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बिहार में किस करवट बैठेगा ऊंट?: राहुल, तेजस्वी की जोड़ी क्या हिट होगी, कितनी मजबूती से लड़ेंगे नीतीश कुमार?
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सार
विधानसभा चुनाव को लेकर बिहार में हलचल तेज हो गई है। भाजपा और राजद मिलकर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहती हैं। वहीं राहुल गांधी और तेजस्वी यादव साथ हलचल पैदा कर लौट आए हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल है कि इस बार बिहार का ऊंट किस करवट बैठेगा?

नीतीश कुमार, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव।
- फोटो : ANI
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विस्तार
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह 18 सितंबर को बिहार के भागलपुर और सासाराम पहुंचे। मकसद बिहार में 20 जिलों के नेताओं से फीडबैक लेना। यह दौरा प्रधानमंत्री के दौरे के बाद हो रहा है। इससे पहले राहुल गांधी और तेजस्वी यादव साथ हलचल पैदा कर लौट आए हैं। तेजस्वी की जन अधिकार यात्रा चल रही है। एक बड़ा सवाल है कि इस बार बिहार का ऊंट किस करवट बैठेगा?
राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि इस बार बिहार में रोचक घमासान होगा। कांग्रेस के विधायक शकील अहमद खान के मुताबिक सब ठीक है, लेकिन बिहार में भाजपा के पास अपना कोई मुख्यमंत्री बनने और चुनाव में नेतृत्व देने लायक स्थानीय नेता नहीं है। भाजपा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहारे है और नीतीश कुमार अब पहले वाले नहीं रहे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल का कहना है कि एनडीए फिर सत्ता में आ रहा है। जायसवाल कहते हैं कि बिहार के लोगों को महागठबंधन का मतलब बताने की जरूरत नहीं है। भाजपा ने बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए ‘चलो जीते हैं’ के नारे के साथ 243 वाहनों को रवाना किया है।
...लेकिन अभी भी सबसे बड़ा चेहरा नीतीश कुमार हैं
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 25 साल लगातार मुख्यमंत्री रहने के बाद अभी भी सबसे बड़ा चेहरा हैं। जदयू के कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह से बिहार चुनाव और नीतीश कुमार पर सवाल पूछिए तो मुस्कराकर आगे बढ़ जाते हैं। नीतीश की सरकार के एक मंत्री कहते हैं कि अभी तो प्रचार चल रहा है। चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। होने दीजिए। धीरे-धीरे बादल हटेंगे और मतगणना के बाद हम सरकार बना लेंगे। सूत्र का दावा है कि इस चुनाव में 2020 नहीं होगा। इस बार लोजपा के चिराग पासवान एनडीए के साथ हैं। वरिष्ठ मंत्री का इशारा 2020 में चिराग के जदयू के लिए वोट कटवा की भूमिका की तरफ था। उनका दावा है कि इस बार जदयू 2010 के चुनाव परिणाम को दोहरा सकती है।
भाजपा की रणनीति क्या है?
अमित शाह चुनाव में बिना होम वर्क के आगे नहीं बढ़ते। पार्टी संगठन के फीडबैक के साथ-साथ कई स्तर पर वह फीडबैक लेते हैं। शाह के बारे में आम है कि वह वैकल्पिक स्थिति को राजनीति में हमेशा तैयार रखते हैं और पन्ना प्रमुख, बूथ प्रमुख के स्तर से शुरू करके राज्य स्तर की रणनीति बनाने में भरोसा रखते हैं। माना जा रहा है कि 18 सितंबर का बिहार का दौरा इसी सिलसिले में हुआ है। शाह की पहली तैयारी पिछले चुनाव में जीती हुई सीटों पर कमजोरी दूर करके उस पर जीत तर्ज करने पर केन्द्रित रहती है।
दूसरे नंबर पर वह आगामी चुनाव में नई जीत सकने वाली सीटों को वरीयता देते हैं। इसके लिए उम्मीदवार के चयन में किसी तरह की कोताही से परहेज करते हैं। कहते हैं कि उन्होंने 2020 के चुनाव में अपनी रणनीति से पासा पलट दिया था। भाजपा चुनाव परिणाम में 74 सीट के साथ दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी। राजद 75 सीट के पहले नंबर पर आई थी। जबकि पहले नंबर पर रहने वाली जदयू तीसरे नंबर चली गई। माना जा रहा है कि इसके बाद भाजपा चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनका दौरा, सीटों के तालमेल समेत अन्य को अंतिम रूप देगी।
2020 से किस तरह अलग हो सकता है 2025 का चुनाव?
बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज पार्टी’पहली बार किस्मत अजमाएगी। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी बिहार के विधानसभा चुनाव में उतरेगी। बसपा ने भी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। एमआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी के चुनाव लड़ने के बारे में पत्ते नहीं खोले हैं। पिछली बार ओवैसी ने अपने उम्मीदवारों को उतारकर महागठबंधन का खेल बिगाड़ दिया था। लोजपा के चिराग पासवान इस बार एनडीए के साथ चुनाव मैदान में होंगे। लेकिन उनके चाचा पशुपति पारस महागठबंधन की तरफ जा सकते हैं। अनुमान है कि ऐसा हुआ तो लोजपा का 60-65 फीसदी वोट लोजपा रामविलास पासवान के साथ रह सकता है। 30-35 प्रतिशत वोटों में पशुपति पारस का दल सेंध लगा सकता है।
कौन किसके वोट काटेगा?
दिल्ली एक मशहूर चुनाव सर्वेक्षण एजेंसी के अशोक कुमार ने पिछले डेढ़ महीने बिहार में बिताए हैं। अशोक कुमार कहते हैं कि चिंता दोनों तरफ है। ‘जन सुराज पार्टी’ ठीक-ठाक चुनाव लड़ सकती है। उसका युवाओं में अभी क्रेज दिखाई दे रहा है। आम आदमी पार्टी के चुनाव में उतरने से जन सुराज को थोड़ा सा झटका लग सकता है। हालांकि अशोक कुमार का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी जातिगत गोलबंदी ही चलेगी। राज्य में 14.3 प्रतिशत यादव,17.7 प्रतिशत मुस्लिम, 5.3 प्रतिशत हरिजन, 2.7 प्रतिशत मल्लाह हैं।
पिछले चुनाव में यह महागठबंधन के साथ थे और 41 प्रतिशत वोट मिले थे। लेकिन भाजपा के वोट का प्रतिशत 55 और एनडीए का 48 प्रतिशत था। अशोक कुमार कहते हैं कि इस बार महागठबंधन को राज्य में सरकार बनाने के लिए कम से कम 5 प्रतिशत अधिक वोट की जरूरत होगी। ऐसा होता है तो 46 प्रतिशत वोट के साथ महागठबंधन 125-28 सीट ला सकता है। हालांकि अभी यह रास्ता बहुत आसान नहीं लगता।
अशोक कुमार कहते हैं कि इस बार एनडीए को थोड़ा सरकार विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर भी एनडीए के नेताओं को चिंतित होना चाहिए। प्रशांत किशोर भाजपा और जदयू की चिंता बढ़ाते हुए नजर आ रहे हैं। अशोक कुमार कहते हैं कि फिलहाल अभी कोई अंतिम राय नहीं बनाई जा सकती।
राहुल और तेजस्वी, क्या हिट रहेगी जोड़ी?
