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Nitish Kumar: 20 साल बाद भी बिहार की सत्ता का पर्याय हैं नीतीश, ये है अब तक का सियासी इतिहास

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Thu, 20 Nov 2025 02:32 PM IST
सार

आखिर बिहार विधानसभा चुनावों में 2005 से लेकर क्या-क्या हुआ है? किस तरह राज्य में अलग-अलग पार्टियों की सीटें और वोट प्रतिशत लगातार ऊपर-नीचे हुए हैं, लेकिन नीतीश कुमार किंग या किंगमेकर ही रहे हैं? इसके अलावा कैसे कम सीटें और वोट पाने के बावजूद नीतीश कुमार ने कैसे अपनी सत्ता बनाए रखी? आइये जानते हैं...

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Bihar Cabinet Oath taking ceremony Nitish Kumar Profile Political Journey from 2005 win to Chief Minister 2025
बिहार में नीतीशे कुमार। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की बंपर जीत के बाद नई कैबिनेट का गठन गुरुवार को पूरा हो गया है। 243 सदस्यों वाली विधानसभा में फिलहाल 27 मंत्री रखे गए हैं। इनमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के अलावा विजय सिन्हा को भी उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। इसके अलावा 24 अन्य नेताओं को भी कैबिनेट में जगह दी गई है। 
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इसी के साथ एक बार फिर राज्य में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार का कार्यकाल शुरू हो गया। बिहार में अब बीते 20 वर्षों की तर्ज पर ही नीतीश के फिर से सत्ता के शीर्ष पर काबिज हैं। 2005 के अंत में शुरू हुआ नीतीश कुमार का शासन अब अगले पांच साल चल सकता है।
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ऐसे में यह जानना अहम है आखिर नीतीश कुमार कौन हैं, उनका सियासी सफर कैसा रहा है? बिहार में 2005 में पहली बार नीतीश के मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक क्या-क्या हुआ है? किस तरह राज्य में अलग-अलग पार्टियों की सीटें और वोट प्रतिशत लगातार ऊपर-नीचे हुए हैं, लेकिन नीतीश कुमार किंग या किंगमेकर ही रहे हैं? इसके अलावा कैसे कम सीटें और वोट पाने के बावजूद नीतीश कुमार ने कैसे अपनी सत्ता बनाए रखी? आइये जानते हैं...

कौन हैं नीतीश कुमार, कैसे हुई राजनीतिक सफर की शुरुआत?
नीतीश कुमार का जन्म 1951 में नालंदा के कल्याण बीघा गांव में हुआ था। नीतीश के पिता देश के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल रहे थे, ऐसे में वे खुद सियासत में काफी रुचि रखते थे। वे राम मनोहर लोहिया की समाजवादी नीतियों से काफी प्रभावित थे। 

बताया जाता है कि उनके और लालू प्रसाद यादव के सियासी सफर की शुरुआत लगभग एक ही समय हुई थी। यह समय था कर्पूरी ठाकुर के समाजवादी नेतृत्व का। कर्पूरी ठाकुर जनता पार्टी की सरकार के दौरान 1970 के दशक में बिहार में ओबीसी आरक्षण के अगुआ रहे थे। 

कैसी रही सियासत में शुरुआत?

नीतीश पहली बार सियासत में 1977 में उतरे, जब पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल बन चुका था। इस दौर में जनता पार्टी मजबूती से उभरी और लगभग पूरे देश में वर्चस्व बनाया। हालांकि, नीतीश कुमार चुनावी राजनीति में बेहतर शुरुआत नहीं कर पाए। वे जनता पार्टी की तरफ से हरनौत विधानसभा सीट से उतरे और एक निर्दलीय उम्मीदवार से हार गए। यह वह दौर था, जब नीतीश कुमार ने निराशा में राजनीति तक छोड़ने का मन बना लिया था। हालांकि, उनके करीबियों ने किसी तरह उन्हें मना लिया। 1985 में वे एक बार फिर हरनौत सीट से ही लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़े और आखिरकार जीते। 

