Vice President Election: आज तय होगा देश का अगला उपराष्ट्रपति, कैसे होगी वोटिंग? जानें चुनाव प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव कैसे होगा? चुनाव प्रक्रिया में क्या-क्या होता है? यह चुनाव होता कैसे है? कौन उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकता है? उपराष्ट्रपति का चुनाव कितना अलग होता है? इसमें कैसे जीत और हार का फैसला होता है? आइये जानते हैं…


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विस्तार
गौरतलब है कि जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। इसके बाद से ही उपराष्ट्रपति पद खाली है। चुनाव आयोग की तरफ से सात अगस्त को उपराष्ट्रपति चुनाव कराने की अधिसूचना जारी कर दी गई थी।
उपराष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा के 233 निर्वाचित सांसद, राज्यसभा में मनोनीत 12 सांसद और लोकसभा के 543 सांसद वोट डाल सकते हैं। इस तरह के कुल 788 लोग वोट डाल सकते हैं। हालांकि, चुनाव आयोग जब उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीखों का एलान करता है, तब वह लोकसभा और राज्यसभा में सभी मौजूदा सदस्यों की गिनती करता है।
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संविधान के अनुच्छेद 66 में उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया का जिक्र है। यह चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति से किया जाता है, जो कि लोकसभा या विधानसभा चुनाव की वोटिंग प्रक्रिया से बिल्कुल अलग है। उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से होती है। आसान शब्दों में इस चुनाव के मतदाता को वरीयता के आधार पर वोट देना होता है। मसलन वह बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद के उम्मीदवार को एक, दूसरी पसंद को दो और इसी तरह से अन्य प्रत्याशियों के आगे अपनी प्राथमिकता नंबर के तौर पर लिखता है। ये पूरी प्रक्रिया गुप्त मतदान पद्धति से होती है। मतदाता को अपनी वरीयता सिर्फ रोमन अंक के रूप में लिखनी होती है। इसे लिखने के लिए भी चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए खास पेन का इस्तेमाल करना होता है।

अगर दूसरे राउंड के अंत में भी कोई उम्मीदवार न चुना जाए तो प्रक्रिया जारी रहती है। सबसे कम वोट पाने वाले कैंडिडेट को बाहर कर दिया जाता है। उसे पहली प्राथमिकता देने वाले बैलट पेपर्स और उसे दूसरी काउंटिंग के दौरान मिले बैलट पेपर्स की फिर से जांच की जाती है और देखा जाता है कि उनमें अगली प्राथमिकता किसे दी गई है।
राष्ट्रपति चुनाव से कितना अलग है उपराष्ट्रपति का चुनाव?
उपराष्ट्रपति चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्य वोट डालते हैं। इनमें राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी शामिल होते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचित सांसद और सभी राज्यों के विधायक मतदान करते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में मनोनीत सांसद वोट नहीं डाल सकते हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसा नहीं है। उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसे सदस्य भी वोट कर सकते हैं।
उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में क्यों नहीं होता ईवीएम का इस्तेमाल?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अहम भूमिका निभाती है। इसके जरिए करोड़ों मतदाताओं की पसंद को सुरक्षित व तेजी से गिनने का काम होता है, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में इसका इस्तेमाल नहीं होता। वजह है इस चुनाव की प्रक्रिया, जहां राज्यसभा और लोकसभा के सांसद वोट डालते हैं और वह भी अनुपातिक मूल्यांकन और वरीयता आधारित प्रणाली से। यही कारण है कि यहां मतपत्र का ही सहारा लिया जाता है। उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान के दौरान हर मतदाता को उम्मीदवारों के नाम के सामने 1, 2, 3, 4 जैसी प्राथमिकताएं अंकित करनी पड़ती हैं। वोटों की गिनती इन प्राथमिकताओं के आधार पर होती है, जो ईवीएम की मौजूदा तकनीक से संभव नहीं है।
उपराष्ट्रपति पद के चुनावों नें ईवीएम का प्रयोग न किए जाने के पीछे का कारण बताते हुए अधिकारियों का कहना है कि ईवीएम को चुनाव की इस प्रणाली के लिए नहीं बनाया गया है। ईवीएम मतों की वाहक हैं जबकि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत इसको वरीयता के आधार पर मतों की गिनती करनी होगी। इसके लिए ईवीएम में अलग तकनीक का इस्तेमाल करना होगा। यानी ऐसे चुनाव के लिए एक अलग तरह की ईवीएम की दरकार होगी।यही कारण है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।