Biennale Painting Row: ईसाई समूहों की आलोचना पर चित्रकार वट्टाकुझी ने दी सफाई, बोले- पेंटिंग नाटक पर आधारित
कोच्चि बिएनाले में प्रदर्शित एक पेंटिंग को लेकर चर्च और ईसाई समूहों ने तीखी आलोचना की। ऐसे में अब चित्रकार टॉम वट्टाकुझी ने साफाई देते हुए कहा कि पेंटिंग ‘IDAM’ प्रदर्शनी का हिस्सा है, नाटक पर आधारित है और इसका उद्देश्य श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।
विस्तार
केरल के कोच्चि बिएनाले में बीते दिनों आयोजित एक कार्यकर्म में प्रदर्शित एक पेंटिंग को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। कथित तौर पर इस पेंटिंग में यीशु मसीह के अंतिम भोज को गलत या अलग तरीके से दिखाया गया था, जिसको लेकर चर्च और ईसाई समूहों ने इस पेंटिंग की तीखी आलोचना की। ऐसे में बुधवार को इस पेंटिंग को लेकर हो रहे विरोध को देखते हुए प्रसिद्ध कलाकार टॉम वट्टाकुझी ने सफाई दी। उन्होंने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह पेंटिंग बिएनाले की संगठित प्रदर्शनी ‘IDAM’ का हिस्सा है और यह एक नाटक पर आधारित है।
एक टीवी चैनल से बातचीत के दौरान कलाकार वट्टाकुझी ने कहा कि इस कला कृति में किसी भी तरह से श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति कला को अपनी दृष्टि से देखता है। उनके लिए यीशु मसीह केवल लंबी दाढ़ी और बाल वाला एक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि वे हर उस इंसान में दिखाई देते हैं जो दुख और कठिनाइयां झेलता है।
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वट्टाकुझी ने पेंटिंग को लेकर दी सफाई
पेंटिंग को लेकर बढ़ते विवाद के बीच वट्टाकुझी का कहना था कि मेरा प्रेम और करुणा हर व्यक्ति में दिखाई देती है और वही मेरी पेंटिंग में भी दिखाई देती है। हालांकि दूसरी ओर ईसाई समूहों का कहना है कि यह पेंटिंग धार्मिक भावनाओं को आहत करती है। आलोचकों ने बताया कि यही कलाकृति कुछ साल पहले एक पत्रिका में भी प्रकाशित हुआ था और तब भी इसी तरह की आपत्तियां आई थीं।
सूत्रों के अनुसार, विरोध के बाद बिएनाले प्राधिकरण ने उस कला केंद्र को दो दिनों के लिए बंद कर दिया, जहां यह पेंटिंग प्रदर्शित की गई थी। वहीं सीरो-मालाबार चर्च और केरल लैटिन कैथोलिक एसोसिएशन (KLCA), कोच्चि डायोसिस कमिटी ने कहा कि बिएनाले को ऐसा मंच नहीं माना जाना चाहिए, जहां किसी भी चीज को कला के नाम पर बिना समुदायों की भावनाओं का ख्याल किए प्रदर्शित किया जाए।
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चर्च ने बताया धार्मिक विश्वासों का उल्लंघन
दूसरी ओर सीरो मालाबार चर्त ने भी कहा कि अंतिम भोज के इस चित्रण को मजाक या अपमानजनक तरीके से दिखाना धार्मिक विश्वासों के प्रति सम्मान का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी कहा कि कलात्मक स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नाम लेकर इसे सही नहीं ठहराया जा सकता। चर्च ने कहा कि इस घटना से ईसाई समुदाय को हुए गहरे आघात को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
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