Modi-Putin: मोदी-पुतिन दोस्ती में आगे, व्यापार में पीछे, 100 बिलियन डॉलर तक कैसे पहुंचेगा व्यापार
पुतिन आज भारत के दौरे पर आने वाले हैं। इस दौरे को भारत के लिए कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण समक्षा जा रहा है। लेकिन क्या यह दोस्ती हथियार खरीद के आगे बढ़गी?, क्या भारत कई और चीजों में रूस के साथ व्यपार को बढ़ाएगा?
विस्तार
भारत और रूस लंबे समय से एक दूसरे के 'ऑल वेदर फ्रेंड' बने हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दोनों देशों के बीच इन संबंधों को एक नई ऊंचाई दी है। लेकिन मुख्य रूप से दोनों गहरे दोस्तों के बीच यह दोस्ती रूसी सैन्य उपकरणों की खरीद तक सिमटी हुई है। इसका लाभ भी एक तरफा रूस को ही मिलता रहा है। जबकि अमेरिका और यूरोप रूस के साथ तमाम विवादों के बाद भी उसके बड़े व्यापारिक साझेदार बने हुए हैं। भारत और रूस की इस दोस्ती को और गहरा करने के लिए दोनों ही देशों ने अपने बीच होने वाले व्यापार को 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन यह लक्ष्य कैसे हासिल होगा और इसका लाभ किसे मिलेगा?
दोनों देशों के बीच इस समय करीब 63.6 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है। लेकिन दोनों ही देशों के नेता इस बात के लिए उत्सुक हैं कि यह व्यापार अगले पांच वर्षों में 100 बिलियन डॉलर तक ले जाया जाए। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में हिस्सेदारी और निवेश बढ़ाने की आवश्यकता होगी। इंडियन-रसियन बिजनेस फोरम के मंच पर जब रूसी पुतिन भाग लेंगे, तब यह उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी।
इस समय रूस-भारत के बीच तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद सबसे बड़ी व्यापारिक हिस्सेदारी है। भारत की ओर से रूस में करीब 16 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया है, इसका ज्यादातर हिस्सा पेट्रोकेमिकल्स के क्षेत्र में है। इसी तरह रूस का भारत में करीब 20 बिलियन डॉलर का निवेश है। इसका अधिकतर हिस्सा पेट्रोकेमिकल्स और फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर में है।
आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक भागीदारी बढ़ाने की असीम संभावनाएं मौजूद हैं। रूस भारत को नवीनतम युद्ध तकनीक से लैस सुरक्षा उपकरणों, लड़ाकू विमानों के निर्माण में सहायता कर सकता है। इसे पारस्परिक व्यापारिक अवसरों की तरह तब्दील किया जा सकता है। फाइटर पायलट रहित विमान और ड्रोन से हमला नई सामरिक आवश्यकता बनकर उभरी है। भविष्य की आवश्यकता को देखते हुए भारत को इस तकनीक में पारंगत होना होगा। रूस इसमें भारत की बड़ी सहायता कर सकता है।
खाद्य उत्पादों-सेवाओं को खरीदने पर समझौता करेगा रूस
वहीं, भारत प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद, फल-सब्जी, सॉफ्टवेयर बाजार, वस्त्र-आभूषण, फार्मास्युटिकल्स सेक्टर में मजबूत है। इन सेक्टर की सेवाओं, उत्पादों को रूस को बेचकर भारत एक बेहतर बाजार हासिल कर सकता है। भारत ने डिजिटल सेवाओं को उपलब्ध कराने के मामले में नया कौशल हासिल किया है। रूसी राष्ट्रपति ने इस तकनीक और अनुभव को भारत से हासिल करने में रुचि जताई है। व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान रूस भारतीय खाद्य वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने पर एक समझौता कर सकता है।
'भारत जैसा मजबूत व्यापारिक साझेदार नहीं खोना चाहेगा रूस'
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ डॉ. नागेंद्र कुमार शर्मा ने अमर उजाला से कहा कि अब तक हमारी भागीदारी सैन्य आवश्यकताओं और पेट्रोकेमिकल्स तक सीमित रही है। लेकिन अब इसे दूसरे हिस्सों तक बढ़ाने की आवश्यकता है। रूस से तेल व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी जिस तरह भारत ने रूस से तेल खरीदा है, उसने रूस को यह भरोसा दिला दिया है कि भारत अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के दबाव के बाद भी झुकेगा नहीं। स्वयं रूस के राष्ट्रपति ने अमेरिका या राष्ट्रपति ट्रंप का नाम लिए बिना इसकी प्रशंसा की है।
रूस अभी भी युद्ध में उलझा हुआ है। अमेरिका और यूरोप जिस तरह की तैयारी कर रहे हैं, आने वाले समय में रूस की परेशानियां बढ़ भी सकती हैं। यदि ऐसी कोई परिस्थिति बनती है तो उस स्थिति में भी रूस चाहेगा कि उसके पास भारत जैसा मजबूत दोस्त हो जो उसके साथ युद्ध में भले न उतरे, लेकिन वह तेल खरीद कर उसे आर्थिक मजबूती देता रहे। रूस की इस आवश्यकता को भारत अपने घरेलू बाजार में तेल कीमतों को स्थिर रखने में उपयोग कर सकता है।
रूस के पास प्राकृतिक गैस का बहुत बड़ा भंडार है। वह आज भी यूरोप को सबसे अधिक गैस की सप्लाई करता है। भारत में जिस तरह ऊर्जा की मांग बढ़ रही है, स्वच्छ ऊर्जा के लिए सरकारें जिस तरह गैस आधारित वाहनों-उद्योगों को बढ़ावा दे रही हैं, भारत में प्राकृतिक गैस की मांग में लगातार बढ़ोतरी होने वाली है। रूस इसमें भारत की बड़ी मदद कर सकता है।
व्लादिमीर पुतिन के सलाहकार एंटन कोब्याकोव ने कहा है कि भारत पिछले पांच वर्षों से रूस का दूसरा सबसे मजबूत व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है। स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच व्यापार में लगभग सात गुने तक की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि रूस से भारत को बेचे गए तेल के कारण आई है। लेकिन इस व्यापारिक साझीदारी को मजबूत करने और इसे स्थायित्व देने के लिए नए उपायों की तलाश की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि रूस अपने ऐसे मजबूत व्यापारिक साझीदार को कभी नहीं खोना चाहेगा जो अमेरिका जैसे मजबूत देश के प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए भी उसके साथ व्यापार कर सके। भारत को इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए और अपना व्यापार बढ़ाने के अवसर तलाशना चाहिए।
'बाजार मिलेगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे'
डॉ. नागेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि अब इस दोस्ती को नई ऊंचाई दी जानी चाहिए। भारत ने निर्माण को अपनी अर्थव्यवस्था की ताकत बना रखी है। और इसमें स्टील और सीमेंट सबसे बड़ी आवश्यकता होते हैं। रूस इस सेक्टर का बड़ा खिलाड़ी है। पुतिन अपने इस दौरे में इस सेक्टर से जुड़ा समझौता करते हैं तो इससे दोनों देशों के बीच व्यापार को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि जिस तरह की जानकारी सामने आई है, रूस भारत से खाद्य उत्पादों और सेवाओं की खरीद पर समझौता कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो इससे भारत को एक बड़ा बाजार मिलेगा और भारत में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।