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चीन की चुनौती को लेकर चौकन्ना है भारत, समस्या बढ़ने के आसार

शशिधर पाठक/ नई दिल्ली Updated Mon, 30 Oct 2017 04:29 PM IST
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India is cautious by chinese president Xi Jinping and after doklam issue
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भारत और चीन के बीच दरक रहे विश्वास के रिश्ते ने नई दिल्ली के कान खड़े कर दिए हैं। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार आने वाले समय में चीन की तरफ से चुनौती आने की पूरी संभावना है और नई दिल्ली इसे लेकर लगातार सतर्क है। इसी क्रम में भारत और भूटान के बीच विश्वास को मजबूत आधार देने के लिए विदेश सचिव जयशंकर हाल में भूटान गए थे। माना यह जा रहा है कि चीन अरुणाचल, डोकलाम या लद्दाख क्षेत्र में कहीं से भी भारत पर सीमा विवाद को लेकर दबाव बढ़ा सकता है।
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डोकलाम विवाद को लेकर कूटनीतिक गलियारे के जानकारों का मानना है कि इस पर एक तात्कालिक सहमति बनी है। 28 अगस्त को बनी इस सहमति का चीन, भारत और भूटान पालन कर रहे हैं। इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है, लेकिन यह एक अस्थायी समाधान है। 
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सूत्र का कहना है कि चीन और भारत दोनों ही देशों की तरफ से डोकलाम पर बने गतिरोध को लेकर एक ठोस समाधान का लगातार प्रयास जारी है। इस बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार केवल इतना कहते हैं कि दोनों देशों के बीच में 28 अगस्त 2017 के बाद की यथास्थिति लगातार बनी हुई है।

अखर रहा है डोकलाम
भूटान, चीन और भारत के तिराहे पर स्थित डोकलाम का क्षेत्र भूटान का हिस्सा है। चीन की सीमा इससे सटी है और चीन इस क्षेत्र को अपना बताता है। चीन चाहता है कि भूटान इस क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ दे। यहां तक कि चीन ने इसके एवज में दक्षिणी भूटान की तरफ तुलना में अपने एक बड़े भूभाग को देने की पेशकश भी की है। वहीं, यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। भारत डोकलाम और चुम्बी वैली के महत्व को समझता है। भूटान ने भी अपने क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी एक समझौते के तहत भारत को दे रखी है।

दूसरी तरफ विस्तारवादी चीन डोकलाम में सड़क और आधारभूत संरचना को लेकर काफी संवेदनशील है। इसी इरादे से उसने जून 2017 में डोकलाम क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू किया था। भारतीय सैनिकों ने इसे भूटान के साथ हुए समझौते का हवाला देकर रोक दिया था, इसके बाद चीन ने युद्ध की धमकी तक दी थी। बाद में जी-20 और ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन के कारण चीन पर दबाव बढ़ गया था और उसने निर्माण कार्य रोकने तथा अपनी सेना को कुछ पीछे ले जाने का निर्णय ले लिया था। माना जा रहा है कि चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग को दूसरा कार्यकाल मिलने के बाद अब चीन इस तरफ निर्णायक रुख का दबाव बढ़ा सकता है।

ये रास्ते हैं चीन के पास

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डोकलाम विवाद
चीन की पहली कोशिश भूटान के साथ भारत की दूरी बढ़ाने की होगी। इसके साथ-साथ वह भूटान को अपने पक्ष में करने के लिए पहल कर सकता है। कूटनीतिक जानकारों के अनुसार पेइचिंग ने इस तरह की पहल शुरू भी कर दी है। इसके अलावा वह डोकलाम में अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश कर सकता है। 

इस क्रम में दूसरी बार राष्ट्रपति बनते ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का सेना को किया गया आह्वान एक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने संदेश में सेना से युद्ध के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है। हालांकि शी जिनपिंग के  इस आह्वान को दक्षिण चीन सागर में बढ़ रहे विवाद से जोडकर देखा जा रहा है, लेकिन भारत में उनके संदेश की तपिश महसूस की जा रही है।

