गर्ग Updated Tue, 23 Dec 2025 09:05 AM IST
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सार

Aravalli Hills Controversy: अरावली पहाड़ों पर अवैध खनन को लेकर कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने सुप्रीम कोर्ट से फैसले पर पुनर्विचार की मांग की। भाजपा शासित राज्यों और केंद्र सरकार पर पर्यावरण संकट बढ़ाने का आरोप लगाया।

Aravalli Hills Row: Sachin Pilot Urges Supreme Court Review, Targets BJP Governments Over Environmental Threat
सचिन पायलट, कांग्रेस नेता - फोटो : Amar Ujala Graphics
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विस्तार
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अरावली पहाड़ियों के संरक्षण को लेकर सियासत और पर्यावरण बहस तेज हो गई है। कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अरावली से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार की मांग करते हुए केंद्र और चार भाजपा शासित राज्यों को कटघरे में खड़ा किया है।

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सचिन पायलट ने कहा कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली चारों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, साथ ही केंद्र में भी भाजपा सत्ता में है। ऐसे में अगर सभी चार इंजन मिलकर काम करें, तो सुप्रीम कोर्ट से आग्रह कर अरावली क्षेत्र को पूरी तरह संरक्षित किया जा सकता है।
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‘अरावली से जुड़ा है NCR का भविष्य’
पायलट ने आगाह किया कि अरावली पहाड़ियां पूरे एनसीआर के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच की तरह काम करती हैं। यदि यहां अवैध खनन और पर्यावरणीय दोहन इसी तरह चलता रहा, तो इसके गंभीर नतीजे सामने आएंगे। इससे रेगिस्तान का विस्तार तेज होगा, प्रदूषण और जल संकट और गहराएगा तथा जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि अगर आज अरावली को बचाने में हम नाकाम रहे, तो आने वाली पीढ़ियों को हम क्या विरासत सौंपेंगे?



26 दिसंबर को जयपुर में बड़ा मार्च
कांग्रेस नेता पायलट ने बताया कि 26 दिसंबर को जयपुर में छात्र संगठनों और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ एक बड़ा मार्च निकाला जाएगा। इसका उद्देश्य अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा के लिए जनसमर्थन जुटाना और सरकारों पर दबाव बनाना है। सचिन पायलट ने कहा कि अवैध खनन पर प्रभावी रोक न लगाकर भाजपा सरकारें पर्यावरण को गंभीर खतरे में डाल रही हैं। उन्होंने कहा कि यदि अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो पूरे क्षेत्र की पारिस्थितिकी असंतुलित हो जाएगी।

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अरावली की परिभाषा पर बवाल - फोटो : अमर उजाला

2010 बनाम 2024: 100 मीटर परिभाषा का सच क्या है?
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि यह सत्य है कि 2003 में तत्कालीन राज्य सरकार को विशेषज्ञ समिति (एक्सपर्ट कमिटी) ने आजीविका और रोजगार के दृष्टिकोण से '100 मीटर' की परिभाषा की सिफारिश की थी, जिसे राज्य सरकार ने एफिडेविट के माध्यम से 16 फरवरी 2010 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे महज तीन दिन बाद 19 फरवरी 2010 को ही खारिज कर दिया था। हमारी सरकार ने न्यायपालिका के आदेश का पूर्ण सम्मान करते हुए इसे स्वीकार किया और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिय से मैपिंग करवाई।



हमारी कांग्रेस सरकार ने पहली बार अरावली में अवैध खनन पकड़ने के लिए गंभीर प्रयास करते हुए 'रिमोट सेंसिंग' का उपयोग करने के निर्देश दिए। 15 जिलों में सर्वे के लिए 7 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया। राज्य सरकार ने अवैध खनन को रोकने की सीधी जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक और जिला कलेक्टर को सौंपी। खान विभाग के साथ पुलिस को भी कार्रवाई के अधिकार दिए गए, जिससे अवैध खनन पर लगाम लगी। सवाल यह है कि जो परिभाषा सुप्रीम कोर्ट में 14 साल पहले 2010 में ही 'खारिज' हो चुकी थी, उसी परिभाषा का 2024 में राजस्थान की मौजूदा भाजपा सरकार ने समर्थन करते हुए केन्द्र सरकार की समिति से सिफारिश क्यों की? क्या यह किसी का दबाव था या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है?

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