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Nagaland: नगालैंड में पांच प्रमुख जनजातियों ने किया धरना-प्रदर्शन, आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग की
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोहिमा।
Published by: निर्मल कांत
Updated Wed, 09 Jul 2025 06:01 PM IST
सार
Nagaland: नगालैंड की पांच प्रमुख जनजातियों ने 48 साल पुरानी आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग को लेकर कोहिमा में नागरिक सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वर्तमान आरक्षण नीति अब सामाजिक-आर्थिक हकीकतों से मेल नहीं खाती और या तो इसे खत्म किया जाए या खाली आरक्षित पदों को इन्हीं जनजातियों को दिया जाए।
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विरोध प्रदर्शन (सांकेतिक तस्वीर)
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
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विस्तार
नगालैंड में बुधवार को पारंपरिक परिधान पहने जनजातीय समुदाय के हजारों लोगों ने नागरिक सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग की। यह विरोध प्रदर्शन राज्य की पांच प्रमुख जनजातियों आओ, अंगामी, लोथा, रेंगमा और सुमी के लोगों की ओर से किया गया, जो '5- आरक्षण नीति की समीक्षा पर जनजाति समिति (सीओआरआरपी)' के बैनर तले एकजुट हुए थे। उन्होंने मांग की कि या तो 1977 से प्रभावी वर्तमान सरकारी नौकरी आरक्षण नीति को समाप्त किया जाए या फिर खाली पड़ी आरक्षित सीटों को विशेष रूप से इन पांच जनजातियों को आवंटित किया जाए।
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प्रदर्शनकारियों ने हाथों में बैनर और पोस्टर लिए थे, जिन पर लिखा था- 48 साल की अनिश्चित आरक्षण नीति का विरोध।पिछड़ी जनजातियों (बीटी) को आरक्षण बिना न्यूनतम कटऑफ प्रणाली का मजाक है। पिछड़ी जनजाति को आरक्षण अब अपना मकसद खो चुका है। 48 साल का धैर्य अब असहनीय हो गया है। सीओआरआरपी का कहना है कि वर्तमान आरक्षण नीति अब पुरानी और दमनकारी हो चुकी है और इसकी या तो समाप्ति होनी चाहिए या फिर रिक्त आरक्षित सीटों को इन पांच जनजातियों में वितरित किया जाना चाहिए।
नगालैंड सरकार ने मंगलवार को समिति से प्रदर्शन वापस लेने की अपील की थी और कहा था कि इस मामले की पहले ही संस्थागत समीक्षा हो रही है। सरकार ने यह भी जानकारी दी थी कि मुख्यमंत्री के लौटने के बाद राज्य कैबिनेट बैठक कर इस विषय पर निर्णय लेगी। हालांकि, सरकार की अपील को ठुकराते हुए सीओआरआरपी ने एक दिन और विरोध प्रदर्शन को जारी रखने का फैसला किया।
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नगालैंड की आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग तब तेज हो गई, जब इन पांच प्रमुख जनजातियों ने एक संयुक्त ज्ञापन राज्य सरकार को सौंपा। उनका तर्क है कि 1977 से लागू नीति अब राज्य की विभिन्न जनजातियों की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति को नहीं दर्शाती।
जनता का दबाव बढ़ने के बाद उपमुख्यमंत्री यंथुंगो पट्टन ने 3 जून को बैठक बुलाई थी, जिसमें उन्होंने आश्वासन दिया था कि 17 जून तक एक आयोग का गठन किया जाएगा। हालांकि, दो जुलाई को मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने जनता से धैर्य रखने की अपील करते हुए कहा कि आयोग का कार्य बहुत व्यापक है और इसमें तुरंत परिणाम नहीं आ सकते। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन, आरक्षण या निर्वाचन क्षेत्रों में कोई भी सुधार राष्ट्रीय जनगणना (जो 2027 में अपेक्षित है) के बाद ही किए जाने चाहिए। सरकार की चुप्पी और प्रगति की कमी से नाराज सीओआरआरपी ने तीन जुलाई को धरना प्रदर्शन की घोषणा की थी।
