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रोशनी यहां है: बगैर पेशेवर ज्ञान, खाली जेब से की शुरुआत; आज रियल एस्टेट के दिग्गजों में शुमार हैं पीएनसी मेनन
न्यूज डेस्क, अमर उजाला
Published by: शुभम कुमार
Updated Mon, 16 Dec 2024 05:28 AM IST
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सार
कभी गरीबी का दंश झेलने वाले और आज 23 हजार करोड़ रुपये की कंपनी सोभा डेवलपर्स के मालिक पीएनसी मेनन को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। उसके बावजूद भी आज उन्होंने रियल एस्टेट के क्षेत्र में अपनी जो पहचान बनाई है, वह किसी परिचय की मोहताज नहीं है...

पीएनसी मेनन
- फोटो : अमर उजाला

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विस्तार
यह कहानी है एक दशक पहले की, जब भारतीय आईटी कंपनी इंफोसिस के हैदराबाद कॉम्प्लेक्स का एक बड़ा हिस्सा बनकर पूरा हुआ। उससे जुड़े आर्किटेक्ट और ठेकेदार समेत एक दर्जन से ज्यादा अधिकारियों ने उसका निरीक्षण किया और काम को संतोषजनक बताते हुए उस पर मुहर लगा दी। हालांकि, अगले दिन जब इमारत का निरीक्षण निर्माण करने वाली संस्था के मालिक ने किया, तो काम की गुणवत्ता को देखकर वह काफी नाराज हुए।
उन्होंने अपने कर्मचारियों को लगभग 10,000 वर्ग फीट के क्षेत्र की टाइल्स को उखाड़कर फिर से बिछाने का आदेश दिया। वह व्यक्ति थे विपरीत परिस्थितियों पर जीत हासिल करने वाले और बंगलूरू की रियल एस्टेट कंपनी ‘सोभा डेवलपर्स’ के संस्थापक पुथन नादुवक्कट चेंथमरक्ष मेनन उर्फ पीएनसी मेनन। उनका शुरुआती जीवन वित्तीय संघर्षों से भरा हुआ था, इसलिए वह पैसों की कीमत समझते थे। केरल से ताल्लुक रखने वाले मेनन युवावस्था में जेब में सिर्फ 50 रुपये लेकर एक ऐसी राह पर निकल पड़े, जिस पर चलते हुए वह आज 23 हजार करोड़ रुपये के साम्राज्य के मालिक बन गए हैं।
मुश्किल समय में हार मान लेना और अपनी किस्मत को दोष देना सबसे आसान विकल्प होता है, लेकिन मेनन ऐसे इन्सान हैं, जिन्होंने अपने बुरे समय में भी कुछ ऐसा कर दिखाया कि उनकी सफलता लोगों के लिए मिसाल बन गई। वह अपने परोपकारी प्रयासों और काम के प्रति प्रतिबद्धता के जरिये दुनिया भर के उद्यमियों और युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं। उनका जीवन कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की सच्ची कहानी है।
छोटी उम्र में छूटा पिता का साथ
पीएनसी मेनन केरल के पालघाट में अपने परिवार के साथ रहते थे। मेनन का संघर्ष महज दस साल की उम्र में ही शुरू हो गया, जब उनके खेलने-खाने के दिन थे। उनके पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद परिवार पर आर्थिक संकटों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।
वह पढ़ने में होशियार थे, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते कॉलेज में दाखिला ले पाने में असमर्थ थे। नतीजतन, उन्हें बीकॉम के दौरान ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। हौसलों के मजबूत मेनन ने बिना किसी पेशेवर शिक्षा के इंटीरियर और डिजाइनिंग का काम करना शुरू कर दिया। वह लगातार कड़ी मेहनत करते रहे, ताकि अपना व्यवसाय शुरू करने का सपना पूरा कर सकें।
महज पचास रुपये से शुरुआत
1970 के दशक की शुरुआत में मेनन ने लकड़ी के फर्नीचर बनाने वाली एक छोटी-सी कंपनी शुरू की। व्यापार के सिलसिले में एक बार कोचीन के एक होटल में उनकी मुलाकात ओमान सल्तनत की सेना में कैप्टन सुलेमान अल अदावी से हुई। अदावी नाव खरीदने के लिए केरल आए हुए थे। वह फर्नीचर बनाने वाले युवा मेनन के काम से काफी प्रभावित हुए और उन्हें ओमान आकार व्यापार करने का सुझाव दिया।
अदावी की सलाह पर मेनन ने ओमान जाने का साहसिक और चुनौतीपूर्ण फैसला लिया। जेब में महज पचास रुपये लेकर वह ओमान चले गए। वहां पहुंचकर कई चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने 3.5 लाख रुपये का लोन लिया और एक इंटीरियर डेकोरेशन कंपनी शुरू की।
गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा
पीएनसी मेनन पैसों के अभाव में खुद तो नहीं पढ़ सके, लेकिन शिक्षा का महत्व उन्हें पता था। उनका सपना है कि उनके गांव और आसपास के इलाके का कोई भी बच्चा वित्तीय बाधा के चलते पढ़ाई से वंचित न हो। इसीलिए उन्होंने अपने गांव में बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं वाला स्कूल, सुपरस्पेशलिटी अस्पताल और बुजुर्गों के लिए पांच सितारा वृद्धाश्रम बनवाया है। एक ही गांव में ये तीनों सुविधाएं और गरीबों के लिए मुफ्त में उपलब्ध होना एक अनोखी बात है।
पत्नी के नाम पर कंपनी
