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Maharashtra: क्या साथ आएंगे राज और उद्धव ठाकरे, क्यों और कैसे तेज हुई अटकलें, कब तक साफ हो सकती है स्थिति?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई Published by: शुभम कुमार Updated Mon, 21 Apr 2025 12:14 PM IST
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सार

महाराष्ट्र में ठाकरे बंधु के एक साथ आने की अटकलें तेज है। कारण है बीते कुछ रैलियों में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की ओर से अपने बयानों इन अटकलों को पुरजोर हवा देना। अब ऐसे में सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या सच में साथ आएंगे राज-उद्धव ठाकरे? अगर हां तो आखिर 19 साल बाद दोनों भाइयों को इस गठबंधन की जरूरत क्यों पड़ी?

Maharashtra: Will Raj and Uddhav Thackeray come together, why and how did the speculation intensify
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे - फोटो : अमर उजाला
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महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों एक नए और बड़े बदलाव की संभावना की हवा चल रही है। कारण है कि सियासी गर्माहट के बीच शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे एक साथ आने के संकेत दे रहे है। अब ऐसे में कई सारे सवाल खड़े हो रहें है कि आखिरकार 19 साल बाद ठाकरे बंधुओं को एकसाथ आने कि जरूरत क्यों पड़ गई। क्या महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन के रिकॉर्ड प्रदर्शन से ठाकरे बंधुओं को अपनी बनी बनाई विरासत खोने का डर सताने लगा है, या फिर आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनाव में दोनों भाई एकसाथ चुनाव लड़कर भाजपा को करारा जवाब देने की ताक में है।

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क्या साथ आएंगे उद्धव-राज?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) और मनसे का प्रदर्शन बेदह खराब रहा। फलस्वरूप महायुति गठबंधन की रिकॉर्ड तोड़जीत हुई, जिससे महाराष्ट्र में भाजपा ने अपना एक मजबूत पक्ष को दर्शाया। अब ऐसी स्थिति में ठाकरे बंधुओं के साथ आने का दो मुख्य कारण हो सकते है। पहला तो ये कि महाराष्ट्र में दिन-प्रतिदिन भाजपा लगातार रूप से मजबूत होती हुई जा रही है, जो कि एमवीए और ठाकरे परिवार के लिए सकारात्मक संकेत नहीं है। वहीं दूसरी ओर आगामी बीएमसी चुनावी रण में उद्धव गुट के शिवसेना के लिए अकेले ही भाजपा का विजयीरथ रोकना थोड़ा कठिन है। इस स्थिति में दोनों भाई साथ आकर चुनावी रण में भाजपा को रोकने का पूरी प्रयास कर सकते है। 

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राज ठाकरे, एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे - फोटो : अमर उजाला

कहां पड़ गई इस गठबंधन की जरूरत?
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे, जो कभी एक-दूसरे के बहुत करीबी थे, अब दो दशकों बाद फिर से एक साथ आने के संकेत दे रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि ऐसा क्या हुआ कि अब इन्हें एक-दूसरे की जरूरत महसूस हो रही है? आइए इस बात के गुंजाइश को विस्तार से समझते है। पहले तो ये बात साफ हो चुकी है कि राज ठाकरे की मनसे राजनीतिक रूप से कमजोर हो चुकी है। दूसरी बात ये है कि एकनाथ शिंदे का अलग होकर अलग शिवसेना बनाना उद्धव के लिए झटका हैं। तीसरी बात ये है कि बीते चुनावों में भाजपा और शिंदे की बढ़ती ताकत ठाकरे बंधुओं के लिए चिंता का विषय के रूप में सामने आई है। चौथी और सबसे मुख्य कारण आगामी बीएमसी चुनाव में भाजपा को मात देने की तैयारी है, जिसके लिए दोनों भाई अपनी आपसी दुश्मनी को खत्म करने के लिए तैयार हो सकते हैं।

कैसे साथ आ सकते हैं दोनों भाई?
महाराष्ट्र में भाजपा की मजबूत स्थिति और शिवसेना (यूबीटी) तथा मनसे की कमजोर स्थिति को देखते हुए, विपक्षी एकजुटता की जरूरत बन रही है। दोनों भाई मिलकर भाजपा के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन बना सकते हैं, जो उन्हें आगामी चुनावों में सत्ता वापसी में मदद कर सकता है। इसके अलावा, राकांपा और कांग्रेस जैसे पार्टियां भी इस गठबंधन में शामिल हो सकती हैं, जिससे वे विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बना सकें। 

