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Plastic in food: चीनी-नमक में भी प्लास्टिक से हमारी जान को कितना खतरा? अध्ययन से जारी होंगी नई गाइडलाइंस

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Sun, 18 Aug 2024 05:46 PM IST
सार
इंसानी रक्त-मज्जा, श्वसन तंत्र में प्लास्टिक पहुंचने के दावों की जांच करने के लिए एफएसएसएआई ने देश की तीन प्रतिष्ठित लैब्स को अपने साथ शामिल किया है। अध्ययन में पाए गए निष्कर्षों के आधार पर खाद्य वस्तुओं की पैकेजिंग और इनके परिवहन के बारे में सरकार की ओर से नए दिशा-निर्देश भी जारी किए जा सकते हैं।
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How much danger is there to our lives from plastic even in sugar and salt New guidelines will be issued
खाने में प्लास्टिक की होगी जांच - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में यह सनसनीखेज दावा किया गया था कि चीनी और नमक जैसी हमारी दैनिक उपभोग की चीजों के माध्यम से प्लास्टिक के बेहद सूक्ष्म कण हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं। प्लास्टिक के इन बेहद सूक्ष्म कणों के कारण इंसानों में कैंसर जैसी घातक बीमारी के साथ साथ कई अन्य गंभीर बीमारियों के होने की आशंका भी जताई गई थी। अब खाद्य वस्तुओं पर आवश्यक नियम बनाने वाली संस्था एफएसएसएआई (fssai) इन दावों की गंभीरता से जांच करेगी। इंसानी रक्त-मज्जा, श्वसन तंत्र में प्लास्टिक पहुंचने के दावों की जांच करने के लिए एफएसएसएआई ने देश की तीन प्रतिष्ठित लैब्स को इस अध्ययन के लिए अपने साथ शामिल किया है। अध्ययन में पाए गए निष्कर्षों के आधार पर खाद्य वस्तुओं की पैकेजिंग और इनके परिवहन के बारे में सरकार की ओर से नए दिशा-निर्देश भी जारी किए जा सकते हैं। 



दरअसल, द फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (FAO) ने अपनी उस रिपोर्ट में यह दावा किया था कि भोज्य पदार्थों के उत्पादन से लेकर उपभोग तक की प्रक्रिया में खाद्य वस्तुएं कई बार प्लास्टिक में पैक की जाती हैं। आशंका जताई गई थी कि विभिन्न कंपनियों के द्वारा तैयार भोजन को लोगों तक पहुंचाने के दौरान भोजन की पैकेजिंग से लेकर पीने के पानी तक की पैकेजिंग प्लास्टिक बोतलों में होने के कारण प्लास्टिक के बेहद सूक्ष्म कण लोगों के पेट में पहुंच रहे हैं। क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों की आशंका है कि यह प्लास्टिक अंश लोगों की आंत, रक्त, अस्थिमज्जा जैसे अंगों तक पहुंच चुके हैं। लोगों में अचानक कैंसर जैसी बीमारियों के बढ़ने के पीछे भी इसको एक प्रमुख कारण के तौर पर देखा जा रहा है। 


द फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन ने अपनी रिपोर्ट में माइक्रोप्लास्टिक के लोगों के शरीर में पहुंचने की आशंका को केवल भारत तक ही सीमित नहीं रखा था। उसका अनुमान है कि यह संभावना वैश्विक स्तर पर देखी जा सकती है। हालांकि, लोगों के शरीर में माइक्रोप्लास्टिक पहुंचने और इसके संभावित असर को लेकर कितना गंभीर असर पड़ता है, यह जानने के लिए द फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ने और अधिक अध्ययन किये जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया था। 

एफएसएसएआई ने भी इस विषय को लेकर काफी संवेदनशीलता दिखाई थी। गत मार्च में ही एक स्पेशल योजना के अंतर्गत एफएसएसएआई ने खाद्य वस्तुओं में प्लास्टिक होने की संभावना को लेकर एक अध्ययन किया था। अब नवीन जानकारियों के सामने आने के बाद एफएसएसएआई ने नया एक्शन प्लान तैयार किया है। इसके अंतर्गत अब विशेष टीमों के द्वारा देश के अलग-अलग हिस्सों से सैंपल लेकर इसकी जांच करेंगी। इसके अध्ययन से जो भी निष्कर्ष निकलता है, उसके आधार पर एजेंसी खाद्य वस्तुओं के संदर्भ में कुछ नए दिशा निर्देश भी जारी कर सकती है। 

यहां सबसे अधिक खतरा
आज की जीवनशैली में बहुत सारे लोग पैक्ड फूड पर निर्भर करने लगे हैं। फ़ूड डिलीवरी कम्पनियों के माध्यम से तैयार भोजन प्राप्त करना लोगों की सामान्य दिनचर्या में शामिल होता जा रहा है। लेकिन यही वह सबसे प्रमुख जगह मानी जाती है जहां खाद्य पदार्थ प्लास्टिक के संपर्क में आते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि गर्म खाने के सीधे प्लास्टिक से संपर्क में आने पर सूक्ष्म प्लास्टिक कण सीधे गर्म खाने में शामिल हो जाते हैं। इसी प्रकार दूध जैसी बेहद आवश्यक सामग्री भी प्लास्टिक की पैकिंग में ही लोगों तक पहुंचती है। ऐसे में इस दौरान भी प्लास्टिक कण खाद्य पदार्थों में शामिल हो सकते हैं। चाय, कॉफी या अन्य गर्म-शीतल पेय लेने के दौरान भी माइक्रो प्लास्टिक लोगों के शरीर में पहुंच सकते हैं, ऐसी आशंका जताई जाती रही है। 

क्या कर सकते हैं?
डॉ. कौशलकांत मिश्रा ने अमर उजाला से कहा कि विभिन्न खाद्य वस्तुएं उत्पादन से लेकर उपभोग के बीच कई स्तरों पर प्लास्टिक के संपर्क में आती हैं। इस दौरान प्लास्टिक के बेहद सूक्ष्म कण खाद्य वस्तुओं में मिल सकते हैं, इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। कई बार इस तरह के समाचार भी मिलते हैं कि ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में कुछ कंपनियों के द्वारा खाद्य वस्तुओं में कृत्रिम रूप से प्लास्टिक अंश शामिल किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि मानव शरीर में प्लास्टिक पहुंचने से कैंसर जैसी प्राण घातक बीमारी के साथ-साथ कई अन्य बीमारियां भी हो सकती  हैं। इसलिए यह किसी को जहर देने के समान है, इसलिए इसके विरुद्ध कड़े कानून लागू कर लोगों को प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से बचाने की कोशिश करनी चाहिए। 

डॉ. कौशलकांत मिश्रा ने कहा कि खाद्य वस्तुओं में प्लास्टिक के शामिल होने के असर से लोगों को बचाने के लिए जो काम सबसे पहले किया जा सकता है, वह यह है कि खाद्य वस्तुओं को प्लास्टिक के बोरे में पैक करने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। इसकी जगह जूट के बने बोरे या बैग इस्तेमाल करने से इसका किसानों को भी लाभ मिलेगा और लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा। उन्होंने कहा कि इस विषय पर ज्यादा विस्तृत और गहरा अध्ययन कर सरकार को इसके प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए।

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