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Civic Polls: मुंबई महानगर क्षेत्र में पहचान की राजनीति से आगे निकले मतदाता, अब इन मुद्दों पर होगी चुनावी लड़ाई
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई
Published by: पवन पांडेय
Updated Thu, 25 Dec 2025 11:18 AM IST
सार
महाराष्ट्र में 15 जनवरी को नगर निकाय चुनाव के लिए मतदान और 16 जनवरी को नतीजे आएंगे। इन चुनावों से यह तय होगा कि आने वाले वर्षों में मुंबई महानगर क्षेत्र को बेहतर रहने लायक शहर बनाने की दिशा में कौन आगे बढ़ता है। लेकिन मतदाता अब बड़े वादों से नहीं, बल्कि तुरंत और ठोस काम से संतुष्ट होंगे।
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सांकेतिक तस्वीर
- फोटो : ANI
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विस्तार
महाराष्ट्र में 15 जनवरी को होने वाले नगर निकाय चुनावों में मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) के मतदाता इस बार जाति, भाषा और पहचान की राजनीति से आगे बढ़कर पानी, प्रदूषण, घर, यातायात और सार्वजनिक सेवाओं जैसे रोजमर्रा के मुद्दों पर जवाब चाहते हैं। राज्य की 29 नगर निगमों में से नौ नगर निगम एमएमआर से हैं; मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, वसई-विरार, भिवंडी, मीरा-भायंदर, उल्हासनगर और पनवेल। इन सभी शहरों में तेज शहरीकरण ने नागरिक सुविधाओं पर भारी दबाव डाल दिया है।
यह भी पढ़ें - Good Governance Day: आज पूर्व प्रधानमंत्री की 101वीं जयंती, राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति, PM ने वाजपेयी को किया नमन
पहचान की राजनीति के बीच असली सवाल
जहां एक ओर 'मराठी मानूस', जाति और धर्म जैसे मुद्दे चुनावी बहस में हैं, वहीं दूसरी ओर बुनियादी सुविधाओं की अभाव में जी रहे लोगों की चिंता बढ़ा दी है। इसी को देखते हुए राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपने चुनावी वादों में बदलाव कर रहे हैं।
सरकार के कदम और विपक्ष की आपत्ति
हाल ही में राज्य सरकार ने एमएमआर में 20000 से ज्यादा बिना अधिभोग प्रमाणपत्र (ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट) वाली इमारतों को नियमित करने के लिए एक माफी योजना की घोषणा की। इसके अलावा मुंबई की पुरानी 'पगड़ी' इमारतों के पुनर्विकास के लिए नया नियम भी लाया गया है। सरकार कोस्टल रोड, अटल सेतु और मेट्रो परियोजनाओं को अपनी बड़ी उपलब्धि बता रही है, वहीं विपक्ष का आरोप है कि लोकल ट्रेन और बस सेवाएं लगातार खराब हुई हैं, और मेट्रो परियोजनाओं में देरी आम लोगों की परेशानी बढ़ा रही है।
प्रदूषण बना चुनावी मुद्दा
हवा की खराब गुणवत्ता अब सीधा चुनावी मुद्दा बन चुकी है, खासकर उन इलाकों में जहां उद्योग और रिहायशी इलाके साथ-साथ हैं। नवी मुंबई में युवाओं ने निर्माण से उठती धूल, पुराने वाहनों से निकलता धुआं और घटते हरित क्षेत्र को प्रदूषण की बड़ी वजह बताया है। हाल ही में उन्होंने शांत मानव श्रृंखला बनाकर नेताओं से साफ हवा का वादा मांगा।
पानी, सफाई और ट्रैफिक की मार
एमएमआर के कई इलाकों में पानी की कटौती, कम दबाव, पुरानी पाइपलाइन और अपर्याप्त भंडारण बड़ी समस्या हैं, जबकि क्षेत्र में भरपूर बारिश होती है। कचरा प्रबंधन भी गंभीर चुनौती है; डंपिंग ग्राउंड भर चुके हैं, कचरा अलग-अलग करने की व्यवस्था अधूरी है और नालों की सफाई न होने से बार-बार जलभराव होता है।
बढ़ती आबादी, कमजोर ढांचा
मुंबई का 2025-26 का बजट करीब 75,000 करोड़ रुपये है, फिर भी शहर को जाम और नागरिक सुविधाओं की कमी से जूझना पड़ रहा है। वहीं वसई-विरार, उल्हासनगर और भिवंडी जैसे शहरों में आबादी तेजी से बढ़ी है, लेकिन सड़क, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाएं उसी गति से नहीं बढ़ीं। इसका नतीजा है, महंगी जिंदगी और घटती जीवन गुणवत्ता।
घर और किराया भी चिंता
तेज शहरीकरण के कारण पूरे एमएमआर में घर और किराए महंगे हो गए हैं। मुंबई पहले से ही देश के सबसे महंगे शहरों में है, और अब उसके उपनगरों में भी आम आदमी के लिए घर लेना मुश्किल होता जा रहा है। इसी वजह से किफायती आवास, झुग्गी पुनर्विकास और जोनिंग जैसे मुद्दे चुनावी चर्चा के केंद्र में हैं।