बाद में नीतीश ने 1989 में लोकसभा चुनाव में बाढ़ से जीत हासिल करने के बाद वे बिहार की राजनीति से कुछ दूर भी हुए। वे वीपी सिंह की सरकार में कृषि राज्य मंत्री बने। 1991 में उन्होंने जनता दल के टिकट पर बाढ़ से फिर जीत हासिल की। हालांकि, तीन साल बाद ही उन्होंने जनता दल से अलग होकर 1994 में जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बना ली। उनका यही धड़ा बाद में जनता दल यूनाइटेड यानी जदयू बना। 

1990 का दौर, जब लालू की सीएम कुर्सी को उनके 'छोटे भाई' से ही हुआ खतरा

1990 के दौर में बिहार में लालू प्रसाद यादव का वर्चस्व स्थापित हो चुका था। वे लगातार दो बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद उन्होंने खुद पद छोड़ दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया। यह वह दौर था, जब लालू को पिछड़ी जातियों का जबरदस्त समर्थन मिला था, हालांकि चारा घोटाले में नाम आने के बाद उनका यह मतदाता आधार उनसे दूरी बनाने लगा था। 

यही वह दौर था, जब इंजीनियर से नेता बने नीतीश कुमार उभार पर आए। कभी लालू प्रसाद यादव के 'छोटे भाई' के तौर पर उनके विश्वासपात्र माने जाने वाले नीतीश ने धीरे-धीरे पिछड़ी जातियों, खासकर कुर्मी-कुशवाहा समाज को अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया। इसके अलावा उन्होंने अति-पिछड़ा समाज (ईबीसी) के बीच भी पैठ बनाई। इस जातीय समीकरण को बिठाकर उन्होंने लालू यादव के समर्थन में खड़े यादव समुदाय की एकजुटता की काट खोजी।

Bihar Cabinet Ministers List: बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत 27 मंत्रियों ने ली शपथ, देखें लिस्ट

साल 2000 आते-आते नीतीश कुमार नेता के तौर पर मजबूत होते चले गए। 2000 का चुनाव मार्च में हुआ था। गौर करने वाली बात यह है कि तब तक बिहार से झारखंड अलग नहीं हुआ था। इस चुनाव में भी राजद मजबूती से उभरी। उसने 324 में से 293 सीटों पर चुनाव लड़ा और 124 सीटें जीतीं। पार्टी बहुमत से दूर रह गई। दूसरी तरफ भाजपा को इस चुनाव में बढ़त मिली और उसे 168 में से 67 सीटें मिलीं। नीतीश कुमार की समता पार्टी 34 सीट और कांग्रेस 23 सीटें जीतने में सफल रही।   



2000 में खंडित जनादेश के चलते सरकार बनाने की जंग छिड़ गई। नीतीश कुमार ने अपनी समता पार्टी के लिए भाजपा और अन्य दलों के गठबंधन के जरिए पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, उनके पास कुल-मिलाकर भी महज 151 विधायकों का ही समर्थन था, जो कि बहुमत के आंकड़े 163 से कम ही था। इसके चलते नीतीश को 7 दिन में ही अपना पद छोड़ना पड़ा। बिहार की कमान एक बार फिर राजद के हाथों में आ गई और लालू के जोड़-तोड़ की बदौलत राबड़ी देवी फिर मुख्यमंत्री बनीं। 

2005 में क्यों हुए दो बार चुनाव, 7 महीने में कैसे बदले सारे समीकरण
बिहार में 1990, 1995, 2000 के चुनाव में लालू प्रसाद यादव सत्ता में आए। उस दौर में तो यहां तक कहा जाता था कि समोसे में जब तक आलू रहेगा, तब तक बिहार की सत्ता में लालू रहेंगे।  हालांकि, 2005 के चुनाव में स्थितियां पूरी तरह बदल गईं। ये स्थितियां ऐसी बदलीं की सात महीने के भीतर राज्य में दो बार चुनाव हुए।  

 फरवरी 2005 में बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद पहली बार चुनाव हुए। 243 सीटों वाली विधानसभा के लिए राजद ने 215 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन उसे 75 सीटें मिलीं। जदयू और भाजपा गठबंधन में 138 सीटों पर चुनाव लड़ा जदयू 55 सीटें हासिल कर सका। 103 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को 37 सीटें मिलीं। इस तरह 92 सीटें जीतने वाला एनडीए भी बहुमत से दूर रह गया।  

