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West Bengal: बुजुर्ग दंपती की हत्या करने वाले रिक्शा चालक को मौत की सजा, अदालत ने कहा- यह दुर्लभतम मामला
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोलकाता
Published by: बशु जैन
Updated Tue, 08 Jul 2025 12:53 PM IST
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सार
15 जुलाई 2015 को प्रोफेसर प्राण गोविंद दास और उनकी पत्नी रेणुका दास की रिक्शा चालक युवक संजय सेन ने चेहरे और सिर पर बार-बार हमला करके हत्या कर दी थी। आरोपी ने चार घंटे तक दंपती के साथ क्रूरता की और बाद में सोने के आभूषण और नकदी लूटकर फरार हो गया था।

अदालत ने मौत की सजा सुनाई (सांकेतिक)
- फोटो : ANI
विस्तार
कोलकाता की एक अदालत ने सेवानिवृत्त प्रोफेसर बुजुर्ग दंपती की हत्या के मामले में रिक्शा चालक युवक को मौत की सजा सुनाई है। बुजुर्ग दंपती के सिर और चेहरे पर क्रूर तरीके से चाकू से किए गए वार और भरोसा तोड़ने का अपराध कहते हुए दुर्लभतम मामला माना है। 15 जुलाई 2015 को प्रोफेसर प्राण गोविंद दास और उनकी पत्नी रेणुका दास की रिक्शा चालक युवक संजय सेन ने चेहरे और सिर पर बार-बार हमला करके हत्या कर दी थी। आरोपी ने चार घंटे तक दंपती के साथ क्रूरता की और बाद में सोने के आभूषण और नकदी लूटकर फरार हो गया था।
सियालदह सत्र न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनिरबन दास ने कहा कि हमें को पीड़ितों की ओर से उकसावे का कोई संकेत नहीं मिला। रिक्शा चालक संजय सेन को दंपती उन दिनों से जानते थे जब वह मछली विक्रेता हुआ करता था और उस पर भरोसा करते थे। वह उत्तर कोलकाता के चितपुर इलाके में एक आवासीय परिसर में स्थित उनके फ्लैट में अक्सर आता-जाता था। दंपती ने सेन को बैंकों, डॉक्टरों और बाजारों में जाने के लिए किराये पर रखा था।
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न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि बुजुर्ग दंपती ने उस पर भरोसा जताया। उसे अपने घर में रहने दिया और दैनिक कार्यों के लिए सहायता के लिए उस पर निर्भर रहे। इससे उसका विश्वासघात अधिक जघन्य हो गया है। इससे साफ है कि संजय सेन ने हत्या की सोची-समझी साजिश रची थी। हमले से संकेत मिलता है कि आरोपी को अपने कृत्य पर पुनर्विचार करने और हिंसा रोकने के कई अवसर मिले, लेकिन उसने अपना फैसला नहीं बदला।
अदालत ने कहा कि दोनों पीड़ितों के चेहरों को खराब करना हिंसा के उस स्तर को दर्शाता है जो डकैती को अंजाम देने के लिए आवश्यक स्तर से कहीं अधिक है। ट्रायल अदालतों को यह समझना चाहिए कि अपराध की गंभीरता, इससे उत्पन्न जनता का गुस्सा और दूसरों को चेतावनी देने की आवश्यकता, ये सभी बातें एक ही निष्कर्ष पर पहुंचती हैं: यह दुर्लभतम मामले का उदाहरण है।
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अदालत ने अपने फैसले में कहा कि न्याय के नियम, सामाजिक मूल्य और कानूनी सिद्धांत सभी स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि दोषी संजय सेन का अपराध इतना गंभीर है कि उसे आजीवन कारावास जैसी हल्की सजा देना पूरी तरह अनुचित होगा। यहां मृत्युदंड देना सिर्फ अपराधी को दंडित करने के लिए नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक आवश्यक कदम है। इससे एक मजबूत नैतिक संदेश मिलता है कि विश्वासघात, कमजोर लोगों का शोषण और अनावश्यक हिंसा का प्रयोग करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी। न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा करके कानून विश्वास, करुणा और मानवीय गरिमा के मूल्यों की रक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे जघन्य अपराध कभी बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।
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सियालदह सत्र न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनिरबन दास ने कहा कि हमें को पीड़ितों की ओर से उकसावे का कोई संकेत नहीं मिला। रिक्शा चालक संजय सेन को दंपती उन दिनों से जानते थे जब वह मछली विक्रेता हुआ करता था और उस पर भरोसा करते थे। वह उत्तर कोलकाता के चितपुर इलाके में एक आवासीय परिसर में स्थित उनके फ्लैट में अक्सर आता-जाता था। दंपती ने सेन को बैंकों, डॉक्टरों और बाजारों में जाने के लिए किराये पर रखा था।
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न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि बुजुर्ग दंपती ने उस पर भरोसा जताया। उसे अपने घर में रहने दिया और दैनिक कार्यों के लिए सहायता के लिए उस पर निर्भर रहे। इससे उसका विश्वासघात अधिक जघन्य हो गया है। इससे साफ है कि संजय सेन ने हत्या की सोची-समझी साजिश रची थी। हमले से संकेत मिलता है कि आरोपी को अपने कृत्य पर पुनर्विचार करने और हिंसा रोकने के कई अवसर मिले, लेकिन उसने अपना फैसला नहीं बदला।
अदालत ने कहा कि दोनों पीड़ितों के चेहरों को खराब करना हिंसा के उस स्तर को दर्शाता है जो डकैती को अंजाम देने के लिए आवश्यक स्तर से कहीं अधिक है। ट्रायल अदालतों को यह समझना चाहिए कि अपराध की गंभीरता, इससे उत्पन्न जनता का गुस्सा और दूसरों को चेतावनी देने की आवश्यकता, ये सभी बातें एक ही निष्कर्ष पर पहुंचती हैं: यह दुर्लभतम मामले का उदाहरण है।
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अदालत ने अपने फैसले में कहा कि न्याय के नियम, सामाजिक मूल्य और कानूनी सिद्धांत सभी स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि दोषी संजय सेन का अपराध इतना गंभीर है कि उसे आजीवन कारावास जैसी हल्की सजा देना पूरी तरह अनुचित होगा। यहां मृत्युदंड देना सिर्फ अपराधी को दंडित करने के लिए नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक आवश्यक कदम है। इससे एक मजबूत नैतिक संदेश मिलता है कि विश्वासघात, कमजोर लोगों का शोषण और अनावश्यक हिंसा का प्रयोग करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी। न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा करके कानून विश्वास, करुणा और मानवीय गरिमा के मूल्यों की रक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे जघन्य अपराध कभी बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।
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