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नगालैंड की कहानी: 1960 में समझौता, 2015 में सुलह और अब खून-खराबा, जानें हिंसा से जुड़ा पूरा किस्सा
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नगालैंड
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अमर उजाला
विस्तार
नगालैंड के मोन जिले में कथित तौर पर सुरक्षाबलों की गोली से 12 ग्रामीणों की मौत का मामला सामने आया है। मिली जानकारी के अनुसार, ग्रामीणों को उग्रवादी समझकर सुरक्षाबलों ने गोली चला दी थी। इस घटना के बाद आक्रोशित ग्रामीणों ने भी सुरक्षाबल के जवानों पर हमला बोल दिया। इसमें एक जवान के शहीद और कईयों के घायल होने की खबर है।मामले की जांच के लिए मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने एसआईटी और सेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का गठन किया है। दोनों जांच की रिपोर्ट तो बाद में आएगी, लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर अचानक इतनी बड़ी घटना के पीछे क्या वजह है? सुरक्षाबलों ने किन उग्रवादियों पर कार्रवाई के लिए घेरेबंदी की थी? सात साल बाद फिर क्यों नगालैंड में हिंसा की आग भड़कने लगी है? नगालैंड का पूरा विवाद क्या है?
पहले नगालैंड का इतिहास जान लीजिए

नगालैंड
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अमर उजाला
भारत की आजादी के समय मुस्लिम लीग के दबाव में पाकिस्तान को अलग देश बनाने पर मंथन चल रहा था। उस दौरान नॉर्थ ईस्ट के कई राज्य भी अलग होने के लिए तैयार थे। तब सरदार वल्लभभाई पटेल और पं. जवाहर लाल नेहरू ने इनको समझाने की कवायद शुरू की। ज्यादातर राज्य मान गए, लेकिन नागा नेशनल काउंसिल यानी एमएनसी भारत में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे।
एमएनसी का गठन 1946 में नागा नेता अंगामी जापू फिजो ने किया था। वह नगालैंड को अलग देश का दर्जा दिलाने की मांग कर रहे थे। अंगामी का ये भी कहना था कि ब्रिटेन ने नगालैंड के कई इलाकों को असम में शामिल कर दिया है। इसे भी वापस नगालैंड में शामिल कराना होगा। तब पं. नेहरू ने नागा इलाके को असम का हिस्सा बताते हुए इनकी मांगों को खारिज कर दिया।
सरकार की तरफ से मांगे खारिज होने पर अंगामी ने नया दांव चल दिया। 1956 में उन्होंने भारत सरकार को चुनौती देते हुए नागा फेडरल गवर्नमेंट यानी एनएफजी का गठन कर लिया। ये लोग अंडरग्राउंड होकर भारत सरकार के समानांतर अपनी अलग सरकार चलाने लगे। अंगामी ने हथियारों से लैस नागा फेडरल आर्मी का भी गठन किया था। इस आर्मी के जरिए आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाने लगा।
इसे रोकने के लिए भारतीय सेना ने भी ऑपरेशन शुरू कर दिया। बाद में भारत सरकार और नागा पीपुल्स कन्वेंशन के नेता बातचीत के टेबल पर आए। ये बात 1960 की है। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कन्वेंशन के नेताओं ने 16 बिंदुओं पर समझौता किया। इसमें जिन बिंदुओं पर सहमति बनी थी, उसी पर बाद में विवाद शुरू हो गया और आज भी ये विवाद जारी है।
