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Hindi News ›   Education ›   Hindi Journalism Day: Celebrated to Mark 197 Years of Hindi Journalism and First Hindi Newspaper Udant Martand

30 मई को 'हिंदी पत्रकारिता दिवस' मनाने की वजह जानते हैं क्या आप

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: अनिल पांडेय Updated Tue, 30 May 2023 01:46 PM IST
सार

  • यह साप्ताहिक पत्र पुस्तकाकार (12x8) छपता था और हर मंगलवार को निकलता था।
  • इसके कुल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि डेढ़ साल बाद दिसंबर, 1827 ई. को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।
  • कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परंतु चेष्टा करने पर भी "उदंत मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी।
  • इस पत्र में ब्रज और खड़ी बोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक "मध्यदेशीय भाषा" कहते थे।

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Hindi Journalism Day: Celebrated to Mark 197 Years of Hindi Journalism and First Hindi Newspaper Udant Martand
हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुरूआत उदन्त मार्तण्ड के प्रथम प्रकाशन से हुई - फोटो : File
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विस्तार
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हिंदी भाषा में 'उदन्त मार्तण्ड' के नाम से पहला समाचार पत्र 30 मई, 1826 में निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद थे। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता की जगत में विशेष सम्मान है। 

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जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे और कानपुर के रहने वाले थे। लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। परतंत्र भारत में हिंदुस्तानियों के हक की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। इसी के लिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अखबार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था।
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परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे। 

हालांकि 'उदन्त मार्तण्ड' एक साहसिक प्रयोग था। इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छपी। हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। दूसरी बात की हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें बहुत ज्यादा होने की वजह से इसे हिंदी भाषी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था।

पंडित जुगल किशोर ने सरकार ने बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें जिससे हिंदी भाषी प्रदेशों में पाठकों तक समाचार पत्र भेजा जा सके, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। अलबत्ता, किसी भी सरकारी विभाग ने 'उदन्त मार्तण्ड' की एक भी प्रति खरीदने पर भी रजामंदी नहीं दी।

पैसों की तंगी की वजह से 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार 4 दिसम्बर, 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। आज का दौर बिलकुल बदल चुका है। पत्रकारिता में बहुत ज्यादा आर्थिक निवेश हुआ है और इसे उद्योग का दर्जा हासिल हो चुका है। हिंदी के पाठकों की संख्या बढ़ी है और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है।

शाब्दिक अर्थ
उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन मूलतः कानपुर निवासी पं. जुगल किशोर शुक्ल ने किया था। यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ‘उदन्त मार्तण्ड‘ का प्रकाशन किया गया था।

उदन्त मार्तण्ड के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए जुगलकिशोर शुक्ल ने लिखा था जो यथावत प्रस्तुत है-
'यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिंदुस्तानियों के हेत जो, आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेज़ी ओ पारसी ओ बंगाली में जो समाचार का कागज छपता है उसका उन बोलियों को जान्ने ओ समझने वालों को ही होता है। और सब लोग पराए सुख सुखी होते हैं। जैसे पराए धन धनी होना और अपनी रहते परायी आंख देखना वैसे ही जिस गुण में जिसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है और हिंदुस्तानियों में बहुतेरे ऐसे हैं।' 
 

हिंदी के पहले समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड ने समाज के विरोधाभासों पर तीखे कटाक्ष किए थे। जिसका उदाहरण उदन्त मार्तण्ड में प्रकाशित यह गहरा व्यंग्य है-
'एक यशी वकील अदालत का काम करते-करते बुड्ढा होकर अपने दामाद को वह सौंप के आप सुचित हुआ। दामाद कई दिन वह काम करके एक दिन आया ओ प्रसन्न होकर बोला हे महाराज आपने जो फलाने का पुराना ओ संगीन मोकद्दमा हमें सौंपा था सो आज फैसला हुआ यह सुनकर वकील पछता करके बोला कि तुमने सत्यानाश किया। उस मोकद्दमे से हमारे बाप बड़े थे तिस पीछे हमारे बाप मरती समय हमें हाथ उठा के दे गए ओ हमने भी उसको बना रखा ओ अब तक भली-भांति अपना दिन काटा ओ वही मोकद्दमा तुमको सौंप करके समझा था कि तुम भी अपने बेटे पाते तक पालोगे पर तुम थोड़े से दिनों में उसको खो बैठे।'
 

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