जब किंगमेकर बनी लोजपा, पर बिहार को किंग नहीं मिला 
इस चुनाव में जिस पार्टी ने अपने प्रदर्शन से सबसे ज्यादा चौंकाया, वह रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) थी।  लोजपा को इस चुनाव में 29 सीटें मिलीं। वहीं, 84 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली कांग्रेस 10 सीट ही जीत सकी। नतीजों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। जोड़तोड़ शुरू हुई। लोजपा किंगमेकर की भूमिका में थी। कहा जाता है कि नतीजों के बाद रामविलास पासवान इस बात पर अड़ गए कि वो किसी भी गठबंधन को समर्थन तभी देंगे जब किसी मुस्लिम को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। गतिरोध कायम रहा। लोजपा की शर्तों के आगे कोई समाधान नहीं निकल सका। अंतत: राज्य में नए सिरे से चुनाव हुए।  

सात महीने में बदल गया बिहार
चुनाव बाद किसी सरकार का गठन नहीं होने के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। अक्तूबर-नवंबर में फिर चुनाव हुए। महज सात महीने बाद हुए इस चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिल गया। जदयू को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। इस तरह एनडीए 143 सीट जीतकर सत्ता में आया और नीतीश कुमार राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। लालू यादव की राजद को महज 54 सीट से संतोष करना पड़ा। वहीं, फरवरी में किंगमेकर बनी लोजपा 29 से घटकर 10 सीट पर आ गई। कांग्रेस को इस बार केवल नौ सीट पर जीत मिली।  

2005-10: जब नीतीश ने मजबूत की बिहार पर अपनी पकड़
2010 तक पसमांदा मुस्लिमों को सरकारी नौकरी में आरक्षण, महिलाओं को पंचायत-निकायों में आरक्षण, पिछड़ों में अति पिछड़ों के लिए कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूले के आधार पर आरक्षित पदों के भीतर आरक्षण की व्यवस्था करके नीतीश कुमार ने महिलाओं, मुस्लिमों और अति पिछड़ों में अपना नया जनाधार तैयार किया। इसका असर अगले चुनाव में भी देखने को मिला, जब नीतीश एकतरफा जीत दर्ज की।

2010 का विधानसभा चुनाव
2010 के चुनाव में नीतीश को अपनी योजनाओं जबरदस्त फायदा हुआ। जदयू और भाजपा गठबंधन 243 में से 206 सीटें जीतने में सफल रहा। एनडीए का वोट प्रतिशत भी करीब 40 फीसदी तक पहुंच गया। 141 सीटों पर चुनाव लड़ा जदयू 115 सीटों पर जीतने में सफल रहा। वहीं, 102 सीटों पर चुनाव लड़ी भाजपा को 91 सीटों पर जीत मिली। दूसरी तरफ लालू का राजद महज 22 सीट पर सिमट गया। कांग्रेस को महज चार सीटें तो लोजपा को तीन सीटें मिलीं।  

2010-15: सुशासन बाबू का तमगा पाया, भाजपा से गठबंधन तोड़ा
अपने दूसरे पूर्ण कार्यकाल में नीतीश कुमार ने बिहार के मूलभूत ढांचे के विकास पर ध्यान देना शुरू किया। टूटी-फूटी सड़कों की मरम्मत से लेकर उनके चौड़ीकरण का काम और इसके बाद बिहार की बिजली व्यवस्था को सुधारा। इसी कार्यकाल में उनकी 'सुशासन बाबू' वाली छवि बनी। यही कार्यकाल था जब नीतीश के गठबंधन बदलने की शुरुआत हुई। 
जून 2013 में उन्होंने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। 2014 का लोकसभा चुनाव उन्होंने अकेले लड़ा। इस चुनाव में जदयू को महज दो सीट से संतोष करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी और जीतन राम माझी राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 2015 के विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले नीतीश वापस मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गए।  

