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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 'अदालत बिलों को मंजूरी की टाइमलाइन तय नहीं कर सकती'; राष्ट्रपति के संदर्भ मामले पर CJI
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शुभम कुमार
Updated Thu, 20 Nov 2025 07:22 AM IST
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सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : पीटीआई
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सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को राष्ट्रपति के उस संदर्भ पर अपना फैसला सुनाया है, जिसमें पूछा गया था कि क्या कोई सांविधानिक अदालत, राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय कर सकती है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक दलीलें सुनीं और 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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'अदालत बिलों को मंजूरी की टाइमलाइन तय नहीं कर सकती'
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट राज्य विधानसभा की तरफ से पास किए गए बिलों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए टाइमलाइन तय नहीं कर सकते। सीजेआई बीआर गवई की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने संविधान के आर्टिकल 143 के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से भेजे गए 13 सवालों का जवाब देते हुए अपनी राय दी, जिसमें यह पूछा गया था कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए राज्य के बिलों को मंजूरी देने के लिए टाइमलाइन तय की जा सकती है।
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राष्ट्रपति ने शीर्ष अदालत से पूछा था सवाल
मई में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए शीर्ष अदालत से यह स्पष्ट करने के लिए कहा था कि क्या राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समय-सीमा तय की जा सकती है। राष्ट्रपति ने तमिलनाडु विधानसभा से पारित विधेयकों पर विचार करने में राज्यपाल की शक्तियों पर शीर्ष अदालत के 8 अप्रैल के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट से यह संदर्भ मांगा था। इस फैसले में राष्ट्रपति के लिए भी विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय की गई थी।