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Himachal Election: तीन चुनाव से वोट प्रतिशत में हो रहा इजाफा, इस बार मतदान बढ़ा तो किस पर क्या होगा असर?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Fri, 11 Nov 2022 03:21 PM IST
सार
आजादी के बाद लंबे समय तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही। 1977 में पहली बार हिमाचल में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। तब जनता पार्टी के शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे। 1990 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और शांता कुमार ही मुख्यमंत्री बने। 1990 से ही हर बार राज्य में सत्ता बदल जाती है और एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की जीत होती रही है।
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हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
शनिवार 12 नवंबर को हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों पर मतदान होने हैं। आमतौर पर दो पार्टियों के बीच ही यहां लड़ाई होती है, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने भी एंट्री की है। हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि मुख्य लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहेगी।
आजादी के बाद लंबे समय तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही। 1977 में पहली बार हिमाचल में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। तब जनता पार्टी के शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे। 1990 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और शांता कुमार ही मुख्यमंत्री बने। 1990 से ही हर बार राज्य में सत्ता बदल जाती है और एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की जीत होती रही है।
पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ये काफी रोचक हैं। 2007, 2012 और फिर 2017 में हुए चुनाव में हर बार मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ है। आइए जानते हैं कि इन चुनावों में क्या हुआ? कब कितने वोट प्रतिशत का इजाफा हुआ? इस बार वोट प्रतिशत में इजाफा होने पर किस पार्टी पर क्या असर हो सकता है?
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आजादी के बाद लंबे समय तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही। 1977 में पहली बार हिमाचल में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। तब जनता पार्टी के शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे। 1990 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और शांता कुमार ही मुख्यमंत्री बने। 1990 से ही हर बार राज्य में सत्ता बदल जाती है और एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की जीत होती रही है।
पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ये काफी रोचक हैं। 2007, 2012 और फिर 2017 में हुए चुनाव में हर बार मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ है। आइए जानते हैं कि इन चुनावों में क्या हुआ? कब कितने वोट प्रतिशत का इजाफा हुआ? इस बार वोट प्रतिशत में इजाफा होने पर किस पार्टी पर क्या असर हो सकता है?
पहले जानिए पिछले तीन चुनावों के आंकड़े
2007 में हिमचाल प्रदेश में 71.6% मतदान हुआ था। 2012 में इसमें एक फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई और 72.7% प्रतिशत मतदान हो गया। 2017 में भी करीब डेढ़ फीसदी वोट प्रतिशत बढ़कर 74.2% तक पहुंच गया।
2007 में हिमचाल प्रदेश में 71.6% मतदान हुआ था। 2012 में इसमें एक फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई और 72.7% प्रतिशत मतदान हो गया। 2017 में भी करीब डेढ़ फीसदी वोट प्रतिशत बढ़कर 74.2% तक पहुंच गया।
वोटिंग प्रतिशत बढ़ने का किस पार्टी पर क्या असर पड़ा?
2003 चुनाव में हिमाचल के अंदर कुल 74.5% फीसदी वोट पड़े थे। तब कांग्रेस का वोट शेयर 41 प्रतिशत था, जबकि भाजपा का 35.4 फीसदी। कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। 2007 में इसमें 2.9 फीसदी की गिरावट हुई। तब भाजपा का वोट शेयर 35 प्रतिशत से बढ़कर 43.8 फीसदी तक पहुंच गया, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 41% से घटकर 38.9% पर आ गया। कांग्रेस को 2.1 प्रतिशत वोट शेयर का नुकसान हुआ और भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई थी।
अब बात 2012 चुनाव की करते हैं। तब कुल 72.7% प्रतिशत लोगों ने वोट किया था। 2007 के मुकाबले इसमें 1.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। तब सत्ताधारी भाजपा के वोट शेयर में 5.3 फीसदी की कमी आई थी, वहीं कांग्रेस को 3.9 प्रतिशत वोट शेयर का फायदा मिला। भाजपा का ओवरऑल वोटिंग शेयर 38.5 प्रतिशत था और कांग्रेस का 42.8 प्रतिशत।
2017 में भी कुछ इसी तरह का ट्रेंड देखने को मिला। कुल मतदान में करीब डेढ़ फीसदी की बढ़ोतरी हुई। कुल 74.2% प्रतिशत लोगों ने वोट किया। इनमें से 48.8 प्रतिशत भाजपा और 41.7% प्रतिशत कांग्रेस को वोट मिले थे। अब 2012 के आंकड़ों की तुलना 2017 से करें तो इसमें कांग्रेस के वोट शेयर में महज एक प्रतिशत का नुकसान हुआ था, लेकिन भाजपा ने अपने वोटिंग शेयर में 10 फीसदी से ज्यादा का इजाफा करके सत्ता में वापसी की।
2003 चुनाव में हिमाचल के अंदर कुल 74.5% फीसदी वोट पड़े थे। तब कांग्रेस का वोट शेयर 41 प्रतिशत था, जबकि भाजपा का 35.4 फीसदी। कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। 2007 में इसमें 2.9 फीसदी की गिरावट हुई। तब भाजपा का वोट शेयर 35 प्रतिशत से बढ़कर 43.8 फीसदी तक पहुंच गया, जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 41% से घटकर 38.9% पर आ गया। कांग्रेस को 2.1 प्रतिशत वोट शेयर का नुकसान हुआ और भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई थी।
अब बात 2012 चुनाव की करते हैं। तब कुल 72.7% प्रतिशत लोगों ने वोट किया था। 2007 के मुकाबले इसमें 1.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। तब सत्ताधारी भाजपा के वोट शेयर में 5.3 फीसदी की कमी आई थी, वहीं कांग्रेस को 3.9 प्रतिशत वोट शेयर का फायदा मिला। भाजपा का ओवरऑल वोटिंग शेयर 38.5 प्रतिशत था और कांग्रेस का 42.8 प्रतिशत।
2017 में भी कुछ इसी तरह का ट्रेंड देखने को मिला। कुल मतदान में करीब डेढ़ फीसदी की बढ़ोतरी हुई। कुल 74.2% प्रतिशत लोगों ने वोट किया। इनमें से 48.8 प्रतिशत भाजपा और 41.7% प्रतिशत कांग्रेस को वोट मिले थे। अब 2012 के आंकड़ों की तुलना 2017 से करें तो इसमें कांग्रेस के वोट शेयर में महज एक प्रतिशत का नुकसान हुआ था, लेकिन भाजपा ने अपने वोटिंग शेयर में 10 फीसदी से ज्यादा का इजाफा करके सत्ता में वापसी की।
हर बार बढ़ता वोट शेयर क्या संकेत देता है?
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, 'हिमाचल प्रदेश में लंबे समय से केवल भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई रही है। यहां की जनता पांच साल कांग्रेस तो पांच साल भाजपा को मौका देती रही है। विपक्षी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आती है, तो सत्ताधारी पार्टी को काफी सीटों का नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में वोटिंग प्रतिशत घटने और बढ़ने का कोई सटीक अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि, 2017 में सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में 10 फीसदी का अंतर था। इसकी भरपाई करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी।'
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, 'हिमाचल प्रदेश में लंबे समय से केवल भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई रही है। यहां की जनता पांच साल कांग्रेस तो पांच साल भाजपा को मौका देती रही है। विपक्षी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आती है, तो सत्ताधारी पार्टी को काफी सीटों का नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में वोटिंग प्रतिशत घटने और बढ़ने का कोई सटीक अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि, 2017 में सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में 10 फीसदी का अंतर था। इसकी भरपाई करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी।'