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चिंताजनक: बचपन में ज्यादा चीनी की आदत बन सकती है उम्रभर की बीमारी, वैज्ञानिक अध्ययन में खुलासा

अमर उजाला नेटवर्क Published by: लव गौर Updated Fri, 07 Nov 2025 05:01 AM IST
सार

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के लिए निर्धारित दैनिक चीनी सेवन सीमा लगभग 25 ग्राम यानी 6 चम्मच है, लेकिन अधिकांश बच्चे इससे दोगुना या तिगुना सेवन कर रहे हैं। यह न केवल इंसुलिन प्रतिरोध और मोटापे का कारण बनता है बल्कि भविष्य में हृदय रोग, टाइप-2 डायबिटीज और मानसिक असंतुलन का जोखिम भी बढ़ा देता है।
 

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childhood habit of excessive sugar consumption can lead to lifelong illness
बच्चों के शरीर में पहुंच रहा मानक से तीन गुना तक अधिक चीनी (सांकेतिक फोटो) - फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
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बचपन में अत्यधिक मात्रा में चीनी का सेवन सिर्फ दांतों या मोटापे तक सीमित नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि यह पूरे जीवनकाल में शरीर और मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। नेशनल जियोग्राफिक में प्रकाशित एक ताजा वैज्ञानिक अध्ययन ने खुलासा किया है कि शुरुआती उम्र में ज्यादा चीनी का सेवन व्यक्ति की स्मृति, व्यवहार और मेटाबॉलिज्म पर लंबे समय तक असर डालता है। रिपोर्ट के अनुसार आज के बच्चे अनुशंसित सीमा से कई गुना अधिक चीनी का सेवन कर रहे हैं।

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वैज्ञानिकों ने बताया कि आधुनिक बच्चों के आहार में सिर्फ कैंडी या मिठाई ही नहीं, बल्कि कई सामान्य खाद्य पदार्थ जैसे सीरियल, फ्लेवर्ड योगर्ट, पैक्ड जूस और तैयार स्नैक्स  में भी छिपी हुई चीनी मौजूद रहती है। इस तरह की हिडन शुगर बच्चों को कम उम्र में ही उच्च शर्करा सेवन की आदत डाल देती है। अमेरिका में किए गए एक प्रयोगात्मक अध्ययन में यह पाया गया कि जिन चूहों को उनके विकासकाल में अधिक मात्रा में शुगर दी गई, वे वयस्क अवस्था में न केवल मोटापे और डायबिटीज की प्रवृत्ति से ग्रस्त हुए, बल्कि उनके हिप्पोकैम्पस (मस्तिष्क का वह भाग जो सीखने और याददाश्त से जुड़ा है) में भी कमजोरियां देखी गईं।
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स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के लिए निर्धारित दैनिक चीनी सेवन सीमा लगभग 25 ग्राम यानी 6 चम्मच है, लेकिन अधिकांश बच्चे इससे दोगुना या तिगुना सेवन कर रहे हैं। यह न केवल इंसुलिन प्रतिरोध और मोटापे का कारण बनता है बल्कि भविष्य में हृदय रोग, टाइप-2 डायबिटीज और मानसिक असंतुलन का जोखिम भी बढ़ा देता है।

सिर्फ खानपान नहीं, यह समाजिक चुनौती भी
बचपन में अत्यधिक शुगर सेवन से जुड़ी आदतें एक साइकोलॉजिकल पैटर्न के रूप में विकसित हो जाती हैं, जिन्हें बदलना अत्यंत कठिन होता है। वैज्ञानिकों ने इसे न्यूरल प्रोग्रामिंग ऑफ टेस्ट एंड बिहेवियर कहा है यानी दिमाग में बचपन से ही मीठे की तलब को स्थायी रूप से दर्ज कर देना। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के न्यूरो साइकोलॉजिस्ट डॉ. जॉन रॉजर्स के अनुसार अधिक चीनी केवल वजन या दांतों की समस्या नहीं बढ़ाती, बल्कि यह मस्तिष्क में डोपामीन रिसेप्टर्स को असामान्य रूप से सक्रिय करती है। इसका दीर्घकालिक असर यह होता है कि बच्चा आगे चलकर निकोटीन या कैफीन की तरहअधिक मीठे का आदी बन जाता है।

ये भी पढ़ें: अध्ययन: तेज दिमाग पैदाइशी उपहार नहीं; वैज्ञानिकों का दावा- सही डाइट से दिमाग की सेहत और क्षमता दोनों बढ़ती है

भारत में भी बढ़ रहा खतरा
भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह चिंता और भी गंभीर है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन) की  रिपोर्ट बताती है कि शहरी भारत में 6 से 16 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे औसतन 32 से 45 ग्राम तक चीनी प्रतिदिन ले रहे हैं जो अनुशंसित सीमा से लगभग दोगुना है। अधिकांश परिवारों को यह पता ही नहीं चलता कि उनके बच्चों के नाश्ते के सीरियल, पैक्ड दूध, बिस्कुट और पेय पदार्थों में कितनी ऐडेड शुगर शामिल होती है। बाल रोग विशेषज्ञों ने चेताया है कि भारत में बाल-मोटापा और किशोर मधुमेह के मामलों में पिछले एक दशक में 27 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

मीठे बचपन की कीमत
विशेषज्ञों के अनुसार चीनी सिर्फ स्वाद नहीं, एक दीर्घकालिक स्वास्थ्य निवेश है। यदि बच्चों के शुरुआती आहार में शुगर की मात्रा नियंत्रित की जाए, तो न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी सुरक्षित रह सकता है। शुगर बच्चों के मस्तिष्क और शरीर दोनों पर दीर्घकालिक छाप छोड़ने वाला घटक है।

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