यह भी पढ़ें - Karnataka Accident: कर्नाटक सड़क हादसे पर बस ड्राइवर ने किया बड़ा खुलासा; CM सिद्धारमैया ने दिए जांच के आदेश
रोज का सफर, सबसे बड़ी परेशानी; स्वास्थ्य और शिक्षा की मांग
लोकल ट्रेन की भीड़, लंबा सफर, आखिरी मील की कनेक्टिविटी की कमी और बरसात में गड्ढों से भरी सड़कें, ये समस्याएं ठाणे, कल्याण-डोंबिवली और पनवेल से जुड़े इलाकों में मतदाताओं के मूड को सीधे प्रभावित कर रही हैं। हालांकि मेट्रो और रेलवे विस्तार की योजनाएं हैं, लेकिन लोग तुरंत सुधार चाहते हैं, जो अब तक कई जगह नजर नहीं आ रहा। युवा और कामकाजी वर्ग रोजगार, स्किल डेवलपमेंट और स्थानीय नौकरी के अवसरों पर भी ध्यान दे रहा है। एमएमआर देश का आर्थिक केंद्र जरूर है, लेकिन हर इलाके में अच्छी नौकरी उपलब्ध नहीं है, यह भी एक चुनावी सवाल बन चुका है। मतदाता अब बेहतर नगरपालिका स्कूलों, अस्पतालों और डिस्पेंसरी की मांग कर रहे हैं। महामारी के बाद से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर लोगों की उम्मीदें और बढ़ी हैं।
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पहचान की राजनीति के बीच असली सवाल
जहां एक ओर 'मराठी मानूस', जाति और धर्म जैसे मुद्दे चुनावी बहस में हैं, वहीं दूसरी ओर बुनियादी सुविधाओं की अभाव में जी रहे लोगों की चिंता बढ़ा दी है। इसी को देखते हुए राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपने चुनावी वादों में बदलाव कर रहे हैं।
सरकार के कदम और विपक्ष की आपत्ति
हाल ही में राज्य सरकार ने एमएमआर में 20000 से ज्यादा बिना अधिभोग प्रमाणपत्र (ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट) वाली इमारतों को नियमित करने के लिए एक माफी योजना की घोषणा की। इसके अलावा मुंबई की पुरानी 'पगड़ी' इमारतों के पुनर्विकास के लिए नया नियम भी लाया गया है। सरकार कोस्टल रोड, अटल सेतु और मेट्रो परियोजनाओं को अपनी बड़ी उपलब्धि बता रही है, वहीं विपक्ष का आरोप है कि लोकल ट्रेन और बस सेवाएं लगातार खराब हुई हैं, और मेट्रो परियोजनाओं में देरी आम लोगों की परेशानी बढ़ा रही है।
प्रदूषण बना चुनावी मुद्दा
हवा की खराब गुणवत्ता अब सीधा चुनावी मुद्दा बन चुकी है, खासकर उन इलाकों में जहां उद्योग और रिहायशी इलाके साथ-साथ हैं। नवी मुंबई में युवाओं ने निर्माण से उठती धूल, पुराने वाहनों से निकलता धुआं और घटते हरित क्षेत्र को प्रदूषण की बड़ी वजह बताया है। हाल ही में उन्होंने शांत मानव श्रृंखला बनाकर नेताओं से साफ हवा का वादा मांगा।
पानी, सफाई और ट्रैफिक की मार
एमएमआर के कई इलाकों में पानी की कटौती, कम दबाव, पुरानी पाइपलाइन और अपर्याप्त भंडारण बड़ी समस्या हैं, जबकि क्षेत्र में भरपूर बारिश होती है। कचरा प्रबंधन भी गंभीर चुनौती है; डंपिंग ग्राउंड भर चुके हैं, कचरा अलग-अलग करने की व्यवस्था अधूरी है और नालों की सफाई न होने से बार-बार जलभराव होता है।
बढ़ती आबादी, कमजोर ढांचा
मुंबई का 2025-26 का बजट करीब 75,000 करोड़ रुपये है, फिर भी शहर को जाम और नागरिक सुविधाओं की कमी से जूझना पड़ रहा है। वहीं वसई-विरार, उल्हासनगर और भिवंडी जैसे शहरों में आबादी तेजी से बढ़ी है, लेकिन सड़क, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाएं उसी गति से नहीं बढ़ीं। इसका नतीजा है, महंगी जिंदगी और घटती जीवन गुणवत्ता।
घर और किराया भी चिंता
तेज शहरीकरण के कारण पूरे एमएमआर में घर और किराए महंगे हो गए हैं। मुंबई पहले से ही देश के सबसे महंगे शहरों में है, और अब उसके उपनगरों में भी आम आदमी के लिए घर लेना मुश्किल होता जा रहा है। इसी वजह से किफायती आवास, झुग्गी पुनर्विकास और जोनिंग जैसे मुद्दे चुनावी चर्चा के केंद्र में हैं।
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रोज का सफर, सबसे बड़ी परेशानी; स्वास्थ्य और शिक्षा की मांग
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