OPS: ओपीएस बहाली के खिलाफ 9 जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल, रक्षा कर्मचारी महासंघ ने दिया समर्थन
ओपीएस के मुद्दे पर दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ-साथ विभिन्न स्वतंत्र कर्मचारी महासंघों ने 9 जुलाई को राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल करने जा रहे हैं। देश भर में 400 से अधिक रक्षा प्रतिष्ठानों पर प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा।

विस्तार
दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ-साथ विभिन्न स्वतंत्र कर्मचारी महासंघों ने 9 जुलाई को राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल में भाग लेने की घोषणा की है। केंद्रीय कर्मचारी संगठन, 'कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स' की तरफ से कैबिनेट सचिव को पहले ही एक दिवसीय हड़ताल का नोटिस दिया जा चुका है। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) ने भी इस हड़ताल को अपना समर्थन दिया है। रक्षा कर्मचारी महासंघ, बुधवार को एक घंटे के काम का बहिष्कार करेंगे। देश भर में 400 से अधिक रक्षा प्रतिष्ठानों पर प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा। इस हड़ताल के जरिए श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा की मांग होगी। निजीकरण तथा श्रम सुधारों पर सरकार की नीतियों का विरोध और एनपीएस व यूपीएस समाप्त कर ओपीएस बहाल करना, आदि मांगें भी कर्मियों के एजेंडे में शामिल रहेंगी।

'कॉन्फेडरेशन' ने केंद्र सरकार के समक्ष कई मांग रखी हैं। इनमें आठवें वेतन आयोग की कमेटी का अविलंब गठन करने और स्टाफ साइड एनसी जेसीएम द्वारा आठवें वेतन आयोग के 'टर्म ऑफ रेफरेंस' के लिए जो सुझाव दिए गए हैं, उन्हें 'रेफरेंस' में शामिल करना, शामिल है। कर्मचारियों के लिए एनपीएस, यूपीएस को खत्म करना। सभी कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन बहाल की जाए। कोविड 19 के दौरान डीए/डीआर की जो तीन किस्तें फ्रीज कर दी गई थी, उसे जारी किया जाए। पेंशन के कम्यूटेड हिस्से को 15 साल की बजाय 12 साल के बाद बहाल किया जाए।
'कॉन्फेडरेशन' के महासचिव एसबी यादव का कहना है, कर्मियों की ज्यादातर मांगें, वही हैं, जिनके लिए कर्मचारी लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। अनुकंपा नियुक्ति पर लगाई गई 5 प्रतिशत की सीलिंग को हटाया जाए। सभी मामलों में मृतक कर्मचारी के बच्चों/आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति दी जाए। केंद्र सरकार के सभी विभागों में कैडर के रिक्त पदों को भरा जाए। यादव ने कहा, सरकारी विभागों में आउटसोर्सिंग और निगमीकरण की प्रथा पर रोक लगे।
जेसीएम तंत्र के अनुसार एसोसिएशन/फेडरेशन के लोकतांत्रिक कामकाज को सुनिश्चित किया जाए। लंबित एसोसिएशन/फेडरेशन को मान्यता प्रदान करें। एआईपीईयू ग्रेड सी यूनियन, एनएफपीई और इसरोसा के मान्यता रद्द करने के आदेश वापस लिए जाएं। सेवा एसोसिएशन/फेडरेशन पर नियम 15 1 (सी) को लागू करना बंद करें। कैजुअल, कंटीजेंट, कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले मजदूरों और जीडीएस कर्मचारियों को नियमित करें, स्वायत्त निकायों के कर्मचारियों को सीजी कर्मचारियों के बराबर दर्जा दें। इनके अतिरिक्त कई दूसरी मांगें भी सरकार के समक्ष रखी गई हैं।
फोटो: एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार
एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार ने 41 आयुध कारखानों के निगमीकरण के बाद सरकारी स्वामित्व वाले रक्षा उद्योगों और उनके कर्मचारियों की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा, सरकार व्यवस्थित रूप से सरकारी रक्षा क्षेत्र को कमजोर कर रही है। निगमित आयुध कारखाने जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वित्तीय और गैर-वित्तीय सहायता के तथाकथित आश्वासन केवल कागजों पर ही रह गए हैं। अधिकांश कारखानों को सशस्त्र बलों से पर्याप्त ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। इससे कर्मचारी अत्यधिक दबाव और संकट में हैं।
