खबरों के खिलाड़ी: बिहार में चेहरा घोषित होने के बाद भी जारी घमासान, विश्लेषकों ने बताया किस ओर जा रहा चुनाव
बिहार चुनाव में महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री चेहरे का एलान हो चुका है। इस एलान के वक्त मंच पर कांग्रेस का कोई बड़ा नेता क्यों नहीं आया? कांग्रेस ने अपनी पार्टी की ओर से उपमुख्यमंत्री का चेहरा क्यों नहीं घोषित किया? इस एलान के बाद चुनाव किस और जा रहा है? ऐसे ही सवालों पर इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई…
विस्तार
बिहार में चुनाव अपने चरम पर पहुंच चुका है। विपक्षी गठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। वहीं, मुकेश सहनी गठबंधन की ओर से उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे। इस एलान के साथ ही विपक्षी गठबंधन में खींचतान भी दिखाई दे रही है। वहीं, दूसरी ओर सत्ता पक्ष विपक्ष पर मुस्लिमों की अनदेखी का आरोप लगा रहा है। इन्ही सवालों पर इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, राकेश शुक्ल, अजय केडिया और अनुराग वर्मा मौजूद रहे।
रामकृपाल सिंह: कांग्रेस ने इस देश में करीब 70 साल तक राज किया है। मुझे वो कांग्रेस बिहार में कहीं दिख नहीं रही है। जब से ये गठबंधन बना है तब से अब तक कोई एक चुनाव ऐसा नहीं है जहां सभी दल मिलकर चुनाव लड़े हों। ये अस्तित्व का संकट है। मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया, डिप्टी सीएम का चेहरा भी घोषित कर दिया गया, लेकिन इसमें कांग्रेस कहीं नहीं है। जो पार्टी राज्यों में नहीं है वो 2029 में केंद्र में कैसे आ सकती है। मुकाबले की बात कहें तो लालू-तेजस्वी एक तरफ और मोदी और नीतीश दूसरी तरफ हैं। नतीजे क्या आएंगे ये इन्हीं चेहरों से तय होगा।
अजय केडिया: कांग्रेस एक अलग तरह की रणनीति बनाकर चल रही है। कांग्रेस यह समझ चुकी है कि जिन क्षेत्रों में उसके वोटबैंक पर पार्टियां खड़ी हुई हैं, जब तक वो खत्म नहीं होंगी तब तक वो सत्ता में नहीं आएगी। कांग्रेस की सोच ये है कि दिल्ली में जिस तरह केजरीवाल खत्म हुए, उसी तरह बिहार में तेजस्वी और उत्तर प्रदेश में अखिलेश खत्म हों तो वो वापस सत्ता में आ सकती है। मुकेश सहनी अब तेजस्वी के साथ नहीं है वो कांग्रेस के साथ हैं।
राकेश शुक्ल: कुछ लोगों का छाया राजनीति में अभिशप्त की तरह है। बिहार में लालू प्रसाद यादव का कार्यकाल भाजपा के लिए वरदान बना हुआ है। इसलिए जब भी चुनाव आता है तो भाजपा उनके कार्यकाल को लोगों को याद दिलाती है। जैसे ही लोगों को ये याद दिलाया जाता है तो लोगों के कान खड़े हो जाते हैं। प्रशांत किशोर को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वो कितनी सीट लाएंगे या कितना वोट पाएंगे ये नहीं कहा जा सकता है। ये जरूर कहा जा सकता है कि वो अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराएंगे।
अनुराग वर्मा: मैं अक्सर कहता हूं कि राहुल गांधी पार्ट टाइम राजनेता हैं। बिहार में भी यही देखने को मिला। राहुल आए वोट अधिकार यात्रा के साथ अपनी मौजूदगी दिखाई और अचानक से फिर गायब हो गए। राहुल गांधी को सबसे बड़ी परेशानी है कि 2029 के चुनाव में वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं या नहीं। इसके लिए वो सब कुछ छोड़ रहे हैं। इसीलिए लालू यादव ने बड़ी चतुराई से उन्हें बिहार के चुनाव से दूर कर दिया। वहीं, कांग्रेस को लग रहा है कि हार के जिम्मेदार राहुल नहीं ठहराए जाएं इसलिए तेजस्वी को चेहरा घोषित कर दिया।
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