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Doda Encounter: जबरदस्त टेक्निकल इंटेलिजेंस के बावजूद आतंक पर क्यों नहीं लग पा रहा काबू, कहां हो रही है चूक?

Harendra Chaudhary हरेंद्र चौधरी
Updated Thu, 18 Jul 2024 06:35 PM IST
सार
जम्मू के डोडा जिले में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन गुरुवार को भी जारी है। बुधवार देर रात को काश्तीगढ़ के जादान सरकारी लोअर हाई स्कूल में आतंकवादियों ने भारतीय सेना के एक अस्थाई कैंप पर ग्रेनेड फेंका और तीन तरफ से गोलीबारी की। सेना की जवाबी कार्रवाई ने आतंकियों के मंसूबों को विफल कर दिया।
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Doda Encounter: Why terrorism not being controlled despite tremendous technical intelligence Know all
Terror Attack - फोटो : Amar Ujala

विस्तार
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जम्मू के डोडा में आतंकियों के खिलाफ सोमवार से शुरू हुआ सुरक्षा बलों का सर्च ऑपरेशन गुरुवार को भी जारी है। डोडा जिले में गुरुवार तड़के आतंकवादियों के हमले में दो सैनिक जख्मी हो गए। वहीं, कास्तीगढ़ इलाके के जद्दन बाटा गांव में बुधवार देर रात स्कूल में बने अस्थायी सुरक्षा शिविर पर आतंकियों ने गोलीबारी की। डोडा में ही 15 जुलाई को आतंकियों से मुठभेड़ में सेना के एक कैप्टन और पुलिसकर्मी समेत पांच जवान शहीद हो गए थे। जम्मू रीजन में पिछले 84 दिन में 11 आतंकी हमलों में 12 जवानों की शहादत हो चुकी है। सैन्य सूत्रों का कहना है कि आतंकी हमलों में हो रही बढ़ोतरी की मुख्य वजह इंटेलिजेंस फेलियर है। माना जा रहा है कि भरोसेमंद ह्यूमन इटेंलिजेंस की कमी और आतंकवाद विरोधी अभियानों में ढंग से एसओपी का पालन न होने की वजह से आतंकी अब तक सुरक्षाबलों की पहुंच से दूर हैं। 



जम्मू के डोडा जिले में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन गुरुवार को भी जारी है। बुधवार देर रात को काश्तीगढ़ के जादान सरकारी लोअर हाई स्कूल में आतंकवादियों ने भारतीय सेना के एक अस्थाई कैंप पर ग्रेनेड फेंका और तीन तरफ से गोलीबारी की। सेना की जवाबी कार्रवाई ने आतंकियों के मंसूबों को विफल कर दिया। जिसके बाद आतंकवादी घबरा गए और उन्होंने कैंप पर ग्रेनेड फेंका और आतंकवादी पास के जंगल की ओर भाग गए। जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ भारतीय सेना की डेल्टा फोर्स आतंकियों की तलाश में है। 


यूनिफॉर्म फोर्स को एलओसी पर भेजा
आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 से जम्मू-कश्मीर में अभी तक 119 सुरक्षाकर्मियों की शहादत हो चुकी है, जिनमें से 51 सुरक्षा कर्मी अकेले जम्मू डिविजन में शहीद हुए हैं। पिछले दो दशकों से, जम्मू क्षेत्र आतंकी घटनाओं से अपेक्षाकृत मुक्त रहा है, कश्मीर घाटी की तुलना में यहां सैन्य बलों की तैनाती कम थी। लेकिन 2020 की गर्मियों से गलवान में चीन के साथ हुए गतिरोध के चलते बनिहाल और उधमपुर में तैनात राष्ट्रीय राइफल्स की यूनिफॉर्म फोर्स को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थानांतरित कर दिया गया था, जिससे आतंकियों को इस इलाके में पकड़ बनाने का मौका मिला। 

