Gyan Bharatam Mission: पीएम मोदी ने मणि मारन की सराहना की, पांडुलिपियों के संरक्षण व डिजिटलीकरण पर दिया जोर
प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' में तमिलनाडु के मणि मारन द्वारा प्राचीन तमिल पांडुलिपियों को सहेजने के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने बताया कि मणि मारन ने युवाओं को ताड़पत्र पढ़ाने की कक्षाएं शुरू कीं, जिससे कई छात्र अब तमिल सुवडीयियाल में निपुण हो गए हैं। इसके साथ ही उन्होंने इस दौरान ज्ञान भारतम मिशन का भी जिक्र किया।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के ताजा एपिसोड में तमिलनाडु के तंजावुर के मणि मारन को याद किया। साथ ही उनके तमिल पांडुलिपियों को संरक्षित करने के कार्य की खुलकर सराहना की। इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की संस्कृति सिर्फ त्योहारों और परंपराओं तक सीमित नहीं, बल्कि हमारी पुरानी और वर्तमान ज्ञान परंपरा को सहेजना भी उतना ही जरूरी है।
उन्होंने बताया कि हजारों वर्षों से ज्ञान पांडुलिपियों के रूप में संरक्षित किया गया है, जिनमें विज्ञान, आयुर्वेद, संगीत, दर्शन और मानवता से जुड़ी अहम बातें दर्ज हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इन पांडुलिपियों को संभालना हम सभी की जिम्मेदारी है और हर युग में कुछ लोग इसे अपना जीवन-कार्य बनाते हैं। ऐसा ही एक प्रेरणादायक नाम है मणि मारन, जो तमिलनाडु के तंजावुर से हैं।
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पीएम मोदी ने की मणि मारन के कार्यों की सराहना
रेडियो शो के प्रसारन के दौरान पीएम मोदी ने मणि मारन के काम पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मणि मारन जी ने महसूस किया कि अगर आज की पीढ़ी तमिल पांडुलिपियों को पढ़ना नहीं सीखेगी, तो यह बहुमूल्य धरोहर खो जाएगी। इसी सोच के साथ उन्होंने शाम की कक्षाएं शुरू कीं, जहां छात्र, युवा, शोधकर्ता सभी आकर ताड़पत्र पांडुलिपियों को पढ़ना सीखने लगे। आज उनके प्रयासों से कई लोग तमिल सुवडीयियाल को पढ़ने और समझने में निपुण हो गए हैं। कुछ छात्रों ने तो इन पांडुलिपियों पर आधारित पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली पर शोध भी शुरू कर दिया है।
ज्ञान भारतम मिशन का किया जिक्र
पीएम मोदी ने यह भी बताया कि सरकार ने इस साल के बजट में एक ऐतिहासिक पहल 'ज्ञान भारतम मिशन' की घोषणा की है। इसके तहत प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा और एक नेशनल डिजिटल रिपॉजिटरी बनाई जाएगी, जिससे दुनिया भर के छात्र और शोधकर्ता भारत की ज्ञान परंपरा से जुड़ सकें।
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प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की कि अगर आप इस तरह के किसी प्रयास से जुड़े हैं, या जुड़ना चाहते हैं, तो माय गोव MyGov या संस्कृति मंत्रालय से संपर्क करें। उन्होंने कहा कि ये सिर्फ पांडुलिपियां नहीं हैं, बल्कि भारत की आत्मा के वे अध्याय हैं, जिन्हें अगली पीढ़ियों तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है।