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Great Nicobar Project: कांग्रेस का केंद्र पर आरोप, ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट से जुड़ा केस लंबित, फिर भी काम जारी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Sun, 14 Sep 2025 02:13 PM IST
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सार
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस मामले में कहा कि पर्यावरणीय मंजूरी को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में भी केस लंबित है। इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन ने जमीन चिन्हित करने और पेड़ों की कटाई जैसी प्रक्रियाएं शुरू कर दी हैं।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
कांग्रेस ने रविवार को केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह ग्रेट निकोबार मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को जबरन आगे बढ़ा रही है, जबकि इस परियोजना की पर्यावरणीय और कानूनी मंजूरी को लेकर कोर्ट में चुनौती दी गई है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यह प्रोजेक्ट एक 'पर्यावरणीय आपदा' है और सरकार इसे 'बुलडोज' कर रही है। उन्होंने बताया कि अंडमान एंड निकोबार आइलैंड्स इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने पेड़ों की गिनती, कटाई, लकड़ी की ढुलाई और जमीन पर मार्किंग के लिए इच्छुक कंपनियों से प्रस्ताव मांगे हैं।
यह भी पढ़ें - SY Quraishi: 'वोट चोरी के आरोपों की जांच के बजाय राहुल पर गुस्सा क्यों?' पूर्व CEC ने की चुनाव आयोग की आलोचना
जयराम रमेश ने बताया कि 18 अगस्त 2022 को अंडमान और निकोबार प्रशासन ने प्रमाणित किया था कि वनाधिकार अधिनियम, 2006 के तहत सभी व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार तय कर लिए गए हैं और जमीन हस्तांतरण की सहमति मिल चुकी है। लेकिन 18 दिसंबर 2024 को पूर्व आईएएस अधिकारी मीना गुप्ता ने इस प्रमाणन को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनकी याचिका में दावा किया गया कि यह प्रमाणन वनाधिकार अधिनियम के नियमों और प्रक्रिया का उल्लंघन करता है।
एनजीटी में भी एक केस लंबित है- जयराम रमेश
कांग्रेस नेता के अनुसार, 19 फरवरी 2025 को केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने हाईकोर्ट से खुद को इस मामले में पार्टी से हटाने की अजीब मांग की। लेकिन 8 सितंबर 2025 को यही मंत्रालय स्थानीय प्रशासन से यह रिपोर्ट मांग बैठा कि जनजातीय परिषद द्वारा उठाए गए मुद्दों पर वनाधिकार अधिनियम का पालन क्यों नहीं हुआ। उन्होंने कहा, 'इससे साफ है कि जनजातीय कार्य मंत्रालय का रुख साफ नहीं है, जबकि मामला कोर्ट में विचाराधीन है।'
'पर्यावरणीय आपदा को जबरन लागू कर रही है सरकार'
रमेश ने कहा कि गैलेथेया बे को पहले ही 'मेजर पोर्ट' घोषित कर दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि 'वनाधिकार अधिनियम और पर्यावरणीय नियमों की खुली अनदेखी करते हुए मोदी सरकार इस पर्यावरणीय आपदा को जबरन लागू कर रही है।'
यह भी पढ़ें - Insurance Amendment Bill: वित्त मंत्री बोलीं- शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है बीमा संशोधन विधेयक
सोनिया गांधी के दावे को मंत्री ने किया था खारिज
इससे पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इस प्रोजेक्ट को 'योजनाबद्ध गलत कदम' करार दिया था। उन्होंने कहा था कि यह द्वीप के मूलनिवासी समुदायों के लिए अस्तित्व का खतरा है और कानूनी प्रक्रियाओं की मजाक उड़ाई जा रही है। वहीं, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि परियोजना के लिए सभी जरूरी मंजूरी मिल चुकी है और यह देश के विकास के लिए जरूरी कदम है।

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On August 18, 2022, the Andaman and Nicobar Islands administration—controlled by the Union Home Ministry—certified that all individual and community rights under the Forest Rights Act, 2006 had been identified, settled, and consent obtained for diversion to the Great Nicobar mega…
विज्ञापन— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) September 14, 2025विज्ञापन
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जयराम रमेश ने बताया कि 18 अगस्त 2022 को अंडमान और निकोबार प्रशासन ने प्रमाणित किया था कि वनाधिकार अधिनियम, 2006 के तहत सभी व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार तय कर लिए गए हैं और जमीन हस्तांतरण की सहमति मिल चुकी है। लेकिन 18 दिसंबर 2024 को पूर्व आईएएस अधिकारी मीना गुप्ता ने इस प्रमाणन को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनकी याचिका में दावा किया गया कि यह प्रमाणन वनाधिकार अधिनियम के नियमों और प्रक्रिया का उल्लंघन करता है।
एनजीटी में भी एक केस लंबित है- जयराम रमेश
कांग्रेस नेता के अनुसार, 19 फरवरी 2025 को केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने हाईकोर्ट से खुद को इस मामले में पार्टी से हटाने की अजीब मांग की। लेकिन 8 सितंबर 2025 को यही मंत्रालय स्थानीय प्रशासन से यह रिपोर्ट मांग बैठा कि जनजातीय परिषद द्वारा उठाए गए मुद्दों पर वनाधिकार अधिनियम का पालन क्यों नहीं हुआ। उन्होंने कहा, 'इससे साफ है कि जनजातीय कार्य मंत्रालय का रुख साफ नहीं है, जबकि मामला कोर्ट में विचाराधीन है।'
'पर्यावरणीय आपदा को जबरन लागू कर रही है सरकार'
रमेश ने कहा कि गैलेथेया बे को पहले ही 'मेजर पोर्ट' घोषित कर दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि 'वनाधिकार अधिनियम और पर्यावरणीय नियमों की खुली अनदेखी करते हुए मोदी सरकार इस पर्यावरणीय आपदा को जबरन लागू कर रही है।'
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सोनिया गांधी के दावे को मंत्री ने किया था खारिज
इससे पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इस प्रोजेक्ट को 'योजनाबद्ध गलत कदम' करार दिया था। उन्होंने कहा था कि यह द्वीप के मूलनिवासी समुदायों के लिए अस्तित्व का खतरा है और कानूनी प्रक्रियाओं की मजाक उड़ाई जा रही है। वहीं, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि परियोजना के लिए सभी जरूरी मंजूरी मिल चुकी है और यह देश के विकास के लिए जरूरी कदम है।