ये है एआईडीईएफ की प्रमुख चिंता
बड़े पैमाने पर कटौती: निगमीकरण के चार वर्षों के भीतर आयुध कारखानों में कर्मचारियों की संख्या 72,000 से घटकर 63,000 रह गई है। युवा श्रमिकों का शोषण: प्रशिक्षित ट्रेड अप्रेंटिस को स्थायी आधार पर भर्ती नहीं किया जा रहा है। इसके बजाय, उन्हें नौकरी या सामाजिक सुरक्षा के बिना निश्चित अवधि के रोजगार के तहत रखा जाता है, जबकि ऐसी नियुक्तियों का समर्थन करने वाला कोई कानून नहीं है।अनुकंपा नियुक्तियां नहीं: सरकार ने पिछले चार वर्षों से अनुकंपा नियुक्तियों पर रोक लगा रखी है। न्यायालय के आश्वासनों का क्रियान्वयन न होना: मद्रास उच्च न्यायालय में केंद्र द्वारा कर्मचारियों का केंद्र सरकार का दर्जा बनाए रखने और सेवा शर्तों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता पूरी नहीं हुई है।
संवाद का अभाव:
ट्रेड यूनियन अधिकारों में कटौती की जा रही है। कर्मचारी महासंघों के साथ कोई जेसीएम (संयुक्त परामर्शदात्री मशीनरी) बैठक या चर्चा नहीं हुई है। अधिकारियों की मनमानी: इकाई स्तर पर, अधिकारी 'तानाशाही' तरीके से काम करते हैं। वे अक्सर स्थानांतरण शक्तियों का दुरुपयोग करते हैं, जिससे कर्मचारियों को कानूनी हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। श्रीकुमार ने नई पेंशन योजना (एनपीएस) और असंगठित पेंशन योजना (यूपीएस) की भी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि ये दोनों योजना, विनाशकारी हैं। एनपीएस के दायरे में आने वाले 99% से ज़्यादा कर्मचारियों ने यूपीएस को अस्वीकार कर दिया है। इससे सरकार को विकल्प की समयसीमा 30 सितंबर तक बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा है।
कर्मचारी, पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। श्रीकुमार ने चेतावनी दी है कि मौजूदा पेंशनभोगी भी सरकारी नीतियों के प्रतिकूल प्रभाव से अछूते नहीं हैं। भविष्य में पेंशन संशोधन अब पूरी तरह से सरकार के विवेक पर निर्भर है। इसके अलावा, सीजीएचएस चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति तेजी से बिगड़ रही है। उन्होंने 8वें केंद्रीय वेतन आयोग की अधिसूचना में देरी पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि इसकी घोषणा के छह महीने बाद भी कोई स्पष्टता या कार्यान्वयन नहीं है। रक्षा संस्थानों में अगर युवा प्रशिक्षित तकनीशियनों को स्थायी रूप से भर्ती नहीं किया जाता है, तो वरिष्ठ कर्मचारियों द्वारा दशकों में विकसित कौशल और तकनीकें हस्तांतरित नहीं की जा सकेंगी। इससे हमारी रक्षा तैयारियाँ बुरी तरह प्रभावित होंगी।
श्रीकुमार ने सरकार से अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने, पिछली गलतियों को सुधारने और कर्मचारी महासंघों के साथ सार्थक बातचीत करने का आह्वान किया है। अदालतों द्वारा कर्मचारियों के पक्ष में फैसला दिए जाने के बाद भी अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय तक अपील दायर कर रहे हैं। माहौल उत्पीड़न और दमन का है, इसलिए, रक्षा नागरिक कर्मचारी बड़े कर्मचारी आंदोलन से अलग नहीं रह सकते हैं। एआईडीईएफ ने रक्षा सचिव को मांगों का एक चार्टर सौंपा है। श्रीकुमार ने चेतावनी दी है कि अगर मुद्दे अनसुलझे रहे तो वे तीव्र संघर्ष करेंगे। हम 9 जुलाई को पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन के साथ एक घंटे का कार्य बहिष्कार करेंगे। अगर सरकार हमारी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो एआईडीईएफ निरंतर संघर्ष का भविष्य का रास्ता तय करेगा।