मेनन 1995 में भारत लौट आए और बंगलूरू में सोभा डेवलपर्स की शुरुआत की। कंपनी का नाम उन्होंने अपनी पत्नी 'सोभा' के नाम पर रखा है। आज कंपनी की कुल नेटवर्थ लगभग 23 हजार करोड़ रुपये है और यह देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में शुमार है। औपचारिक डिग्री और पेशेवर ज्ञान की कमी के बावजूद उनकी मेहनत के दम पर कंपनी दिन-ब-दिन तरक्की करती गई।
युवाओं को सीख
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उन्होंने अपने कर्मचारियों को लगभग 10,000 वर्ग फीट के क्षेत्र की टाइल्स को उखाड़कर फिर से बिछाने का आदेश दिया। वह व्यक्ति थे विपरीत परिस्थितियों पर जीत हासिल करने वाले और बंगलूरू की रियल एस्टेट कंपनी ‘सोभा डेवलपर्स’ के संस्थापक पुथन नादुवक्कट चेंथमरक्ष मेनन उर्फ पीएनसी मेनन। उनका शुरुआती जीवन वित्तीय संघर्षों से भरा हुआ था, इसलिए वह पैसों की कीमत समझते थे। केरल से ताल्लुक रखने वाले मेनन युवावस्था में जेब में सिर्फ 50 रुपये लेकर एक ऐसी राह पर निकल पड़े, जिस पर चलते हुए वह आज 23 हजार करोड़ रुपये के साम्राज्य के मालिक बन गए हैं।
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मुश्किल समय में हार मान लेना और अपनी किस्मत को दोष देना सबसे आसान विकल्प होता है, लेकिन मेनन ऐसे इन्सान हैं, जिन्होंने अपने बुरे समय में भी कुछ ऐसा कर दिखाया कि उनकी सफलता लोगों के लिए मिसाल बन गई। वह अपने परोपकारी प्रयासों और काम के प्रति प्रतिबद्धता के जरिये दुनिया भर के उद्यमियों और युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं। उनका जीवन कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की सच्ची कहानी है।
छोटी उम्र में छूटा पिता का साथ
पीएनसी मेनन केरल के पालघाट में अपने परिवार के साथ रहते थे। मेनन का संघर्ष महज दस साल की उम्र में ही शुरू हो गया, जब उनके खेलने-खाने के दिन थे। उनके पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद परिवार पर आर्थिक संकटों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।
वह पढ़ने में होशियार थे, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते कॉलेज में दाखिला ले पाने में असमर्थ थे। नतीजतन, उन्हें बीकॉम के दौरान ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। हौसलों के मजबूत मेनन ने बिना किसी पेशेवर शिक्षा के इंटीरियर और डिजाइनिंग का काम करना शुरू कर दिया। वह लगातार कड़ी मेहनत करते रहे, ताकि अपना व्यवसाय शुरू करने का सपना पूरा कर सकें।
महज पचास रुपये से शुरुआत
1970 के दशक की शुरुआत में मेनन ने लकड़ी के फर्नीचर बनाने वाली एक छोटी-सी कंपनी शुरू की। व्यापार के सिलसिले में एक बार कोचीन के एक होटल में उनकी मुलाकात ओमान सल्तनत की सेना में कैप्टन सुलेमान अल अदावी से हुई। अदावी नाव खरीदने के लिए केरल आए हुए थे। वह फर्नीचर बनाने वाले युवा मेनन के काम से काफी प्रभावित हुए और उन्हें ओमान आकार व्यापार करने का सुझाव दिया।
अदावी की सलाह पर मेनन ने ओमान जाने का साहसिक और चुनौतीपूर्ण फैसला लिया। जेब में महज पचास रुपये लेकर वह ओमान चले गए। वहां पहुंचकर कई चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने 3.5 लाख रुपये का लोन लिया और एक इंटीरियर डेकोरेशन कंपनी शुरू की।
गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा
पीएनसी मेनन पैसों के अभाव में खुद तो नहीं पढ़ सके, लेकिन शिक्षा का महत्व उन्हें पता था। उनका सपना है कि उनके गांव और आसपास के इलाके का कोई भी बच्चा वित्तीय बाधा के चलते पढ़ाई से वंचित न हो। इसीलिए उन्होंने अपने गांव में बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं वाला स्कूल, सुपरस्पेशलिटी अस्पताल और बुजुर्गों के लिए पांच सितारा वृद्धाश्रम बनवाया है। एक ही गांव में ये तीनों सुविधाएं और गरीबों के लिए मुफ्त में उपलब्ध होना एक अनोखी बात है।
पत्नी के नाम पर कंपनी
मेनन 1995 में भारत लौट आए और बंगलूरू में सोभा डेवलपर्स की शुरुआत की। कंपनी का नाम उन्होंने अपनी पत्नी 'सोभा' के नाम पर रखा है। आज कंपनी की कुल नेटवर्थ लगभग 23 हजार करोड़ रुपये है और यह देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में शुमार है। औपचारिक डिग्री और पेशेवर ज्ञान की कमी के बावजूद उनकी मेहनत के दम पर कंपनी दिन-ब-दिन तरक्की करती गई।
युवाओं को सीख
- जीवन में कई बार असफलताओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि निराशा को ही अटल सत्य समझ लिया जाए।
- जटिल परिस्थितियों में मुस्कुराने वाले इन्सान को दुनिया का कोई भी दुःख हरा नहीं सकता।
- असंभव से दिखने वाले हर कार्य को परिश्रम और दृढ संकल्प के साथ सरलता से किया जा सकता है।
- समय बड़ा बलवान होता है, हमें इसका दुरूपयोग करने से बचना चाहिए।
- परिणामों के भय से परिश्रम न करने वाले लोग, जीवन में कभी सफल नहीं होते हैं।