इस समझौते के बाद एक दिसंबर 1963 को नगालैंड भारत का 16वां राज्य बन गया। 1964 यहां पहली बार चुनाव कराए गए, लेकिन अलग राज्य बनने के बावजूद नगालैंड में उग्रवादी गतिविधियों पर रोक नहीं लग पाई। 1975 में कई उग्रवादी नेताओं ने हथियार डाला लेकिन ये भी काफी नहीं रहा। 1980 में कुछ उग्रवादियों ने मिलकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) का गठन कर दिया। मोन जिले में जिन उग्रवादियों पर कार्रवाई के लिए सुरक्षाबलों ने घेरेबंदी की थी, वो इसी संगठन से जुड़े हैं। खुफिया एजेंसियों को सूचना मिली थी कि एनएससीएन के उग्रवादी कुछ बड़ी वारदात को अंजाम देने वाले हैं।
एमएनसी का गठन 1946 में नागा नेता अंगामी जापू फिजो ने किया था। वह नगालैंड को अलग देश का दर्जा दिलाने की मांग कर रहे थे। अंगामी का ये भी कहना था कि ब्रिटेन ने नगालैंड के कई इलाकों को असम में शामिल कर दिया है। इसे भी वापस नगालैंड में शामिल कराना होगा। तब पं. नेहरू ने नागा इलाके को असम का हिस्सा बताते हुए इनकी मांगों को खारिज कर दिया।
सरकार की तरफ से मांगे खारिज होने पर अंगामी ने नया दांव चल दिया। 1956 में उन्होंने भारत सरकार को चुनौती देते हुए नागा फेडरल गवर्नमेंट यानी एनएफजी का गठन कर लिया। ये लोग अंडरग्राउंड होकर भारत सरकार के समानांतर अपनी अलग सरकार चलाने लगे। अंगामी ने हथियारों से लैस नागा फेडरल आर्मी का भी गठन किया था। इस आर्मी के जरिए आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाने लगा।
इसे रोकने के लिए भारतीय सेना ने भी ऑपरेशन शुरू कर दिया। बाद में भारत सरकार और नागा पीपुल्स कन्वेंशन के नेता बातचीत के टेबल पर आए। ये बात 1960 की है। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कन्वेंशन के नेताओं ने 16 बिंदुओं पर समझौता किया। इसमें जिन बिंदुओं पर सहमति बनी थी, उसी पर बाद में विवाद शुरू हो गया और आज भी ये विवाद जारी है।
इस समझौते के बाद एक दिसंबर 1963 को नगालैंड भारत का 16वां राज्य बन गया। 1964 यहां पहली बार चुनाव कराए गए, लेकिन अलग राज्य बनने के बावजूद नगालैंड में उग्रवादी गतिविधियों पर रोक नहीं लग पाई। 1975 में कई उग्रवादी नेताओं ने हथियार डाला लेकिन ये भी काफी नहीं रहा। 1980 में कुछ उग्रवादियों ने मिलकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) का गठन कर दिया। मोन जिले में जिन उग्रवादियों पर कार्रवाई के लिए सुरक्षाबलों ने घेरेबंदी की थी, वो इसी संगठन से जुड़े हैं। खुफिया एजेंसियों को सूचना मिली थी कि एनएससीएन के उग्रवादी कुछ बड़ी वारदात को अंजाम देने वाले हैं।
पं. नेहरू से समझौते में विवाद की क्या वजह है?

पं. जवाहरलाल नेहरू
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1. पं. नेहरू और नागा नेताओं के बीच जो समझौते हुए उसके मुताबिक, असम में शामिल नगालैंड के हिस्सों को वापस कराया जाएगा। इसके लिए 1971 में सुंदरम कमीशन का गठन किया। कमीशन ने कई सिफारिशें की, लेकिन नगालैंड ने इसे अस्वीकार कर दिया। नागाओं का कहना है कि इसकी फिर से जांच कराई जाए।
2. नगालैंड के नेताओं का कहना है कि असम में पड़ने वाले सिवासागर, जोरहाट, गोलाघाट और कार्बी आंगलॉन्ग में पड़ने वाले ए, बी, सी, डी सेक्टर की 12,883 स्कवॉयर किलोमीटर जमीन सौंप दी जाए। नागाओं का कहना है कि ये जमीन उनकी जनजाति की है और पं. नेहरू ने इसे वापस करने का वादा किया था।
असम सरकार का क्या कहना है?
