{"_id":"68c90eff376552f7e6015857","slug":"bombay-high-court-strict-on-bail-on-malegaon-case-says-not-everyone-can-appeal-against-decision-2025-09-16","type":"story","status":"publish","title_hn":"Bombay High Court: 'फैसले के खिलाफ हर कोई अपील नहीं कर सकता', मालेगांव मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी","category":{"title":"India News","title_hn":"देश","slug":"india-news"}}
Bombay High Court: 'फैसले के खिलाफ हर कोई अपील नहीं कर सकता', मालेगांव मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Tue, 16 Sep 2025 12:47 PM IST
विज्ञापन
सार
साल 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि बरी के फैसले के खिलाफ अपील हर कोई नहीं कर सकता। अदालत ने पीड़ित परिजनों से पूछा कि क्या वे गवाह बने थे। छह मृतकों के परिजनों ने एनआईए कोर्ट के बरी करने के आदेश को चुनौती दी है। उनका आरोप है कि जांच कमजोर की गई और ट्रायल कोर्ट ने सिर्फ पोस्ट ऑफिस की तरह काम किया।

बॉम्बे हाईकोर्ट।
- फोटो : ANI
विज्ञापन
विस्तार
मालेगांव ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ किया है कि किसी आरोपी की बरी के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने का अधिकार हर किसी को नहीं है। अदालत ने कहा कि यह कोई खुला दरवाजा नहीं है कि कोई भी व्यक्ति अपील लेकर पहुंच जाए। हाईकोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि मृतकों के परिजनों को ट्रायल के दौरान गवाह बनाया गया था या नहीं।
यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंकड़ की खंडपीठ ने की। अदालत छह पीड़ितों के परिजनों द्वारा दायर अपील सुन रही थी, जिसमें विशेष एनआईए अदालत के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें सात आरोपियों को बरी कर दिया गया था। इन आरोपियों में भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल थे।
परिजनों के गवाह बनने पर सवाल
सुनवाई के दौरान अदालत ने पूछा कि क्या पीड़ित परिवारों के सदस्य गवाह थे। पीड़ित पक्ष के वकील ने बताया कि पहले अपीलकर्ता निसार अहमद, जिनके बेटे की मौत धमाके में हुई थी, ट्रायल में गवाह नहीं बने थे। इस पर अदालत ने कहा कि अगर बेटे की मौत हुई थी तो पिता को गवाह होना चाहिए था। अदालत ने आदेश दिया कि इस बारे में पूरी जानकारी बुधवार को दी जाए।
ये भी पढ़ें- पलानीस्वामी ने AIADMK को समर्थन के लिए BJP को सराहा, कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर DMK सरकार को घेरा
अपीलकर्ताओं का तर्क
परिजनों की ओर से दाखिल अपील में कहा गया है कि जांच में खामियां होना या जांच एजेंसियों की गलती होना बरी करने का आधार नहीं हो सकता। उन्होंने दावा किया कि ब्लास्ट की साजिश गुप्त तरीके से रची गई थी, इसलिए उसका सीधा सबूत मिलना संभव नहीं था। अपील में यह भी कहा गया कि 31 जुलाई को एनआईए की विशेष अदालत द्वारा दिया गया फैसला गलत और कानून के खिलाफ था, जिसे रद्द किया जाना चाहिए।
2008 का धमाका और नुकसान
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव कस्बे में एक मस्जिद के पास खड़ी मोटरसाइकिल में बंधा विस्फोटक धमाका कर गया था। इस धमाके में छह लोगों की मौत हुई और 101 लोग घायल हुए थे। घटना ने पूरे राज्य को हिला दिया था। उस समय एटीएस ने मामले की जांच कर सात लोगों को गिरफ्तार किया था और एक बड़े आतंकी साजिश का खुलासा किया था।
एनआईए पर आरोप और कोर्ट की टिप्पणी
अपील में आरोप लगाया गया है कि जब एनआईए ने मामले को अपने हाथ में लिया तो उसने आरोपियों के खिलाफ लगे आरोप कमजोर कर दिए। अपीलकर्ताओं ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने केवल पोस्ट ऑफिस की तरह काम किया और अभियोजन की कमियों का फायदा आरोपियों को मिल गया। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को सिर्फ मूक दर्शक नहीं होना चाहिए था, बल्कि जरूरत पड़ने पर सवाल पूछने और गवाह बुलाने का अधिकार इस्तेमाल करना चाहिए था।