आतंकवादी टेक्नोलॉजी में हुए एडवांस
इस इलाके में काम कर चुके सेना के एक वरिष्ठ अफसर ने अमर उजाला को बताया कि पिछले कुछ सालों से ह्यूमन इटेंलिजेंस (HUMINT) की जगह टेक्निकल इंटेलिजेंस (TECHINT) पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। हाल के आतंकवाद विरोधी अभियानों में जमीनी स्तर पर सुरक्षा बल कम दिखाई देते हैं। साथ ही, सुरक्षा बल इलाके में छिपे आतंकवादियों की आवाजाही और गतिविधियों की खुफिया जानकारी जुटाने में विफल रहे हैं। खुफिया एजेंसियां भी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि आतंकवादी पहले के मुकाबले अब तकनीकी तौर पर ज्यादा एडवांस हो गए हैं, जिससे वे सुरक्षा बलों के निगरानी तंत्र से बच निकलते हैं।

टेक्निकल इंटेलिजेंस पर निर्भर रहना ठीक नहीं
केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में हाल ही में लगभग 80 फीसदी खुफिया जानकारी टेक्निकल इंटेलिजेंस से मिली है। जिसमें मोबाइल या लैंडलाइन फोन कॉल रिकॉर्ड, ड्रोन फुटेज, ईमेल, सैटेलाइट इमेज, सोशल मीडिया पोस्ट और गूगल लोकेशन आदि शामिल हैं। सेना के वरिष्ठ अफसर ने बताया कि आजकल, टेक्निकल इंटेलिजेंस पर बहुत समय और पैसा लगाया जा रहा है, जिसमें मोबाइल लोकेशन को ट्रैक करना, चैट को इंटरसेप्ट करना और लोकेशन मैप करना शामिल हैं। उनका कहना है कि आतंकवाद विरोधी अभियानों और खुफिया जानकारियां जुटाने के लिए ह्यूमन इटेंलिजेंस का कोई तोड़ नहीं है। ये इंटेलिजेंस का आधार है। टेक्निकल इंटेलिजेंस इसमें सहायक हो सकती है, लेकिन पूरी तरह से इस पर निर्भर रहना ठीक नहीं है। क्योंकि टेक्निकल इंटेलिजेंस से डाटा जुटाने में समय लगता है और इसका प्रोसेस लंबा होता है। हाल ही में आतंकियों के साथ हुईं मुठभेड़ों का विश्लेषण करते हुए सैन्य सूत्रों ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां हाई अलर्ट पर हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर ह्यूमन इटेंलिजेंस की कमी के कारण ऑपरेशन में खुफिया जानकारी मिलने में बाधा आ रही है।

ह्यूमन इंटेलिजेंस को किया नजरअंदाज
सूत्रों ने बताया कि कश्मीर घाटी में HUMINT ग्रिड जबरदस्त है और वहां सैन्य बल की भारी तैनाती है। वहां पर सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस, मिलिट्री इंटेलिजेंस और अन्य खुफिया एजेंसियों से मिले इनपुट पर काम करती है। जिससे वहां आतंकियों की हिम्मत टूटी है। वहीं, काफी सालों तक शांत रहे जम्मू में HUMINT की बहुत उपेक्षा की गई, क्योंकि घाटी पर ज़्यादा फोकस किया गया है। जम्मू में एक दशक से ज्यादा समय से 'शांति' के वजह इसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है। सुरक्षा बलों को फिर से जम्मू में ह्यूमन इंटेलिजेंस पर काम करने की जरूरत है। वहीं, टेक्निकल इंटेलिजेंस (TECHINT) पर निर्भरता से ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है, क्योंकि आतंकवादी अब सुरक्षा बलों की आंखों में धूल झोंकने के लिए कम्यूनिकेशन के लिए चीन के बनाए हाईब्रिड अल्ट्रासेट सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं, जो अत्यधिक एन्क्रिप्टेड है, जिसे डिकोड करना आसान नहीं है। 

