जस्टिस स्वामीनाथन केस: महाभियोग की कोशिश पर 36 पूर्व जज भड़के, बोले- लोकतंत्र और न्यायपालिका खतरे में
Madras High Court: 36 पूर्व जजों ने एक बयान जारी कर मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन का समर्थन किया है। पूर्व जजों ने इस मामले में महाभियोग के प्रस्ताव पर गंभीर आपत्ति जाहिर की है।
विस्तार
मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जी. आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग लाने की विपक्षी कोशिश पर देश के 36 पूर्व न्यायाधीशों ने कड़ी आपत्ति जताई है। पूर्व जजों ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की जड़ों पर सीधा हमला बताते हुए संसद सदस्यों और आम जनता से इस कदम की खुलकर निंदा करने की अपील की है।
पूर्व न्यायाधीशों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि अगर इस तरह की कोशिशों को आगे बढ़ने दिया गया, तो इससे न्यायाधीशों को राजनीतिक और वैचारिक दबाव में काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
पूर्व जजों की सख्त चेतावनी
संयुक्त बयान में कहा गया कि यह कदम उन जजों को डराने की कोशिश है, जिनके फैसले किसी खास राजनीतिक या वैचारिक समूह की अपेक्षाओं से मेल नहीं खाते। पूर्व न्यायाधीशों ने कहा लोकतंत्र में फैसलों की परीक्षा अपील और कानूनी समीक्षा से होती है, न कि महाभियोग की धमकियों से। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायाधीश संविधान और अपनी शपथ के प्रति जवाबदेह होते हैं, न कि किसी राजनीतिक दल के दबाव के प्रति।
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पहले भी हो चुकी हैं ऐसी कोशिशें
बयान में यह भी कहा गया कि यह कोई अकेली घटना नहीं है। पूर्व जजों ने 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग की कोशिश और बाद में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, एस. ए. बोबडे और डी. वाई. चंद्रचूड़ के खिलाफ चलाए गए अभियानों का भी जिक्र किया। उन्होंने मौजूदा सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत के खिलाफ हो रहे हमलों को भी इसी खतरनाक प्रवृत्ति का हिस्सा बताया।
पूर्व न्यायाधीशों ने सांसदों, वकीलों, नागरिक समाज और आम नागरिकों से अपील की कि वे इस तरह की कोशिशों का एकजुट होकर विरोध करें, ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक लोकतंत्र सुरक्षित रह सके।
क्या है स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग लाने का मामला?
1 दिसंबर को जस्टिस स्वामीनाथन ने आदेश दिया था कि तमिलनाडु के अरुलमिघु सुब्रमणिया स्वामी मंदिर में दीपथून के दौरान दीप जलाना मंदिर की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इससे पास स्थित दरगाह या मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता। इस फैसले के बाद विवाद खड़ा हो गया। 9 दिसंबर को डीएमके के नेतृत्व में कुछ विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को नोटिस देकर जज को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की मांग की।
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