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Jaishankar: 'वैश्विक शक्ति संतुलन में बड़ा बदलाव आया, अब कोई मर्जी नहीं थोप सकता' विदेश मंत्री जयशंकर का बयान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पुणे
Published by: नितिन गौतम
Updated Sat, 20 Dec 2025 01:25 PM IST
सार
एक कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अब दुनिया में ताकत के कई केंद्र हैं और अब दुनिया के देशों के बीच एक स्वभाविक मुकाबला है। जयशंकर ने ये भी कहा कि पश्चिमी देश अब प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे हैं और इसका असर वैश्विक तौर पर पड़ा है।
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विदेश मंत्री जयशंकर
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बयान में कहा है कि वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक संतुलन बड़े बदलाव से गुजर रहा है और अब ताकत के कई केंद्र उभरे हैं। पुणे में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के 22वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, 'कोई भी देश, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अब सभी मुद्दों पर अपनी मर्ज़ी थोप नहीं सकता।' उन्होंने कहा, 'इसका मतलब यह भी है कि अब दुनिया के देशों के बीच एक स्वाभाविक मुकाबला है और यह अपना संतुलन बनाता है। शक्ति और प्रभाव के कई केंद्र उभरे हैं।'
'वैश्विक शक्तियां अब सार्वभौमिक नहीं रहीं'
उन्होंने कहा कि शक्ति के विचार की कई परिभाषाएं हैं, जिनमें व्यापार, ऊर्जा, सेना, संसाधन, तकनीक और टैलेंट शामिल हैं। यह इसे एक खास तौर पर जटिल बनाते हैं। जयशंकर ने कहा, 'यह पहचानना भी जरूरी है कि वैश्विक शक्तियां अब सार्वभौमिक होने में सक्षम नहीं हैं। वैश्वीकरण ने हमारे सोचने और काम करने के तरीके को मौलिक रूप से बदल दिया है। जयशंकर ने कहा, 'हमारे जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को अगर तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है, तो उसे महत्वपूर्ण और आधुनिक मैन्युफैक्चरिंग विकसित करनी चाहिए।'
ये भी पढ़ें- Bangladesh: 'मोहम्मद यूनुस खुद दें दखल, भीड़तंत्र को हावी...', बांग्लादेश हिंसा पर शशि थरूर ने दी सलाह
'दुनिया एक बड़े बदलाव से गुजरी'
विदेश मंत्री ने कहा जब मैं आपके समय में था, तब दुनिया अलग थी और कम जटिल थी, लेकिन दुनिया एक बड़े बदलाव से गुजरी है और हमारे समाज और देश में भी बदलाव हुए हैं। अब नई पीढ़ी पर जिम्मेदारी है कि वे विकसित भारत की जिम्मेदारी लें।' बांग्लादेश के हालात पर बात करते हुए विदेश मंत्री ने कहा, 'बांग्लादेश बनने के कुछ साल बाद, हमारे सामने पाकिस्तान के साथ-साथ पश्चिम और चीन भी थे। इसके जवाब में, भारत ने सोवियत संघ के साथ एक मजबूत रणनीतिक रिश्ता बनाया। यह सुधारों से पहले का दौर था, जिसमें कम आर्थिक विकास, कमी, लाइसेंसिंग कंट्रोल और सीमित विदेशी व्यापार था। हमारे समाज और दुनिया के साथ हमारे संबंध आज से बहुत अलग थे।'
पश्चिमी देश ठहर गए हैं, जिससे वैश्विक बदलाव हुआ है
