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Tamil Nadu: हाईकोर्ट में केंद्र की दलील खारिज, अदालत बोली- श्रीमद्भगवद्गीता धर्म ग्रंथ नहीं, नैतिक विज्ञान है

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चेन्नई Published by: शिवम गर्ग Updated Tue, 23 Dec 2025 11:21 AM IST
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सार

Madras High Court: मद्रास हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि नैतिक विज्ञान है। कोर्ट ने एफसीआरए के तहत विदेशी फंडिंग रोकने का केंद्र का आदेश रद्द कर पुनर्विचार के निर्देश दिए। जानिए मामला...

Bhagavad Gita is moral science, not a religious text, rules Madras High Court in FCRA case Hindi Details
मद्रास उच्च न्यायालय - फोटो : ANI
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विस्तार
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मद्रास हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के संदर्भ में श्रीमद्भगवद्गीता को धार्मिक ग्रंथ नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि केवल गीता और योग की शिक्षा देने के आधार पर किसी ट्रस्ट को एफसीआरए पंजीकरण से वंचित नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर कोर्ट ने अर्शा विद्या परंपरा ट्रस्ट को एफसीआरए पंजीकरण देने से इनकार करने के केंद्रीय गृह मंत्रालय के फैसले को खारिज कर दिया।

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यह मामला तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित एक ट्रस्ट से जुड़ा है, जो श्रीमद्भगवद्गीता के अध्ययन और शिक्षण का कार्य करता है। केंद्र सरकार ने यह कहते हुए ट्रस्ट का एफसीआरए आवेदन खारिज कर दिया था कि उसकी गतिविधियां धार्मिक प्रकृति की हैं, इसलिए उसे विदेशी फंडिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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जानिए हाईकोर्ट ने क्या कहा
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जी. आर. स्वामीनाथन ने स्पष्ट शब्दों में कहा श्रीमद्भगवद्गीता कोई धार्मिक पुस्तक नहीं है, बल्कि यह जीवन मूल्यों और नैतिकता की शिक्षा देने वाला ग्रंथ है। यह भारतीय सभ्यता का एक अभिन्न अंग है। गृह मंत्रालय ने तर्क दिया था कि श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद, वेदांत और संस्कृत के शिक्षण पर केंद्रित होने के कारण ट्रस्ट एक धार्मिक संगठन है। अदालत ने पाया कि यह तर्क एफसीआरए की धारा 11 की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है। कोर्ट ने कहा किश्रीमद्भगवद्गीता को केवल धर्म से जोड़कर देखना उसकी व्यापक दार्शनिक और नैतिक शिक्षाओं को सीमित करना है। यह ग्रंथ मनुष्य के कर्तव्य, कर्म और जीवन मूल्यों की बात करता है, जो किसी एक धर्म तक सीमित नहीं हैं।

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केंद्र सरकार को पुनर्विचार के निर्देश
हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह ट्रस्ट के FCRA आवेदन पर नए सिरे से विचार करे और केवल ‘धार्मिक’ टैग के आधार पर किसी संस्था को विदेशी फंडिंग से वंचित न किया जाए। ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ वकील श्रीचरण रंगराजन और अधिवक्ता मोहम्मद आशिक ने याचिका पर बहस की। केंद्रीय गृह मंत्रालय और दूसरे प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एआरएल सुंदरेशन ने किया, जिनकी सहायता भारत के उप सॉलिसिटर जनरल के गोविंदराजन ने की।

समझिए क्या था यह मामला
ट्रस्ट ने 2021 में एफसीआरए पंजीकरण के लिए आवेदन किया था, लेकिन यह अनुरोध कई वर्षों तक लंबित रहा। गृह मंत्रालय ने 2024 और 2025 में स्पष्टीकरण मांगा और जनवरी 2025 में दायर किया गया एक नया आवेदन आखिरकार सितंबर, 2025 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद ट्रस्ट ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। मंत्रालय द्वारा आवेदन खारिज करने का एक प्रमुख कारण यह बताया गया कि ट्रस्ट धार्मिक प्रतीत होता है।

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