ये भी पढ़ें- धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक की मांग वाली याचिकाओं पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट; छह सप्ताह बाद सुनवाई
विशेष अदालत का फैसला
एनआईए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि केवल शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। विशेष न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त और ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा। इसलिए आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करना पड़ा। अभियोजन का दावा था कि धमाका दक्षिणपंथी चरमपंथियों ने मुस्लिम समुदाय को डराने के मकसद से किया था। अदालत ने जांच में कई खामियों की ओर इशारा किया।

Trending Videos
यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंकड़ की खंडपीठ ने की। अदालत छह पीड़ितों के परिजनों द्वारा दायर अपील सुन रही थी, जिसमें विशेष एनआईए अदालत के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें सात आरोपियों को बरी कर दिया गया था। इन आरोपियों में भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल थे।
विज्ञापन
विज्ञापन
परिजनों के गवाह बनने पर सवाल
सुनवाई के दौरान अदालत ने पूछा कि क्या पीड़ित परिवारों के सदस्य गवाह थे। पीड़ित पक्ष के वकील ने बताया कि पहले अपीलकर्ता निसार अहमद, जिनके बेटे की मौत धमाके में हुई थी, ट्रायल में गवाह नहीं बने थे। इस पर अदालत ने कहा कि अगर बेटे की मौत हुई थी तो पिता को गवाह होना चाहिए था। अदालत ने आदेश दिया कि इस बारे में पूरी जानकारी बुधवार को दी जाए।
ये भी पढ़ें- पलानीस्वामी ने AIADMK को समर्थन के लिए BJP को सराहा, कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर DMK सरकार को घेरा
अपीलकर्ताओं का तर्क
परिजनों की ओर से दाखिल अपील में कहा गया है कि जांच में खामियां होना या जांच एजेंसियों की गलती होना बरी करने का आधार नहीं हो सकता। उन्होंने दावा किया कि ब्लास्ट की साजिश गुप्त तरीके से रची गई थी, इसलिए उसका सीधा सबूत मिलना संभव नहीं था। अपील में यह भी कहा गया कि 31 जुलाई को एनआईए की विशेष अदालत द्वारा दिया गया फैसला गलत और कानून के खिलाफ था, जिसे रद्द किया जाना चाहिए।
2008 का धमाका और नुकसान
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव कस्बे में एक मस्जिद के पास खड़ी मोटरसाइकिल में बंधा विस्फोटक धमाका कर गया था। इस धमाके में छह लोगों की मौत हुई और 101 लोग घायल हुए थे। घटना ने पूरे राज्य को हिला दिया था। उस समय एटीएस ने मामले की जांच कर सात लोगों को गिरफ्तार किया था और एक बड़े आतंकी साजिश का खुलासा किया था।
एनआईए पर आरोप और कोर्ट की टिप्पणी
अपील में आरोप लगाया गया है कि जब एनआईए ने मामले को अपने हाथ में लिया तो उसने आरोपियों के खिलाफ लगे आरोप कमजोर कर दिए। अपीलकर्ताओं ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने केवल पोस्ट ऑफिस की तरह काम किया और अभियोजन की कमियों का फायदा आरोपियों को मिल गया। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को सिर्फ मूक दर्शक नहीं होना चाहिए था, बल्कि जरूरत पड़ने पर सवाल पूछने और गवाह बुलाने का अधिकार इस्तेमाल करना चाहिए था।
ये भी पढ़ें- धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर रोक की मांग वाली याचिकाओं पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट; छह सप्ताह बाद सुनवाई
विशेष अदालत का फैसला
एनआईए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि केवल शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। विशेष न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त और ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा। इसलिए आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करना पड़ा। अभियोजन का दावा था कि धमाका दक्षिणपंथी चरमपंथियों ने मुस्लिम समुदाय को डराने के मकसद से किया था। अदालत ने जांच में कई खामियों की ओर इशारा किया।