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संजय राउत और राज ठाकरे - फोटो : पीटीआई
क्यों साथ आने की अटकलों को मिला जोर?
अब इस बात की अटकलों को जोर कैसे मिला, इस बात को समझते है। इसका मुख्य कारण है कि हाल ही में अलग-अलग कार्यक्रमों में बोलते हुए दोनों नेताओं ने कहा कि मराठी भाषा और संस्कृति को बचाना आपसी राजनीतिक लड़ाई से ज्यादा जरूरी है। राज ठाकरे ने साफ कहा कि उनके और उद्धव के बीच जो भी मतभेद हैं, वे मामूली हैं और राज्य के हित में उन्हें भुलाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर महाराष्ट्र चाहता है कि हम साथ आएं तो हम अहंकार को बीच में नहीं लाएंगे। उधर उद्धव ठाकरे ने पुनर्मिलन की संभावना पर कहा कि वह व्यक्तिगत विवाद भुलाने को तैयार हैं, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी  कि हम रोज पाला नहीं बदल सकते। जो महाराष्ट्र के खिलाफ काम करेगा, उसे मैं स्वीकार नहीं करूंगा

अब ऐसे में एक सवाल ये भी है कि राज और उद्धव ठाकरे के साथ आने की अटकलें राजनीतिक जरूरत और व्यक्तिगत मजबूरियों की वजह से तेज हो गई हैं। यह गठबंधन बीजेपी और शिंदे गुट के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा तैयार कर सकता है, और ठाकरे परिवार की राजनीतिक धरोहर को बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि अब देखना यह होगा कि ये अटकलें सच होती हैं या सिर्फ चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं।

कौन-कौन से चेहरे निभाएंगे अहम भूमिका?
ठाकरे बंधु के साथ आने की अटकलों के बीच एक सवाल ये भी खड़ा हो रहा है कि अगर दोनों भाई साथ आते हैं तो इस गठबंधन को जोड़ने कौन-कौन से नेताओं की अहम भूमिका होगी। इस बात को ऐसे समझते है कि राज और उद्धव ठाकरे के संभावित गठबंधन में प्रमुख नेतृत्व वाले चेहरे उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे, संजय राउत, आदित्य ठाकरे और राज के करीबी सहयोगी होंगे, जबकि कांग्रेस और राकांपा जैसे पार्टियों का समर्थन भी इसे और ताकतवर बना सकता है। यह गठबंधन दोनों पक्षों के लिए एक राजनीतिक मजबूरी बन सकता है, ताकि वे भाजपा और शिंदे गुट के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बना सकें।

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संघर्ष करती राज की मनसे
देखा जाए तो मनसे के निर्माण के शुरुआती दिनों को छोड़ दें तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) अब राजनीतिक रूप से संघर्ष कर रही है। पार्टी की चुनावी संभावनाएं गिर रही हैं, और 2019 और 2024 के चुनावों में इसे खास सफलता नहीं मिली। अगर मनसे और शिवसेना एक साथ आते हैं, तो यह राज ठाकरे को फिर से राजनीतिक ताकत दे सकता है।

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राज और उद्धव ठाकरे की मुलाकात - फोटो : X / @SumitBaneMNS

ठाकरे बंधुओं के शुरुआती दौर को समझिए
चलिए सबसे पहले उद्धव और राज ठाकरे के राजनीति में शुरूआती दौर पर प्रकाश डालते है। बात 1990 के दशक की शुरुआत की है, जब बाल ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना तेजी से उभर रही थी, तब दो युवा चेहरे उनके साथ हर कार्यक्रम में नजर आते थे राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे। राज जहां बोलने में तेज, जोशीले और कार्टून बनाने में माहिर थे, वहीं उद्धव शांत स्वभाव के थे और कैमरे के पीछे रहना पसंद करते थे। लोगों को लगता था कि राज ही बाल ठाकरे के असली राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे, लेकिन वक्त ने करवट ली और हालात ने दो चचेरे भाइयों के बीच राजनीतिक दूरी पैदा कर दी।

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सिनेमा हॉल केस और राज की छवि
राज के लिए 1996 का साल मुश्किलों से भरा रहा। जहां पुणे के एक सिनेमा हॉल में रमेश किनी नामक व्यक्ति की रहस्यमयी मौत हुई। उनकी पत्नी ने आरोप लगाया कि उनके पति की मौत में राज ठाकरे का हाथ था, क्योंकि आरोपी मकान मालिक शिवसेना से जुड़े थे।CBI ने बाद में राज ठाकरे को क्लीन चिट दे दी, लेकिन इस विवाद से उनकी छवि को नुकसान हुआ।

उद्धव को ताज मिलने से थी नाराजगी
इसके बाद 2003 में शिवसेना ने महाबलेश्वर सम्मेलन में उद्धव ठाकरे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। राज को मंच से यह घोषणा करनी पड़ी, लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें यह फैसला नागवार गुजरा। राज के समर्थकों ने आरोप लगाया कि उन्हें पार्टी में दरकिनार किया जा रहा है और टिकट बांटने से लेकर फैसलों तक उन्हें नजरअंदाज़ किया जा रहा है और आखिरकार ये राजनीतिक नाराजगी खुलकर जनता के सामने आई। जहां राज ठाकरे ने 27 नवंबर 2005 को शिवसेना छोड़ दी। भावुक भाषण में उन्होंने कहा मैंने सिर्फ़ सम्मान मांगा था, लेकिन बदले में अपमान मिला। इसके बाद शिवसेना और राज के बीच रिश्ते और खराब हो गए।

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