विरोधियों को ऐसे घेरता है चीन
पिछले कुछ दशक से चीन अपने विरोधियों से सीधे नहीं टकरा रहा है। उसकी रणनीति हमेशा चारों तरफ से घेरकर और मित्र के जरिए उसके विरोधी को परेशान करने की रही है। कूटनीतिक गलियारे में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के प्रमुख किम जोंग उन के बीच जारी वाक् युद्ध में भी कहीं न कहीं चीन की भूमिका बताई जा रही है। यहां तक कि उत्तर कोरिया के पास घातक हथियारों की मौजूदगी को चीन के साथ मिले गुप्त सहयोग से भी जोड़ा जाता है। चीन ने इसी तरह का व्यवहार भारत के साथ किया है। उसने पाकिस्तान को हथियार, साजो-सामान तथा सामरिक सहयोग दिया है। 

पाकिस्तान से संचालित आतंकी संगठनों के सरगना को बचाने में भी वह पाकिस्तान का पक्ष लेता है। भारत को संदेश देने के लिए चीन न केवल सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का विरोध करता है, बल्कि एनएसजी में भी उसका रवैया विरोधभरा है। वह पाकिस्तान के साथ परमाणु समझौते की वकालत करता है। पाकिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य और उसे रूस के करीब ले जाने की योजना पर काम कर रहा है। इसके अलावा चीन की कोशिश भारत के चारों तरफ अपनी पहुंच बढ़ाने की भी है। दक्षिण चीन सागर विवाद, रिंग ऑफ पर्ल की योजना, वन बेल्ट वन रोड आदि को चीन की इसी मंशा से जोडकर देखा जा रहा है।

क्या है भारत की रणनीति

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भारत के पास चीन से टकराने का विकल्प बिलकुल अंतिम है, इसलिए नई दिल्ली चीन के साथ मधुर, व्यवहारकुशल और सामंजस्यपूर्ण रिश्ते की पक्षधर है। अभी तक भारत और चीन के बीच में रूस भी संतुलन बनाने में मदद करता आ रहा है।

चीन की चुनौतियों को केंद्र में रखकर भारत पड़ोसी और हिंद महासागरीय देशों के साथ सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, द्विपक्षीय सहयोग के रिश्ते पर जोर दे रहा है। नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव, सिंगापुर, फिलीपींस, वियतनाम समेत अन्य से सहयोग को बढ़ावा दे रहा है। सैन्य सहयोग, सैन्य कूटनीति, सैन्य अभ्यास और रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।

चतुर्पक्षीय और त्रिपक्षीय संबंधों पर जोर
भारत ने हिंद महासागरीय क्षेत्र में स्थिति को मजबूत करने के लिए सैन्य अभ्यासों को बढ़ावा दिया है। अमेरिका, जापान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया के साथ नौसैनिक अभ्यास को इसी नजरिए से देखा जाता है। इसी कड़ी में भारत जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्पक्षीय वार्ता की मेज पर बैठ सकता है। इसकी तैयारियां चल रही हैं और जल्द ही कोई तारीख तय होने की संभावना है। 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार के अनुसार चतुर्पक्षीय बैठक के माध्यम से भारत अपने एजेंडे को और मजबूत आधार देना चाहता है। दरअसल, इस चतुर्पक्षीय वार्ता का मुख्य उद्देश्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्षेत्रीय, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के साथ-साथ सामुद्रिक क्षेत्र में स्वतंत्र तथा भयरहित आवाजाही, समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहयोग, पारदर्शिता तथा प्राकृतिक आपदा के समय एकजुटता के साथ सहयोग को बढ़ाना भी है।

इसी तरह से भारत तमाम स्तरों पर त्रिपक्षीय चर्चा कर रहा है। भारत-रूस-चीन, भारत-अफगानिस्तान-ईरान, भारत-अफगानिस्तान-अमेरिका, भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया, भारत-अमेरिका-जापान, भारत-श्रीलंका-मालदीव जैसे फोरम भी कूटनीति को मजबूत आधार देने के लिए तैयार हुए हैं।

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