2015 का विधानसभा चुनाव
2015 के विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश और लालू दशकों बाद साथ आए। जदयू-राजद-कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधन बनाया। इस गठबंधन ने 243 में से 178 सीटें हासिल कीं। राजद-जदयू ने बराबर 101-101 सीटें बांटीं, वहीं कांग्रेस को 41 सीटें मिलीं। जहां राजद 80 सीट जीतकर सबसे बड़ा दल बना। जदयू को 71 सीटें मिलीं, वहीं कांग्रेस 27 सीट जीतने में सफल रही। नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने। वहीं, लालू यादव के दोनों बेटे उनकी कैबिनेट का हिस्सा बने। लालू के छोटे बेटे तेजस्वी को डिप्टी सीएम बनाया गया।

एनडीए को 58 सीटों से संतोष करना पड़ा। भाजपा को 53, लोजपा और रालोसपा को दो-दो और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा (हम) को एक सीट ही मिली। लेफ्ट फ्रंट को सिर्फ तीन सीटें ही मिलीं। दूसरी ओर सपा, राकांपा, जाप जैसी पार्टियों का सोशलिस्ट सेक्युलर मोर्चा एक भी सीट नहीं जीत सका। तीन निर्दलीय भी जीतने में सफल हुए।

2015-20: फिर पलटे नीतीश, पर मुख्यमंत्री बने रहे
इस चुनाव में राजद को जदयू से ज्यादा सीटें मिलीं। इसके बावजूद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने। हालांकि, इस गठबंधन को सत्ता में आए अभी दो साल भी नहीं हुए थे कि नीतीश कुमार ने पलटी मार दी।

जून-जुलाई 2017 में लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले खुलने शुरू हो गए। नीतीश और लालू परिवार में तल्खी बढ़ने लगी। इन सबके बीच नीतीश महागठबंधन से नाता तोड़कर भाजपा के समर्थन से फिर मुख्यमंत्री बन गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर एनडीए ने जबरदस्त प्रदर्शन किया और राजद-कांग्रेस को पटखनी दी।

2020 का विधानसभा चुनाव
2020 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर एनडीए और महागठबंधन आमने सामने थे। नतीजों में एनडीए को 243 में से 125 सीटें मिलीं, जबकि महागठबंधन 110 सीट पर सिमट गया। 115 सीटों पर चुनाव लड़े जदयू को 43 सीटें मिलीं। पार्टी के वोट प्रतिशत में 1.44% की भी गिरावट आई। वहीं, 110 सीटों पर चुनाव लड़ी भाजपा 74 सीटें जीतने में सफल रही। उसके वोट शेयर में 5 फीसदी की कमी आई, लेकिन सीटें 21 ज्यादा मिलीं। एनडीए में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को चार, जीतनराम मांझी की हम को 4 पर जीत हासिल की। कम सीटें पाने के बाद भी नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। 

महागठबंधन के दलों की बात करें तो राजद को 75, कांग्रेस को 19, भाकपा-माले को 12, भाकपा को 2 और माकपा को 2 सीटें मिलीं। इस चुनाव में कभी एनडीए का हिस्सा रही राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने अलग तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश की। इस गठबंधन में ओवैसी की एआईएमआईएम, मायावती की बसपा और उपेंद्र कुशवाहा की खुद की पार्टी थी। इस गठबंध में शामिल एआईएमआईएम को पांच, बसपा को एक सीट पर जीत मिली। वहीं, रालोसपा के सभी 99 उम्मीदवार बुरी तरह हार गए। अन्य पार्टियों में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को सिर्फ एक सीट मिली। एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली।  

2025 के विधानसभा चुनाव में भी तय हुआ नीतीश का सीएम बनना
बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना 14 नवंबर को हुई थी। इसमें एनडीए को 202 सीटें मिलीं। भाजपा को सबसे ज्यादा 89, जदयू को 85, चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) को 19, जीतनराम मांझी की हम को 5 और रालोमो को 4 सीटें मिलीं। इसके बाद यह तय हुआ कि पहले से तय फॉर्मूला के तहत नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे। साथ ही सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा उपमुख्यमंत्री बने रहेंगे।

शपथ ग्रहण में क्या हुआ? 
नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। साथ ही सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने शपथ ली। इन तीनों समेत कुल 27 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली।
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