नगालैंड के दावों के विपरीत असम सरकार का कहना है कि ये सभी इलाके हमेशा से असम में ही रहे हैं। इसलिए इनपर नगालैंड का दावा करना गलत है। असम सरकार का ये भी आरोप है कि नागाओं ने सीमावर्ती कई जिलों में अतिक्रमण कर लिया है।
2. नगालैंड के नेताओं का कहना है कि असम में पड़ने वाले सिवासागर, जोरहाट, गोलाघाट और कार्बी आंगलॉन्ग में पड़ने वाले ए, बी, सी, डी सेक्टर की 12,883 स्कवॉयर किलोमीटर जमीन सौंप दी जाए। नागाओं का कहना है कि ये जमीन उनकी जनजाति की है और पं. नेहरू ने इसे वापस करने का वादा किया था।
असम सरकार का क्या कहना है?
नगालैंड के दावों के विपरीत असम सरकार का कहना है कि ये सभी इलाके हमेशा से असम में ही रहे हैं। इसलिए इनपर नगालैंड का दावा करना गलत है। असम सरकार का ये भी आरोप है कि नागाओं ने सीमावर्ती कई जिलों में अतिक्रमण कर लिया है।
बाद में क्या हुआ और अभी क्या स्थिति है?

नगालैंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
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राज्य बनने के बाद भी उग्रवादियों ने हिंसा जारी रखा। इसको देखते हुए 1997 में केंद्र सरकार और राज्य के सबसे बड़े उग्रवादी संगठन एनएससीएन (आई-एम) के बीच युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर हुआ। लेकिन कुछ सालों बाद फिर वही स्थिति हो गई। 2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस विवाद को शांत करने की तेजी से प्रक्रिया शुरू की।
2015 में केंद्र सरकार ने एनएससीएन के इसाक मुइवा गुट के साथ एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। वर्ष 2017 में भी नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप जैसे सात विद्रोही गुटों को शांति समझौते में शामिल कर लिया गया। हालांकि, अभी तक इस समझौते के बिंदुओं की जानकारी सामने नहीं आ पाई है। इसकी मध्यस्थता आरएन रवि ने की थी, जो अभी नगालैंड के राज्यपाल हैं। इस समझौते के बाद राज्य में हिंसात्मक घटनाओं पर काफी हद तक रोक लग गई थी।
अभी क्या स्थिति है?
एनएससीएन (आईएम) ने छह साल पहले हुए फ्रेमवर्क समझौते लेकर हाल ही में एक बयान जारी किया था। इसमें कहा गया, 'छह साल बीत जाने के बाद भी भारत सरकार की ओर से अब तक कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। नागाओं के साथ ऐसा सलूक नहीं किया जा सकता।'
उधर, केंद्र सरकार का कहना है कि इस विवाद को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों के साथ बातचीत जारी है। जल्द ही कुछ सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे।
2015 में केंद्र सरकार ने एनएससीएन के इसाक मुइवा गुट के साथ एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। वर्ष 2017 में भी नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप जैसे सात विद्रोही गुटों को शांति समझौते में शामिल कर लिया गया। हालांकि, अभी तक इस समझौते के बिंदुओं की जानकारी सामने नहीं आ पाई है। इसकी मध्यस्थता आरएन रवि ने की थी, जो अभी नगालैंड के राज्यपाल हैं। इस समझौते के बाद राज्य में हिंसात्मक घटनाओं पर काफी हद तक रोक लग गई थी।
अभी क्या स्थिति है?
एनएससीएन (आईएम) ने छह साल पहले हुए फ्रेमवर्क समझौते लेकर हाल ही में एक बयान जारी किया था। इसमें कहा गया, 'छह साल बीत जाने के बाद भी भारत सरकार की ओर से अब तक कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। नागाओं के साथ ऐसा सलूक नहीं किया जा सकता।'
उधर, केंद्र सरकार का कहना है कि इस विवाद को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों के साथ बातचीत जारी है। जल्द ही कुछ सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे।