Aravalli: 'अरावली की परिभाषा नहीं बदली, खनन बढ़ाने के आरोप निराधार', चर्चाओं के बीच केंद्र ने साफ किया रुख
अरावली की परिभाषा बदलने की अफवाहों को केंद्र ने खारिज किया। सरकार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद अब 90% से ज्यादा क्षेत्र ‘सुरक्षित’ रहेगा। असली खतरा अवैध खनन है, जिसे रोकने के लिए ड्रोन और कड़ी निगरानी जैसी तकनीक अपनाई जाएगी।
विस्तार
दुनिया के सबसे प्राचीन पर्वत शृंखलाओं में से एक अरावली के इन दिनों खूब चर्चा में है। ऐसे में रविवार को केंद्र सरकार ने उन रिपोर्टों को खारिज किया, जिनमें कहा गया था कि अरावली की परिभाषा बदल दी गई है ताकि बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति दी जा सके। सरकार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस क्षेत्र में नए खनन लीज पर रोक लगाई हुई है। मामले में पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी वाली नई परिभाषा के अनुसार अरावली क्षेत्र का 90% से ज्यादा हिस्सा 'सुरक्षित क्षेत्र' में आएगा।
अब पहले अरावली के चर्चा में आने की बात पर प्रकाश डाले तो, बीते दिनों इन पर्वतों के पास खनन की घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई। इस पर केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जवाब दाखिल किया। इसी जवाब के बाद से देशभर में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए हैं, जिन्हें लेकर अरावली शृंखला चर्चा के केंद्र में आ गई। इतना ही नहीं अरावली के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर 'सेव अरावली कैंपेन' यानी अरावली बचाओ अभियान तक चल पड़ा है।
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केंद्र सरकार ने आरोपों पर क्या कहा?
मामले में सरकार ने साफ किया कि अरावली की परिभाषा राज्यों में प्रमाणित की गई है ताकि किसी प्रकार का गलत इस्तेमाल न हो। इससे पहले, अलग-अलग राज्य खनन की अनुमति देते समय अलग-अलग नियम अपनाते थे। सरकार के अनुसार, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में कानूनी खनन बहुत ही छोटे हिस्से में होता है, केवल 0.19%। दिल्ली में खनन की अनुमति नहीं है। केंद्र ने बताया कि अरावली के लिए असली खतरा अवैध और अनियंत्रित खनन है। इसे रोकने के लिए समिति ने कड़ी निगरानी, प्रवर्तन और ड्रोन जैसी तकनीक का इस्तेमाल करने की सिफारिश की है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 में एक समिति बनाई थी, जिसमें राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली के प्रतिनिधि शामिल थे। इस समिति का काम था कि अरावली की एक समान परिभाषा तय की जाए। समिति ने पाया कि केवल राजस्थान का ही 2006 से एक स्थायी नियम था, जिसमें कहा गया है कि 100 मीटर या उससे ऊंचे भूमि स्वरूप को पहाड़ी माना जाएगा और उसकी न्यूनतम सीमा के अंदर खनन प्रतिबंधित होगा।
ऐसे में अब सभी चार राज्य राजस्थान के इस नियम को अपनाएंगे और कुछ अतिरिक्त सुरक्षा उपाय भी होंगे। इसके तहत 500 मीटर के भीतर आने वाली पहाड़ियों को एक ही श्रृंखला माना जाएगा। खनन की अनुमति देने से पहले भारतीय सर्वेक्षण के नक्शों पर पहाड़ियों और उनकी श्रृंखलाओं का नक्शा बनाना अनिवार्य होगा और कोर और अविनाशी क्षेत्र की पहचान करना, जहां खनन पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा। सरकार ने बताया कि यह गलत है कि केवल 100 मीटर से ऊंची जगहों पर खनन रोक है। पूरे पहाड़ी क्षेत्र और उसके चारों ओर की भूमि पर रोक लागू होगी।
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सुप्रीम कोर्ट ने समिति की सिफारियों को दी मान्यता
गौरतलब है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समिति की सिफारिशों को मान्यता दी। इसके अनुसार, कोर और अविनाशी क्षेत्रों, संरक्षित क्षेत्रों, इको-सेंसिटिव जोन, टाइगर रिजर्व, वेटलैंड्स और उनके आसपास खनन पर पूरी तरह रोक रहेगी। केवल कुछ विशेष, राष्ट्रीय महत्व के खनिजों के लिए ही सीमित छूट होगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अरावली क्षेत्र में नए खनन लीज तब तक नहीं दी जाएगी जब तक 'भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद द्वारा' सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती।
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