बिहार कांग्रेस के कुछ नेता चाहते हैं कि चुनाव में पार्टी को अकेले उतरना चाहिए। हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की इस सोच वाले नेताओं की मौजूदगी रहती है। लेकिन बिहार के कांग्रेस प्रभारी, राहुल गांधी की विशेष सलाहकार मंडली की रणनीति महागठबंधन के साथ चुनाव लड़कर 35 सीटों के आंकड़े को पार करने की है। पार्टी तालमेल में 70 सीट मिलने की उम्मीद लगाए है।
बताते हैं राहुल गांधी के बिहार में राजनीतिक महौल बदलने को लेकर कांग्रेसी दावा कर रहे हैं, लेकिन राजद के नेताओं का कहना है कि इसमें राज्य में तेजस्वी के असर का बड़ा योगदान है। राजद के नेता भी महागठबंधन के जुटान को जरूरी मानते हैं। राजद के राज्यसभा सदस्य का कहना है कि इस बार बिहार में सत्ता बदलनी तय है। महागठबंधन सरकार बनाएगा। हालांकि अभी राहुल गांधी का सचिवालय बिहार चुनाव को लेकर कुछ नहीं कहना चाहता। कांग्रेस के नेता अभय दूबे, पवन खेड़ा सब तेल और तेल की धार देख रहे हैं।

राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि इस बार बिहार में रोचक घमासान होगा। कांग्रेस के विधायक शकील अहमद खान के मुताबिक सब ठीक है, लेकिन बिहार में भाजपा के पास अपना कोई मुख्यमंत्री बनने और चुनाव में नेतृत्व देने लायक स्थानीय नेता नहीं है। भाजपा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहारे है और नीतीश कुमार अब पहले वाले नहीं रहे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल का कहना है कि एनडीए फिर सत्ता में आ रहा है। जायसवाल कहते हैं कि बिहार के लोगों को महागठबंधन का मतलब बताने की जरूरत नहीं है। भाजपा ने बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए ‘चलो जीते हैं’ के नारे के साथ 243 वाहनों को रवाना किया है।
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...लेकिन अभी भी सबसे बड़ा चेहरा नीतीश कुमार हैं
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 25 साल लगातार मुख्यमंत्री रहने के बाद अभी भी सबसे बड़ा चेहरा हैं। जदयू के कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह से बिहार चुनाव और नीतीश कुमार पर सवाल पूछिए तो मुस्कराकर आगे बढ़ जाते हैं। नीतीश की सरकार के एक मंत्री कहते हैं कि अभी तो प्रचार चल रहा है। चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। होने दीजिए। धीरे-धीरे बादल हटेंगे और मतगणना के बाद हम सरकार बना लेंगे। सूत्र का दावा है कि इस चुनाव में 2020 नहीं होगा। इस बार लोजपा के चिराग पासवान एनडीए के साथ हैं। वरिष्ठ मंत्री का इशारा 2020 में चिराग के जदयू के लिए वोट कटवा की भूमिका की तरफ था। उनका दावा है कि इस बार जदयू 2010 के चुनाव परिणाम को दोहरा सकती है।
भाजपा की रणनीति क्या है?
अमित शाह चुनाव में बिना होम वर्क के आगे नहीं बढ़ते। पार्टी संगठन के फीडबैक के साथ-साथ कई स्तर पर वह फीडबैक लेते हैं। शाह के बारे में आम है कि वह वैकल्पिक स्थिति को राजनीति में हमेशा तैयार रखते हैं और पन्ना प्रमुख, बूथ प्रमुख के स्तर से शुरू करके राज्य स्तर की रणनीति बनाने में भरोसा रखते हैं। माना जा रहा है कि 18 सितंबर का बिहार का दौरा इसी सिलसिले में हुआ है। शाह की पहली तैयारी पिछले चुनाव में जीती हुई सीटों पर कमजोरी दूर करके उस पर जीत तर्ज करने पर केन्द्रित रहती है।
दूसरे नंबर पर वह आगामी चुनाव में नई जीत सकने वाली सीटों को वरीयता देते हैं। इसके लिए उम्मीदवार के चयन में किसी तरह की कोताही से परहेज करते हैं। कहते हैं कि उन्होंने 2020 के चुनाव में अपनी रणनीति से पासा पलट दिया था। भाजपा चुनाव परिणाम में 74 सीट के साथ दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी। राजद 75 सीट के पहले नंबर पर आई थी। जबकि पहले नंबर पर रहने वाली जदयू तीसरे नंबर चली गई। माना जा रहा है कि इसके बाद भाजपा चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनका दौरा, सीटों के तालमेल समेत अन्य को अंतिम रूप देगी।
2020 से किस तरह अलग हो सकता है 2025 का चुनाव?
बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज पार्टी’पहली बार किस्मत अजमाएगी। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी बिहार के विधानसभा चुनाव में उतरेगी। बसपा ने भी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। एमआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी के चुनाव लड़ने के बारे में पत्ते नहीं खोले हैं। पिछली बार ओवैसी ने अपने उम्मीदवारों को उतारकर महागठबंधन का खेल बिगाड़ दिया था। लोजपा के चिराग पासवान इस बार एनडीए के साथ चुनाव मैदान में होंगे। लेकिन उनके चाचा पशुपति पारस महागठबंधन की तरफ जा सकते हैं। अनुमान है कि ऐसा हुआ तो लोजपा का 60-65 फीसदी वोट लोजपा रामविलास पासवान के साथ रह सकता है। 30-35 प्रतिशत वोटों में पशुपति पारस का दल सेंध लगा सकता है।
कौन किसके वोट काटेगा?
दिल्ली एक मशहूर चुनाव सर्वेक्षण एजेंसी के अशोक कुमार ने पिछले डेढ़ महीने बिहार में बिताए हैं। अशोक कुमार कहते हैं कि चिंता दोनों तरफ है। ‘जन सुराज पार्टी’ ठीक-ठाक चुनाव लड़ सकती है। उसका युवाओं में अभी क्रेज दिखाई दे रहा है। आम आदमी पार्टी के चुनाव में उतरने से जन सुराज को थोड़ा सा झटका लग सकता है। हालांकि अशोक कुमार का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी जातिगत गोलबंदी ही चलेगी। राज्य में 14.3 प्रतिशत यादव,17.7 प्रतिशत मुस्लिम, 5.3 प्रतिशत हरिजन, 2.7 प्रतिशत मल्लाह हैं।
पिछले चुनाव में यह महागठबंधन के साथ थे और 41 प्रतिशत वोट मिले थे। लेकिन भाजपा के वोट का प्रतिशत 55 और एनडीए का 48 प्रतिशत था। अशोक कुमार कहते हैं कि इस बार महागठबंधन को राज्य में सरकार बनाने के लिए कम से कम 5 प्रतिशत अधिक वोट की जरूरत होगी। ऐसा होता है तो 46 प्रतिशत वोट के साथ महागठबंधन 125-28 सीट ला सकता है। हालांकि अभी यह रास्ता बहुत आसान नहीं लगता।
अशोक कुमार कहते हैं कि इस बार एनडीए को थोड़ा सरकार विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर भी एनडीए के नेताओं को चिंतित होना चाहिए। प्रशांत किशोर भाजपा और जदयू की चिंता बढ़ाते हुए नजर आ रहे हैं। अशोक कुमार कहते हैं कि फिलहाल अभी कोई अंतिम राय नहीं बनाई जा सकती।
राहुल और तेजस्वी, क्या हिट रहेगी जोड़ी?
बिहार कांग्रेस के कुछ नेता चाहते हैं कि चुनाव में पार्टी को अकेले उतरना चाहिए। हर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की इस सोच वाले नेताओं की मौजूदगी रहती है। लेकिन बिहार के कांग्रेस प्रभारी, राहुल गांधी की विशेष सलाहकार मंडली की रणनीति महागठबंधन के साथ चुनाव लड़कर 35 सीटों के आंकड़े को पार करने की है। पार्टी तालमेल में 70 सीट मिलने की उम्मीद लगाए है।
बताते हैं राहुल गांधी के बिहार में राजनीतिक महौल बदलने को लेकर कांग्रेसी दावा कर रहे हैं, लेकिन राजद के नेताओं का कहना है कि इसमें राज्य में तेजस्वी के असर का बड़ा योगदान है। राजद के नेता भी महागठबंधन के जुटान को जरूरी मानते हैं। राजद के राज्यसभा सदस्य का कहना है कि इस बार बिहार में सत्ता बदलनी तय है। महागठबंधन सरकार बनाएगा। हालांकि अभी राहुल गांधी का सचिवालय बिहार चुनाव को लेकर कुछ नहीं कहना चाहता। कांग्रेस के नेता अभय दूबे, पवन खेड़ा सब तेल और तेल की धार देख रहे हैं।