ह्यूमन इंटेलिजेंस के लिए सुरक्षा एजेंसियों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, नए सोर्स बनाने पड़ते हैं। लोगों में भरोसा पैदा करना पड़ता है। सूत्रों का कहना है कि ह्यूमन इंटेलिजेंस से देश के कई इलाकों में शांति आई है। जम्मू-कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 को हटाया गया था, तो घाटी में शांति स्थापित करने के लिए ह्यूमन इंटेलिजेंस पर बहुत ध्यान दिया गया था।  

300 ओवरग्राउंड वर्कर सक्रिय
हाल ही में खबरें आई थीं जिसमें जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक टॉप अफसर ने दावा किया था कि आतंकवादी जम्मू क्षेत्र में आतंकवाद को फिर से जिंदा करने के लिए आत्मसमर्पण कर चुके आतंकवादियों को ओवरग्राउंड वर्करों (OWG) के तौर पर शामिल कर रही है। एक अनुमान के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में करीब 300 ओवरग्राउंड वर्कर सक्रिय हैं, जिनका काम आतंकवादियों को रसद-भोजन, पैसा, आवास और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराना है। अकसर ओवरग्राउंड वर्कर आतंकवादियों से भी ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं क्योंकि वे बिना हथियारों के खुलेआम घूमते हैं, जिससे सुरक्षा बलों के लिए उनका पता लगाना और मुश्किल हो जाता है।

लेकिन तमाम ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें सर्च टीम खुफिया सूचना के आधार पर आतंकियों की धड़पकड़ करने गई, लेकिन आतंकियों की गोलियों का शिकार हो गई। 15 जुलाई को डोडा में आतंकियों के साथ जो मुठभेड़ हुई थी, उसमें भी सेना और एसओजी की टीम को खास इंटेलिजेंस इनपुट मिला था, जिसमें एक कैप्टन समेत चार लोग शहीद हो गए। इस हमले की की जिम्मेदारी पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के छदम संगठन कश्मीर टाइगर्स ने ली थी। इसी तरह, पिछले साल राजौरी जिले के कंडी इलाके में तलाशी अभियान के दौरान घने जंगलों में आतंकवादियों ने आईईडी लगाया था, जिसमें पांच पैरा कमांडो शहीद हो गए थे।

क्या CASO में एसओपी का नहीं हो रहा पालन?
सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि सर्च ऑपरेशन के दौरान इस तरह की विफलताओं से सेना के मनोबल पर नकारात्मक असर पड़ता है। क्योंकि पूरी दुनिया में भारतीय सेना को आतंकवाद विरोधी अभियानों को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सैन्य सूत्रों के मुताबिक इंटेलिजेंस फेलियर की कमियों का पता लगाना बेहद जरूरी है। ऐसा लगता है कि कॉर्डन एंड सर्च ऑपरेशन (CASO) यानी घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू करने से पहले निर्धारित एसओपी का पालन नहीं किया जा रहा है। कॉर्डन एंड सर्च ऑपरेशन का इस्तेमाल किसी खास इलाके में आतंकवादियों का पीछा करने या हथियार बरामद करने के लिए किया जाता है। इसमें टारगेट एरिया के चारों तरफ एक घेरा बना दिया जाता है। इसमें ध्यान रखा जाता है कि आतंकियों के एंट्री पॉइंट और एग्जिट पॉइंट पर सैन्य बलों की विशेष तैनाती हो। ताकि टारगेट एरिया को अलग-थलग किया जा सके और सभी खतरों को ध्यान में रखते हुए हर नुक्कड़ और कोने की तलाशी ली जाए। हालांकि स्थानीय लोगों के कड़े विरोध के बाद 2000 के दशक की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर में CASO को बंद कर दिया गया था। लेकिन सेना ने 2018 में इसे फिर से करना शुरू कर दिया।

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