Karnataka Election: फिर किंगमेकर बन सकते हैं कुमार स्वामी! भाजपा-कांग्रेस के 28 नेता थाम चुके जेडीएस का हाथ
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विस्तार
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मतदान के लिए केवल एक सप्ताह का समय शेष बचा है। भाजपा-कांग्रेस के शीर्ष नेता चुनाव प्रचार में जुटे हैं और अपनी-अपनी सरकार बनने के दावे कर रहे हैं। लेकिन इसी चुनाव के बीच अहम तथ्य है कि भाजपा-कांग्रेस के कम से कम 28 नेता, जिसमें पूर्व विधायक और मंत्री शामिल हैं, अपने बड़े राजनीतिक दलों का साथ छोड़ कुमार स्वामी का हाथ थाम चुके हैं। क्या यह इस बात का इशारा हो सकता है कि कर्नाटक की जनता अपना दो दशकों से ज्यादा का इतिहास दुहराते हुए एक बार फिर त्रिशंकु विधानसभा के लिए मतदान करने जा रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह आशंका सच साबित हो सकती है और कुमार स्वामी एक बार फिर किंग मेकर बनकर उभर सकते हैं।
कर्नाटक के कुरबा समुदाय के प्रभावी नेता सीएम धनंजय ने अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस का साथ छोड़ जेडीएस का हाथ पकड़ लिया है। पूर्व एमएलसी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रघु आचार भी कुमारस्वामी कैंप का रुख कर चुके हैं। कांग्रेस ने उन्हें चित्रदुर्ग सीट से टिकट देने से इनकार कर दिया था। इसी तरह, भाजपा विधायक एमपी कुमारास्वामी ने भी अपनी पार्टी छोड़ कुमार स्वामी का हाथ थाम लिया है। पार्टी छोड़ते समय उन्होंने पार्टी के महासचिव सीटी रवि पर अपनी उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया था।
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कुमारस्वामी की तरह भाजपा एमएलसी अयनुर मंजूनाथ ने भी भाजपा का साथ छोड़ जेडीएस का साथ पकड़कर ही अपनी आगे की राजनीतिक यात्रा जारी रखने का निर्णय लिया है। अब वे शिवमोगा शहर से जेडीएस उम्मीदवार के तौर पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। भाजपा के लगभग एक दर्जन छोटे-बड़े ऐसे नेता हैं, जिन्होंने उसका साथ छोड़कर जेडीएस जैसे राज्य स्तरीय दल को अपनी पसंद बनाया है। महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि यह बदलाव ऐसे दौर में हुआ है, जब भाजपा यह दावा कर रही है कि उसके मोदी-शाह और योगी के करिश्मे के कारण कर्नाटक में उसकी सरकार की वापसी तय है।
ये कर्नाटक के वे कुछ प्रमुख नेता हैं, जिन्होंने भाजपा-कांग्रेस का साथ छोड़कर जेडीएस का दामन थामा है। इस श्रेणी में अब तक 28 से अधिक नेताओं के नाम शामिल हैं, जिन्होंने भाजपा-कांग्रेस जैसे बड़े राष्ट्रीय दलों की तुलना में कुमार स्वामी का साथ पकड़ना ज्यादा उचित समझा है। तो क्या कर्नाटक में पीएम मोदी का करिश्मा उतना सफल नहीं साबित हो रहा है, जितना कि दावा किया जा रहा है। चुनाव विशेषज्ञों के अनुसार, इसके लिए कर्नाटक की राजनीति बड़ा कारण है, जहां बड़े केंद्रीय नेताओं की तुलना में स्थानीय जातीय नेता अपने मतदाताओं पर ज्यादा मजबूत पकड़ रखते हैं। यह बात भाजपा-कांग्रेस पर समान रूप से लागू होती है।
जेडीएस बन सकती है किंगमेकर
राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार ने अमर उजाला से कहा कि जेडीएस इस विधानसभा चुनाव में भी एक किंगमेकर की भूमिका में उभरकर सामने आ सकती है। जेडीएस की वोक्कालिगा और कुरबा समुदायों के अपने पारंपरिक मतदाताओं पर पकड़ बरकरार है। पिछले चुनाव में भी 224 सीटों वाली विधानसभा में 37 सीटें जीतकर जेडीएस किंगमेकर बनकर उभरी थी। उसने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन बाद में उसके और कुछ कांग्रेस नेताओं के पाला बदलने से भाजपा कर्नाटक की सत्ता में आने में कामयाब हो गई।
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धीरेंद्र कुमार के मुताबिक, जेडीएस ने अपने मतदाताओं के बीच यह बात खूब प्रचारित करने की कोशिश की है कि पिछले चुनाव में जनता का साथ मिलने के बाद भी उनके साथ धोखा हुआ है। देवगौड़ा और कुमारस्वामी इसे अपने समुदाय के साथ धोखाधड़ी के तौर पर चर्चा में लाने में सफल हुए हैं। यही कारण है कि कुमारस्वामी के पक्ष में उनके मतदाताओं के बीच एक सहानुभूति की लहर चल रही है और जेडीएस एक बार फिर मजबूत मोर्चे पर दिख रही है।
अपने मतदाताओं पर मजबूत पकड़
जेडीएस ने 2018 के चुनाव में 18.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 37 सीटें जीती थीं। इसके पहले 2013 के चुनाव में 20.2 फीसदी वोट शेयर के साथ 40 सीटें जीती थीं। 2008 में जब उसे केवल 28 सीटों पर सफलता मिली थी, तब भी उसे 18.96 फीसदी वोट मिले थे और उस चुनाव में भी सत्ता की चाबी उसी के पास थी। इस चुनाव में यह आंकड़ा एक बार फिर इसी के आसपास रहे, तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होगा। यानी कुमार स्वामी एक बार फिर किंग मेकर बनकर उभर सकते हैं और कर्नाटक में जो भी दल सरकार बनाना चाहेगा, उसे कुमार स्वामी के मदद की दरकार रह सकती है।