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महज FIR के आधार पर छात्र को नहीं निकाला जा सकता : हाईकोर्ट
टीम डिजिटल/अमर उजाला
Updated Sat, 14 Oct 2017 10:08 PM IST
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बांबे हाईकोर्ट ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग के एक छात्र के विरुद्ध उसके कॉलेज द्वारा जारी निष्कासन आदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि महज किसी प्राथमिकी को ‘वेदवाक्य’ नहीं माना जा सकता है और यह निष्कासन का कारण नहीं हो सकता।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एसके शिंदे की खंडपीठ ने मुकेश पेटल स्कूल ऑफ टेक्नॉलोजी मैनेजमेंट एंड इंजीनियरिंग कॉलेज द्वारा पांच अगस्त को 21 वर्षीय एक विद्यार्थी के विरुद्ध जारी निष्कासन आदेश को खारिज कर दिया।
यह कॉलेज नारसी मोंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से संबद्ध है। दरअसल जून में इस छात्र के विरुद्ध एक लड़की को शादी का झांसा देकर उससे कथित रूप से बलात्कार करने को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उसके बाद उसे कॉलेज ने निष्कासित कर दिया।
छात्र ने निष्कासन आदेश को अदालत में चुनौती दी और कहा कि उसे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। पीठ इस हफ्ते के प्रारंभ में संबंधित पक्षों की बातें सुनने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि संस्थान ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को सही मानते हुए कार्रवाई कर दी और बिना सुनवाई के उसे निष्कासित कर दिया।
अदालत ने कहा, ‘दूसरे शब्दों में याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने का मौका दिए बगैर ही उसे दंडित कर दिया गया और उसे आगे के अध्ययन से वंचित कर दिया गया।
इस प्रकार संस्थान का आदेश नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है। हमारा यह भी मत है कि अपराध दर्ज होने को वेदवाक्य नहीं माना जा सकता है और वह याचिकाकर्ता को निष्कासित करने का आधार नहीं हो सकता।’
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यह कॉलेज नारसी मोंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से संबद्ध है। दरअसल जून में इस छात्र के विरुद्ध एक लड़की को शादी का झांसा देकर उससे कथित रूप से बलात्कार करने को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उसके बाद उसे कॉलेज ने निष्कासित कर दिया।
छात्र ने निष्कासन आदेश को अदालत में चुनौती दी और कहा कि उसे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। पीठ इस हफ्ते के प्रारंभ में संबंधित पक्षों की बातें सुनने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि संस्थान ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को सही मानते हुए कार्रवाई कर दी और बिना सुनवाई के उसे निष्कासित कर दिया।
अदालत ने कहा, ‘दूसरे शब्दों में याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने का मौका दिए बगैर ही उसे दंडित कर दिया गया और उसे आगे के अध्ययन से वंचित कर दिया गया।
इस प्रकार संस्थान का आदेश नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है। हमारा यह भी मत है कि अपराध दर्ज होने को वेदवाक्य नहीं माना जा सकता है और वह याचिकाकर्ता को निष्कासित करने का आधार नहीं हो सकता।’