पूर्व वायुसेना प्रमुख को आज भी अफसोस, बोले- अभिनंदन के पास राफेल होता तो स्थिति कुछ और होती
- भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख बीएस धनोआ ने जताया अफसोस
- कहा, बालाकोट का सबसे बड़ा सबक यही कि तकनीक बहुत मायने रखती है
- बालाकोट हमले के बाद वायुसेना के निशाने पर था पाकिस्तान
विस्तार
भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख बीएस धनोआ को इस बात का अफसोस है कि 27 फरवरी को पाक वायुसेना के खिलाफ कुछ खास कदम नहीं उठाए जा सके और इसकी वजह यही थी कि हम तकनीकी रूप से कम सक्षम थे। अगर भारत के पास राफेल जैसे एडवांस्ड एयरक्राफ्ट होता तो नतीजा और बेहतर हो सकते थे।
उन्होंने इसके लिए उन लोगों को जिम्मेदार बताया, जिनकी वजह से भारतीय रक्षा क्षमताओं को बेहतर बनाने में देरी हुई है। वह रविवार को चंडीगढ़ में आयोजित मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल समारोह में अंडरस्टैंडिग द मैसेज ऑफ बालाकोट विषय पर आयोजित चर्चा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि बहुत कम समय के लिए इस मामले से यही सबसे बड़ा सबक मिला है कि तकनीकी मायने रखती है। उन्होंने सवाल करते कहा कि क्या होता अगर विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान मिग21 बाइसन की जगह राफेल को उड़ा रहे होते। हमने तकनीकी की समस्या को बहुत कम हल किया है।
उन लोगों की जिम्मेदारी का क्या जिन्हें इस तकनीक को लेकर आना था और मीडियम मल्टी रोल लड़ाकू विमान को लेकर करीब दस साल से महज बातचीत कर रहे हैं। धनोआ 30 सितंबर को वायुसेना से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
पाक सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले के लिए तैयार थी वायुसेना
उन्होंने कहा, 26 फरवरी, 2019 को बालाकोट हवाई हमले के बाद हमारी वायुसेना पाकिस्तान पर हमले के लिए पूरी तरह से मुस्तैद थी और अगर पाकिस्तानी एयरफोर्स भारत के सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाती तो इसके जवाब भारतीय वायुसेना ने तैयार कर रखा था। तब पाकिस्तानी सेना हमारे निशाने पर थी और हम उनपर हमला करने के लिए तैयार थे।
उन्होंने कहा कि जब वायुसेना ने बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई की थी, तो इसका मतलब भी यही था कि भारत भी पाकिस्तान के साथ युद्ध नहीं चाहता था, बस वह 14 फरवरी को पुलवामा में हुए आत्मघाती आतंकी हमले का जवाब देना चाहता था।
उन्होंने कहा कि तब पाकिस्तान आर्थिक संकटों का सामना कर रहा था, अगर वे हमारे साथ युद्ध करते तो उनको हकीकत में ही घास की रोटियां खानी पड़तीं, जैसा कि कभी उनके पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो ने दावा किया था।
राजनीतिक इच्छाशक्ति से मिला समर्थन
सरकार और राजनीतिक इच्छाशक्ति साफ थी कि पड़ोसी मुल्क को ऐसे हमलों की कीमत चुकानी होगी, चाहें आप कहीं भी हों। बालाकोट का मकसद पाकिस्तान और आतंकी आकाओं को संदेश देना था कि भारत में आतंकी हमलों की कीमत चुकानी होगी। आतंकियों को भारत सरकार के जवाब में बुनियादी बदलाव आ रहा है।
1993 के मुंबई बम धमाके, और 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद से सेना की जवाबी कार्रवाई नहीं हुई पर 2016 में उड़ी में पहली बार सेना ने आतंकी शिविर नष्ट करके कार्रवाई की। इससे पाक सरकार को संदेश मिला कि नई सरकार उनकी जमीन पर सैन्य कार्रवाई कर सकती है।
पुलवामा के बाद पाकिस्तान को इसका अंदाजा था कि भारत इसका बदला लेगा। उन्होंने कहा कि हमारे सामने केवल दो सवाल थे- कब और कहां इसका बदला लिया जाएगा। हमने बालाकोट स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेनिंग कैंपों को निशाना बनाने का फैसला किया क्योंकि पुलवामा हमले में इसी संगठन का हाथ था। इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति एकदम साफ थी।