शुरुआत में सात जनजातियों को गैर-तकनीकी और गैर-राजपत्रित पदों में 25 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। इन जनजातियों को शिक्षा और आर्थिक रूप से पिछड़ा होने तथा राज्य सेवाओं में सीमित प्रतिनिधित्व के आधार पर 'पिछड़ी जनजातियों' के रूप में चिह्नित किया गया था। समय के साथ यह आरक्षण बढ़ाकर 37 प्रतिशत कर दिया गया, जिसमें से 25 प्रतिशत आरक्षण सात पूर्वी नगालैंड की पिछड़ी जनजातियों के लिए और 12 प्रतिशत राज्य की अन्य चार पिछड़ी जनजातियों के लिए आरक्षित है। सीओआरआरपी ने संकेत दिया है कि अगर सरकार आयोग के गठन और उसे अधिकार देने के मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाती है, तो आंदोलन और तेज किया जा सकता है।
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प्रदर्शनकारियों ने हाथों में बैनर और पोस्टर लिए थे, जिन पर लिखा था- 48 साल की अनिश्चित आरक्षण नीति का विरोध।पिछड़ी जनजातियों (बीटी) को आरक्षण बिना न्यूनतम कटऑफ प्रणाली का मजाक है। पिछड़ी जनजाति को आरक्षण अब अपना मकसद खो चुका है। 48 साल का धैर्य अब असहनीय हो गया है। सीओआरआरपी का कहना है कि वर्तमान आरक्षण नीति अब पुरानी और दमनकारी हो चुकी है और इसकी या तो समाप्ति होनी चाहिए या फिर रिक्त आरक्षित सीटों को इन पांच जनजातियों में वितरित किया जाना चाहिए।
नगालैंड सरकार ने मंगलवार को समिति से प्रदर्शन वापस लेने की अपील की थी और कहा था कि इस मामले की पहले ही संस्थागत समीक्षा हो रही है। सरकार ने यह भी जानकारी दी थी कि मुख्यमंत्री के लौटने के बाद राज्य कैबिनेट बैठक कर इस विषय पर निर्णय लेगी। हालांकि, सरकार की अपील को ठुकराते हुए सीओआरआरपी ने एक दिन और विरोध प्रदर्शन को जारी रखने का फैसला किया।
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नगालैंड की आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग तब तेज हो गई, जब इन पांच प्रमुख जनजातियों ने एक संयुक्त ज्ञापन राज्य सरकार को सौंपा। उनका तर्क है कि 1977 से लागू नीति अब राज्य की विभिन्न जनजातियों की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति को नहीं दर्शाती।
जनता का दबाव बढ़ने के बाद उपमुख्यमंत्री यंथुंगो पट्टन ने 3 जून को बैठक बुलाई थी, जिसमें उन्होंने आश्वासन दिया था कि 17 जून तक एक आयोग का गठन किया जाएगा। हालांकि, दो जुलाई को मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने जनता से धैर्य रखने की अपील करते हुए कहा कि आयोग का कार्य बहुत व्यापक है और इसमें तुरंत परिणाम नहीं आ सकते। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन, आरक्षण या निर्वाचन क्षेत्रों में कोई भी सुधार राष्ट्रीय जनगणना (जो 2027 में अपेक्षित है) के बाद ही किए जाने चाहिए। सरकार की चुप्पी और प्रगति की कमी से नाराज सीओआरआरपी ने तीन जुलाई को धरना प्रदर्शन की घोषणा की थी।
शुरुआत में सात जनजातियों को गैर-तकनीकी और गैर-राजपत्रित पदों में 25 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। इन जनजातियों को शिक्षा और आर्थिक रूप से पिछड़ा होने तथा राज्य सेवाओं में सीमित प्रतिनिधित्व के आधार पर 'पिछड़ी जनजातियों' के रूप में चिह्नित किया गया था। समय के साथ यह आरक्षण बढ़ाकर 37 प्रतिशत कर दिया गया, जिसमें से 25 प्रतिशत आरक्षण सात पूर्वी नगालैंड की पिछड़ी जनजातियों के लिए और 12 प्रतिशत राज्य की अन्य चार पिछड़ी जनजातियों के लिए आरक्षित है। सीओआरआरपी ने संकेत दिया है कि अगर सरकार आयोग के गठन और उसे अधिकार देने के मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाती है, तो आंदोलन और तेज किया जा सकता है।
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