डॉ. जयशंकर ने कहा, 'आजादी के बाद, कई देश तरक्की और खुशहाली हासिल कर पाए और अब वे अपनी किस्मत खुद कंट्रोल करते हैं। सही फैसलों और समझदारी भरी नीतियों ने बहुत बड़ा फर्क डाला है। भारत के मामले में, हमने देखा है कि कैसे नेतृत्व और प्रशासन ने हमारी आर्थिक ग्रोथ और सामाजिक बदलाव के अलग-अलग दौर में उतार-चढ़ाव का सामना किया। इस दौर में जिस देश ने सबसे ज़्यादा फायदा उठाया है, वह चीन है। लेकिन हमने भी अच्छा किया है, खासकर सुधारों के बाद के दौर में, और पिछले दशक में तो और भी ज़्यादा। इसके उलट, पश्चिमी दुनिया का ज़्यादातर हिस्सा अब महसूस करता है कि वह ठहर गया है, यह भावना धीरे-धीरे राजनीतिक मायने लेने लगी है। पश्चिमी लोगों ने जानबूझकर ज़्यादा मुनाफा कमाने के लिए उत्पादन इकाइयों को दूसरी जगह शिफ्ट करने का फैसला किया। इसके चलते बीते वर्षों में उनकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कम हुई है, जिसे उनके लाइफस्टाइल ने और प्रभावित किया है, लेकिन इन सभी घटनाओं का कुल नतीजा यह है कि वैश्विक आर्थिक और उसके बाद राजनीतिक रैंकिंग में बहुत बड़ा बदलाव आया है।'
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'वैश्विक शक्तियां अब सार्वभौमिक नहीं रहीं'
उन्होंने कहा कि शक्ति के विचार की कई परिभाषाएं हैं, जिनमें व्यापार, ऊर्जा, सेना, संसाधन, तकनीक और टैलेंट शामिल हैं। यह इसे एक खास तौर पर जटिल बनाते हैं। जयशंकर ने कहा, 'यह पहचानना भी जरूरी है कि वैश्विक शक्तियां अब सार्वभौमिक होने में सक्षम नहीं हैं। वैश्वीकरण ने हमारे सोचने और काम करने के तरीके को मौलिक रूप से बदल दिया है। जयशंकर ने कहा, 'हमारे जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को अगर तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है, तो उसे महत्वपूर्ण और आधुनिक मैन्युफैक्चरिंग विकसित करनी चाहिए।'
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'दुनिया एक बड़े बदलाव से गुजरी'
विदेश मंत्री ने कहा जब मैं आपके समय में था, तब दुनिया अलग थी और कम जटिल थी, लेकिन दुनिया एक बड़े बदलाव से गुजरी है और हमारे समाज और देश में भी बदलाव हुए हैं। अब नई पीढ़ी पर जिम्मेदारी है कि वे विकसित भारत की जिम्मेदारी लें।' बांग्लादेश के हालात पर बात करते हुए विदेश मंत्री ने कहा, 'बांग्लादेश बनने के कुछ साल बाद, हमारे सामने पाकिस्तान के साथ-साथ पश्चिम और चीन भी थे। इसके जवाब में, भारत ने सोवियत संघ के साथ एक मजबूत रणनीतिक रिश्ता बनाया। यह सुधारों से पहले का दौर था, जिसमें कम आर्थिक विकास, कमी, लाइसेंसिंग कंट्रोल और सीमित विदेशी व्यापार था। हमारे समाज और दुनिया के साथ हमारे संबंध आज से बहुत अलग थे।'
पश्चिमी देश ठहर गए हैं, जिससे वैश्विक बदलाव हुआ है
डॉ. जयशंकर ने कहा, 'आजादी के बाद, कई देश तरक्की और खुशहाली हासिल कर पाए और अब वे अपनी किस्मत खुद कंट्रोल करते हैं। सही फैसलों और समझदारी भरी नीतियों ने बहुत बड़ा फर्क डाला है। भारत के मामले में, हमने देखा है कि कैसे नेतृत्व और प्रशासन ने हमारी आर्थिक ग्रोथ और सामाजिक बदलाव के अलग-अलग दौर में उतार-चढ़ाव का सामना किया। इस दौर में जिस देश ने सबसे ज़्यादा फायदा उठाया है, वह चीन है। लेकिन हमने भी अच्छा किया है, खासकर सुधारों के बाद के दौर में, और पिछले दशक में तो और भी ज़्यादा। इसके उलट, पश्चिमी दुनिया का ज़्यादातर हिस्सा अब महसूस करता है कि वह ठहर गया है, यह भावना धीरे-धीरे राजनीतिक मायने लेने लगी है। पश्चिमी लोगों ने जानबूझकर ज़्यादा मुनाफा कमाने के लिए उत्पादन इकाइयों को दूसरी जगह शिफ्ट करने का फैसला किया। इसके चलते बीते वर्षों में उनकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कम हुई है, जिसे उनके लाइफस्टाइल ने और प्रभावित किया है, लेकिन इन सभी घटनाओं का कुल नतीजा यह है कि वैश्विक आर्थिक और उसके बाद राजनीतिक रैंकिंग में बहुत बड़ा बदलाव आया है।'
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